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धर्म, अधर्म, राजधर्म और राष्ट्रधर्म, सबके लिए, सबको मान्य, बने समान “धर्म-स्थल  संहिता”- सरयूसुत मिश्र 

सार

धर्म पर भेदभाव धर्म के चश्मे से ही शुरू होता है| भेदभाव का मतलब है धर्मों के बीच में भेद के क्या भाव हैं? धर्मों के बीच क्या अलग अलग है? धार्मिक आस्थाओं और प्रतीकों में यह अलगाव और उसकी सर्वोच्चता पर द्वंद भेदभाव की जड़ है..!

janmat

विस्तार

भारत में सभी धर्मों के लोग रहते हैं| लेकिन अक्सर टकराहट हिंदू मुस्लिमों के बीच होती है| जब धार्मिक प्रतीकों की टकराहट का कारण सरकारों की ऐतिहासिक भूलें हों तो उसको क्या कभी ठीक किया जाएगा? उन्हीं भूलों के कारण  हिंदू मुस्लिम समूहों का संघर्ष कब तक और किस मुकाम तक जाएगा? जहां समानता होगी, वहां भेदभाव नहीं हो सकता| लेकिन समानता की बात ना समाज सुन रहा है ना सरकार सुन रही है और ना अदालतें सुन रही हैं| बहुमत का तराजू पक्ष में झुकाने के लिए क्या-क्या नहीं हो रहा है|

सभी धर्मों के धर्मार्थ ट्रस्ट और धार्मिक संस्थाओं के लिए एक समान कानून की मांग करने वाली याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले दिनों सुनने से इनकार कर दिया| याचिका में सभी धर्मों के लिए समान धर्मस्थल संहिता बनाने के निर्देश देने का अनुरोध सर्वोच्च न्यायालय से किया गया था| सर्वोच्च न्यायालय का यह कहना है संसद को समान कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकते| सर्वोच्च न्यायालय निर्देश दे नहीं सकता संसद मौन है तो फिर भेदभाव को रोकने वाला कौन है?

एक धर्म के पक्ष में एक तरफा कानूनी प्रावधान, दूसरे धर्म की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं| मुस्लिम धर्म की संपत्तियों, धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन के लिए सरकारों ने अलग कानून बनाया है| हिंदू धर्म के लिए अलग कानून है| मुस्लिम धर्म के स्थलों के लिए प्रबंधन की स्वायत्तता और संरक्षण तथा हिंदू धर्म के धर्म स्थानों पर अंकुश| यह भेदभाव अब तक चल गया अब यह संभव नहीं लगता|

समान धर्मस्थल संहिता देश में क्यों नहीं बनना चाहिए| जब सरकार के कानूनों में ही धार्मिक आधार पर भेदभाव हो रहा है तो सद्भाव और एकता की बातें कब तक असर करेंगी? मुस्लिम जहाँ अपने धर्म और धार्मिक प्रतीकों के प्रति कट्टर माने जाते हैं| वहीं हिंदू भी अब अपनी धार्मिक आस्थाओं के लिए उठ खड़े हुए हैं|

यह अलग बात है कि हिंदू और हिंदुत्व अपनी वजह से कम राजनीति की वजह से ज्यादा उठ खड़ा हुआ है| चाहे अदालत निर्देश दे या संसद पहल करे, लेकिन अब धर्म के मामले में अलग-अलग कानून के भेदभाव को समाप्त करने का समय आ गया है| अभी इस बारे में आम सहमति से नहीं सोचा गया तो भारत का भविष्य एक और विभाजन के सिविल वार की तरफ मुड़ सकता है|

धार्मिक प्रक्रियाओं और प्रतीकों पर विवाद वैसे तो सदियों से चलते रहे हैं लेकिन अभी हाल के दौर में चिंतनीय रूप से और ज्यादा बढ़ गए हैं| किसी भी धर्म की आस्था और प्रतीक समाज की शांति, प्रगति और राष्ट्र के ऊपर नहीं हो सकते| हिंदू मुसलमानों के बीच अभी ताजा विवाद लाउडस्पीकर पर अजान की परंपरा खत्म करने के लिए हनुमान चालीसा पाठ का आंदोलन बन गया है| कई राज्यों में हनुमान चालीसा, लाउडस्पीकर पर पढ़ी जा रही है| इस मुद्दे पर बयानबाजी के साथ तनावपूर्ण परिस्थितियां बनती जा रही हैं| धर्म और समाज में विचारों के मतभेद इतने ज्यादा हैं,कि इनका समाधान निष्पक्ष रुप से अदालतें ही कर सकती हैं|

स्कूलों  मे ड्रेस कोड के विरोध में हिज़ाब विवाद पर अदालत ने फैसला दिया है| हिजाब को इस्लाम धर्म का अभिन्न अंग नहीं माना गया है| अदालती आदेश के बाद भी विवाद को तूल देने की घटनाएं प्रकाश में आती रही हैं| उग्रता कितनी बढ़ गई है कि अब हलाल मीट और मंदिरों के आसपास मुस्लिम समुदाय के लोगों की दुकानें हटाने के विवाद भी सामने आ गए हैं|

रामनवमी पर हिंदुओं के जुलूस पर पत्थरबाजी से हुए दंगों के कारण कई राज्यों में स्थितियां बिगड़ी हैं| राजस्थान, गुजरात, बिहार और मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा है| 21वीं सदी में दंगे की बर्बरता इंसानियत को शर्मसार करती है| सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं का एक चिंतनीय पहलू यह भी है, कि समुदायों के बीच दंगे में अपने पक्ष को भुनाने के लिए पक्ष विपक्ष के बीच राजनीतिक दंगे शुरू हो जाते हैं|

मध्य प्रदेश के खरगोन का ही उदाहरण ले| प्रशासन घटना के बारे में जांच-पड़ताल कर रहा है| लेकिन वहां घटना को लेकर राजनीतिक नजरिए से बयान बाजी सामने आ रही है| खरगोन ऐसा जिला है जहां सांसद भारतीय जनता पार्टी के हैं और जिले के विधानसभा क्षेत्रों में एक पूर्व कांग्रेसी निर्दलीय विधायक सहित सभी विधायक कांग्रेस से हैं|

जिले की बड़वाह सीट से चुने गए विधायक सचिन बिरला खंडवा लोकसभा चुनाव के समय भाजपा में शामिल हो गए थे| लेकिन अभी तक विधानसभा सचिवालय की दृष्टि में वे कांग्रेस के ही सदस्य हैं उनकी सदस्यता अभी तक बरकरार है| सांप्रदायिक दंगों पर बयानबाजी के जो राजनीतिक दंगे होते हैं वह समाज की बुनियाद को गहरी चोट पहुंचाते हैं|

दंगों में चाहे गलती हिंदू धर्म के लोगों की हो या मुस्लिम धर्म के लोगों की| मिटती तो इंसानियत है| बयानों के गोले बरसाए जाते हैं| लेकिन सबका असली मकसद ध्रुवीकरण होता है| हिंदू मुस्लिम के आधार पर क्या गली-गली और मोहल्ले बाँट दिए जाएंगे? माहौल आज डराने लगा है| खुशबू का न कोई धर्म है ना बदबू का कोई धर्म है| ना जन्म का धर्म है ना मौत का| केवल आचरण में धर्म है|

जो धर्म और आचरण हमें  बांटता है उसको कैसे धीरे-धीरे हम खत्म कर सकते हैं| उस पर काम करने की जरूरत है| क्या कोई मुस्लिम कहेगा कि हम भेदभाव चाहते हैं? धर्म स्थलों के लिए समान संहिता की बात मुस्लिम समाज क्यों नहीं उठाता| भारत में एक ऐसा दौर था जब हिंदुओं के रहनुमा मुस्लिम होते थे और मुस्लिमों के हितों का संरक्षण हिंदू नेता करते रहे| हर चीज की तरह धार्मिक आचरण भी दिखावे का शिकार हो गया है|

हमारी आस्था तो परमात्मा और अल्लाह के बीच का मामला है| लेकिन हम इसको प्रदर्शन का विषय बनाते हैं| राजनीति से जुड़े लोगों के मामले में तो देखा गया है कि जब तक टीवी कैमरा चलेगा तभी तक धार्मिक अनुष्ठान चलेगा| कैमरा बंद कि अनुष्ठान भी बंद| धर्म से जुड़े जो भी मुद्दे देश में उभर रहे हैं उनका जवाब देना अब समय की मांग है| उनको बहुत लंबे समय तक टाला नहीं जा सकता| हिंदू मुस्लिम दोनों धर्म के लोगों को आगे आकर समाधान की राह पर बढना होगा| 

राजनीतिक ध्रुवीकरण, तुष्टिकरण का वायरस इंसानियत के खिलाफ है| इंसान रहेगा तभी धर्म रहेगा| एक विद्वान ने कहा है कि मृत्यु का डर नहीं होता तो शायद धर्म भी नहीं होता| हम आज इसके उल्टे रास्ते पर बढे चल रहे हैं| धर्म के विवाद में लोगों को मृत्यु दे रहे हैं| मृत्यु के आभास के साथ धर्म का आचरण, स्व कल्याण, समाज कल्याण और राष्ट्र कल्याण के लिए जरूरी है|