चंद्रयान के प्रज्ञान रोवर की मूनवॉक हर भारतीय को चांद पर स्वयं के वॉक का रोमांचित आनंद दे रहा है. भारत एक सुर में मून वॉक पर टॉक कर रहा है. भारत की संस्थाओं पर दुनिया गौरव गान न्योछावर कर रही है तो भारत पर राहुल टॉक देश को शॉक कर रही है..!
राहुल गांधी कुछ लोगों की सूचना पर कह रहे हैं कि चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर रखा है. प्रधानमंत्री सरासर झूठ बोल रहे हैं कि चीन ने भारत की कोई भी जमीन कब्जा नहीं की है. राहुल गांधी यहां तक कह रहे हैं कि भारत की संस्थाओं, ज्युडिशरी,मीडिया, चुनाव आयोग सभी संस्थाओं पर बीजेपी और आरएसएस ने कब्जा कर रखा है.
कब्जे की सोच कमजोर मन की निशानी कही जाती है. भारत की संस्थाओं ने भारत का ओज हमेशा बढ़ाया है. भारत की किसी भी संवैधानिक संस्था ने कभी भी राजनीतिक वर्चस्व को हावी नहीं होने दिया. भारत की न्यायपालिका का सुनहरा इतिहास है. प्रधानमंत्री के पद पर काबिज शक्तिशाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भी न्यायपालिका ने निर्णय दिया था. मुख्यमंत्रियों और सरकार में शक्तिशाली पदों पर काबिज लोगों के खिलाफ न्यायिक फैसलों की लंबी फेहरिस्त है. राजनीतिक इतिहास बताता है कि कई ताकतवर राजनेताओं को न्यायिक निर्णयों के कारण अपनी कुर्सी तक छोड़ना पड़ी है.
राहुल गांधी स्वयं न्यायिक फैसले की खुशी और गम के अनुभवों से गुजरे हैं. मानहानि के मामले में अदालत से सजा के बाद उनकी संसद सदस्यता निरस्त हुई थी. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सजा पर रोक लगाकर लोकसभा सदस्यता की बहाली का घटनाक्रम न्यायिक संस्थाओं की निष्पक्षता का ही प्रतीक है. जो खुद न्यायालय के न्याय पर ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में आज खड़ा हो वह नेता न्यायालय पर बीजेपी और संघ के कब्जे की बात कर इन संस्थाओं की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल कैसे खड़ा कर सकता है?
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पहली बार चंद्रयान की सफल लैंडिंग की उपलब्धि पर देश का गौरव गान करने में सार्वजनिक रूप से पीछे नहीं रहे. भारतीय न्याय व्यवस्था पर किसी भी राजनेता की यह टिप्पणी कि किसी का भी उस पर कब्जा है संपूर्ण न्याय व्यवस्था की मर्यादा को खंडित करने जैसा ही कहा जाएगा.
भारत की संवैधानिक संस्थाओं में काम करने वाले लोग अपने लंबे परिश्रम और अनुभव के आधार पर ऐसे पदों पर पहुंचते हैं. जो भी संवैधानिक संस्थाएं हैं, उनकी नियुक्तियां किसी भी राजनीतिक दल की सरकार द्वारा की गई हो लेकिन यह संस्थाएं कभी भी अपने कामकाज में राजनीतिक वर्चस्व को स्वीकार नहीं करती हैं.
मीडिया के मामले में हमेशा सरकार से जोड़कर आलोचना करने की प्रवृत्ति देखी जाती है. मीडिया जनता की आवाज के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करती रही है. विपक्ष की राजनीति में तो मीडिया की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है. मीडिया का विस्तार आज जिस सीमा तक हो गया है उसमें किसी भी सरकार या व्यवस्था के लिए यह नामुमकिन है कि मीडिया को नियंत्रित किया जा सके.
मीडिया के मामले में भाजपा और संघ के कब्जे की हकीकत कांग्रेस शासित राज्यों में देखी जा सकती है. बीजेपी शासित राज्यों में मीडिया को उनके कब्जे में होने का आरोप लगाया जा सकता है तो फिर कांग्रेस शासित राज्यों में कांग्रेस की सरकारों पर भी यह आरोप स्वाभाविक रूप से लगाया जाएगा. वैसे तो मीडिया पर ऐसे आरोप राजनीति का ही एक स्वरूप कहे जाएंगे.
अतीत में भारत ने आपातकाल भी देखा है. संस्थाओं को अपनी अस्मिता के लिए टकराते हुए भी देखा है. भारतीय सीमा की सुरक्षा और आतंकवाद की घटनाओं को भी देश ने देखा है. देश की प्रगति को राजनीतिक नजरिए से नकारने की मानसिकता राजनीतिक फैशन बन गई है. विपक्षी राजनीति हमेशा यही प्रयास करती है कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और राष्ट्रीय गौरव के विषयों पर विरोधी बातें उठाकर सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाए.
कांग्रेस और गांधी परिवार के नेतृत्व में भारत में रही सरकारों का परफॉर्मेंस राहुल गांधी की सबसे बड़ी समस्या है. वह जो भी बातें करते हैं उसका जवाब कांग्रेस की सरकार के दौरान इतिहास में उपलब्ध होता है. चीन के मामले में बीजेपी की ओर से इतिहास की बातें उठाकर कांग्रेस को राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर प्रवचन देने से बाज आने की नसीहत दी गई है.
कब्जे की राजनीति चर्चा के लिए तो ठीक हो सकती है लेकिन लोकतंत्र की जन भावनाओं को कमतर नहीं किया जा सकता. जनसेवा और जन भावनाएँ आज की राजनीति है. भारत का भविष्य है. भविष्य का भारत राजनीति का भविष्य निर्धारित करेगा. भारत के इस भाव को जो भी राजनीति और राजनेता समझने और महसूस करने में चूक करेगा वह भारत के राजनीतिक मंच से चूक जाएगा.