जब शिवतेज ने रचा स्वर्णमय चमत्कार : महाकाल वन की अलौकिक गाथा, अवंती क्षेत्र के 84 महादेवों का छठा रत्न- स्वर्णज्वालेश्वर की दिव्य परंपरा..!!
उज्जैन की पवित्र भूमि, जिसे आदि काल से अवंतिका, महाकाल की नगरी और शिवतीर्थ कहा गया है, स्वयं में अनंत कथाओं और शाश्वत रहस्यों की निधि है। इसी पावन धरा पर स्थित है- स्वर्णज्वालेश्वर महादेव, एक ऐसा देवालय जो न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि भगवान शिव की अद्भुत, अलौकिक और साक्षात् लीला का जीवंत रूप भी है।
स्कंद पुराण के अवंती खंड में वर्णित 84 महादेवों में इसका छठा स्थान बताया गया है। यह क्रम न केवल इसके प्राचीनत्व का परिचायक है, बल्कि महाकाल वन में इसकी महिमा को एक विशिष्ट आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करता है।
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, त्रैलोक्य की रक्षा एवं कल्याण के लिए भगवान शंकर ने अपने दिव्य तेज का एक अंश अग्निदेव को प्रदान किया। यह तेज इतना प्रखर, इतना उग्र और इतना दाहक था कि अग्निदेव भी उसे धारण न कर सके।
शिवांश की वह ऊर्जा अग्नि के लिए असह्य सिद्ध हुई, अतः वह दिव्य तेज उन्होंने गंगा की गोद में प्रवाहित कर दिया। जल और अग्नि के इस अद्वितीय संयोग से एक स्वर्णाभ, चमकते तेजोमय बालक का जन्म हुआ- जो आगे चलकर सुवर्णपुत्र नाम से विख्यात हुआ।
सुवर्णतेज से आभामंडित उस बालक को देखकर सभी लोकों में आश्चर्य फैल गया। देव, दानव, गंधर्व, किन्नर और यक्ष- हर कोई उस तेजस्वी बालक को अपने अधीन करने का इच्छुक था।क्षण भर में यह आग्रह, आकर्षण और स्पर्धा एक भीषण संघर्ष में बदलने लगा।
जब यह संघर्ष त्रिलोक के संतुलन को ही संकट में डालने लगा, तब इंद्र, बृहस्पति तथा बालखिल्य ऋषिगण ब्रह्मा जी को साथ लेकर भगवान शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने विनम्र प्रार्थना की कि इस तेज-पुत्र की जन्म-कथा पूर्ण हो और संघर्ष की अग्नि शांत हो।
भगवान शिव ने सुवर्णपुत्र और अग्निदेव दोनों को अपने सम्मुख बुलाया।अग्निदेव ने विनम्रतापूर्वक अपनी असमर्थता स्वीकार की और क्षमा याचना की। शिव ने सुवर्णपुत्र के लिए ब्रह्महत्या दोष के प्रायश्चित्त का विधान किया- ताकि उनका जन्म त्रिलोक के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सके।
अग्निदेव द्वारा पुत्र सहित पूर्ण समर्पण और भक्ति प्रदर्शित किए जाने पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने सुवर्णपुत्र को अपनी गोद में उठाया, प्रेम और आशीर्वाद दिया, और महाकाल वन क्षेत्र में कर्कोटक नाग के दक्षिण दिशा में एक दिव्य स्थान पर उनकी प्रतिष्ठा की। यही पवित्र स्थान आगे चलकर स्वर्णज्वालेश्वर महादेव के रूप में अभिषिक्त हुआ।
महाकाल वन के मध्य स्वर्णज्वालेश्वर- एक आध्यात्मिक ऊर्जा केन्द्र
उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के समीप स्थित यह देवालय न केवल प्राचीन वास्तु का उदाहरण है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जाओं का एक अद्भुत केंद्र भी है। यहाँ प्रवेश करते ही एक निर्लिप्त दिव्यता, एक शांति और एक अपूर्व तेज का अनुभव होता है, मानो स्वयं महादेव का आशीष वायुमंडल में व्याप्त हो।
पौराणिक मान्यता है कि “स्वर्णज्वालेश्वर के दर्शन से मनुष्य को धन, ऐश्वर्य, यश और समृद्धि की प्राप्ति होती है। अनेक बाधाएँ सहज ही नष्ट हो जाती हैं और जीवन में मंगल का उदय होता है।”
इस क्षेत्र को ज्योतिष और तंत्र की दृष्टि से भी विशेष सिद्ध माना जाता है।
सावन, मास-श्रावण और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ श्रद्धालुओं का विशाल जनसमूह उमड़ पड़ता है। भक्तजन जल, दुग्ध, मधु, दही, घृत और बिल्वपत्र से भगवान का अभिषेक करते हैं।
उनकी मंत्रमुग्ध कर देने वाली स्तुतियाँ, ओंकार की ध्वनि और महादेव के स्वरूप की दिव्यता—सभी मिलकर एक अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण बनाते हैं।
उज्जैन का यह पवित्र मंदिर भारतीय सांस्कृतिक विरासत का एक ऐसा स्तंभ है, जहाँ-
पौराणिक गाथाएँ इतिहास से संवाद करती हैं, भक्तिभाव अध्यात्म से जुड़ता है, और शिव की अनंत लीलाएँ मानव जीवन के पथ को प्रकाशमान करती हैं। यह विश्वास भी यहीं से पुष्ट होता है कि“जब शिव संरक्षण में हों, तो विपत्तियाँ भी वरदान का रूप ले लेती हैं; और भक्ति का मार्ग हर बाधा को सहज भाव से मिटा देता है।” स्वर्णज्वालेश्वर महादेव का यह दिव्य स्थल आज भी महाकाल वन की अनंत कथा को अमर करता है और श्रद्धालुओं को शिवकृपा से परिपूर्ण होने का अवसर प्रदान करता है।