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नए साल में राजनीतिक नफे- नुकसान का हाल

सार

नए साल का राजनीतिक मौसम भगवा ही बना रहेगा. यह वर्ष राजनीतिक उथल-पुथल भरा होगा. पूरी संभावना है कि 2025 जैसा 2026 भी भाजपा के लिए लाभकारी बना रहेगा..!!

janmat

विस्तार

    नए साल में बीजेपी को पाने के बहुत अवसर बहुत हैं. कांग्रेस नए साल में पुराना संघर्ष जारी रखेगी, क्षेत्रीय दलों के लिए यह साल चुनौती भरा होगा. नए साल में चार राज्यों बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल में चुनाव हैं. भाजपा के लिए यह चुनाव चिंता का विषय नहीं है, केवल असम में उनके सामने सत्ता कायम रखने की चुनौती है. शेष राज्यों में बीजेपी लाभकारी स्थिति में ही रहेगी.

    असम में उसकी स्थिति बेहतर है, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी का मतप्रतिशत बढ़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है. केरल में वामपंथी सरकार पराजित हो सकती है, वहां कांग्रेस की जीत का मुख्य आधार भी बीजेपी का परफॉर्मेंस ही होगा. केरल में बीजेपी लगातार आगे बढ़ रही है, इसका सीधा फायदा कांग्रेस को और नुकसान वामपंथियों को उठाना पड़ सकता है.

    लोकल बॉडीज के इलेक्शन में बीजेपी ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की है. केरल की राजधानी तिरुवंतपुरम में बीजेपी का महापौर बनाने में सफलता मिली है. इस नगरनिगम पर वामपंथी 45 सालों से काबिज थे. कई बार सरकार आने के बाद भी कांग्रेस यहां वामपंथियों को परास्त नहीं कर सकी थी. जो काम कांग्रेस नहीं कर सकी वह बीजेपी ने करने में सफलता हासिल की है. यह अकेला राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता की उम्मीद कर सकती है.

    तमिलनाडु में डीएमके प्रभावशाली है लेकिन बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति को भी मजबूती मिलने लगी है. यहां भी कांग्रेस को कोई गुंजाइश नहीं दिखती है. असम में कांग्रेस मजबूत है. बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा. कांग्रेस जहां केवल मुस्लिम वोटों पर निर्भर है वहीं भाजपा के हेमंत विश्व शर्मा ने हिंदुओं का वोट बैंक तैयार कर लिया है. यहाँ मुस्लिम वोट विभाजन का सीधा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. 

    सबसे बड़ा और पहली चुनावी राज्य बंगाल है. यहाँ चुनावी बिगुल बज चुका है. बिहार जीत के साथ ही पीएम मोदी ने बंगाल जीतने का संकल्प इस इशारे के साथ दिया था कि गंगा बिहार से बंगाल ही जाती है. बीजेपी के चाणक्य अमित शाह बंगाल में चुनावी रणनीतियों को धार देने में जुटे हैं. यहाँ भाजपा जहां घुसपैठियों, करप्शन, महिला सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बना रही है वहीं ममता बनर्जी बीजेपी के हिंदुत्व पर ही आगे बढ़ रही हैं. 

    टीएमसी के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर द्वारा मुर्शिदाबाद में बाबरी मस्जिद के शिलान्यास के बाद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को देखते हुए ममता बनर्जी ने हिंदुओं को साधने का प्रयास चालू कर दिया है. पहले उन्होंने जगन्नाथ मंदिर बनाया, अब कोलकाता में दुर्गा आंगन का शिलान्यास किया है. सिलीगुड़ी में महाकाल मंदिर की  स्थापना का भी ऐलान कर दिया है. ममता हिंदुत्व के पिच पर खेलने की राजनीतिक गलती कर रही हैं, हिंदुत्व की पिच बीजेपी से छीनना बहुत आसान नहीं रह गया है.

    ममता बेहद आक्रामक हैं वे सीधे प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री से टकराने में भी संकोच नहीं करती हैं. इसी आक्रामक शैली से उन्होंने वामपंथी सरकार को बंगाल से उखाड़ फेंका था. RSS भी बंगाल जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है, तभी शाह कह रहे हैं कि बंगाल की विजय राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की सभ्यता की रक्षा के लिए जरूरी है. बंगाल में घुसपैठ के कारण डेमोग्राफी बदल रही है. ममता बनर्जी घुसपैठ नहीं रोक सकती हैं. 

    2026 में बंगाल चुनाव में राजनीतिक तनाव बढ़ने की पूरी संभावना है. कांग्रेस और वामपंथियों के लिए बंगाल में अब कोई उम्मीद नहीं बची है. मुस्लिम वोट बैंक अब उन दलों और नेताओं के साथ झुकने लगा है, जो केवल मुस्लिम नाम पर ही राजनीति करते हैं. बंगाल में हुमायूं कबीर इसी तरफ कदम बढ़ा रहे हैं. ओवैसी के साथ तालमेल कर वे चुनाव लड़ेंगे तो निश्चित ही मुस्लिम वोटों को प्रभावित करेंगे. कांग्रेस के लिए बंगाल में अभी भी शून्य है और आगे भी यही बने रहने की संभावना है.

    बीजेपी के लिए 2025 की शुरुआत राजनीतिक चिंता के साथ हुई थी. बीजेपी को लोकसभा चुनाव में जो झटका लगा था वह परेशान कर रहा था. 2025 में बीजेपी ने राज्यों में हुए चुनाव में सफलता हासिल कर राजनीतिक आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया है. इस आत्मविश्वास के साथ भाजपा नए साल को आशा की दृष्टि से देख सकती है.

    नए साल में सब कुछ विपक्ष को साबित करना है, भाजपा को नहीं. एक युवा नेता को कार्यकारी अध्यक्ष चुनकर मोदी और शाह ने 2025 में एक बड़ी जंग जीत ली है. RSS की भी इसमें सहमति दिखती है. ऐसा माना जा रहा है कि नये साल में नितिन नबीन को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित कर लिया जाएगा. अध्यक्ष के नेतृत्व में मोदी और शाह की ताकत अच्छे भविष्य का संकेत कर रही है.

    2025 में SIR का मुद्दा छाया रहा है. नए साल में भी यह जारी रहेगा. राहुल गांधी का वोटचोरी का आरोप और अडानी-अंबानी का एजेंडा नए साल में भी पहले की तरह ही चलता रह सकता है. चुनाव में मुफ्त उपहार की संस्कृति अब वित्तीय विवेक की सीमा से बाहर जा चुकी है. इस पर नए साल में भी रोक लगने की संभावना नहीं दिख रही है. 

    राजनीति का भगवा मौसम 2025 जैसा 2026 में भी बना रह सकता है. हर राजनीतिक दल को चुनावी जीत के लिए हिंदुत्व के प्रति अपना झुकाव दिखाना पड़ सकता है. ममता बनर्जी का मंदिर प्रेम इसकी बानगी है. राजनीति की दिशा भगवामय बनी रह सकती है. राम मंदिर की धर्म ध्वजा का प्रभाव चुनावी राज्यों में देखा जा सकता है.