कानून का पालन करने वाले ही कानून तोड़ने लगे तो फिर अपराधी और अफसर में अंतर कैसे बचेगा? जब ऐसा अफसरों के राजा आईएएस ही करने लगे तो फिर तो कोई नहीं बचेगा, किसी को भी पीटा जा सकता है, किसी को भी रेत में गाड़ा जा सकता है, किसी से भी अभद्रता की जा सकती है..!!
IAS एक व्यवस्था है, तानाशाही नहीं है. यह पद भी नियम प्रक्रिया से ऊपर नहीं है. जब पद की ताकत दिमाग में चढ़ जाती है तब नरसिंहपुर जैसी घटनाएं सामने आती हैं. किसी को भी मारने के लिए हाथ उठाना बिना दिमागी गर्मी के नहीं हो सकता है. गलती कुछ भी हो लेकिन हाथ उठाना उसका निदान नहीं है.
नरसिंहपुर के जिला पंचायत सीईओ नर्मदा के बरमान घाट पर पहुंचकर जब एक व्यक्ति को घाट के पीछे पेशाब करते देख पीटने लगते हैं, जब एक पुजारी विरोध करते हैं तो उनको रेत में गड़वाने की धमकी देते हैं. यह लहजा और व्यवहार गुंडों और लफंगों का तो हो सकता है लेकिन एकआईएएस अफसर से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. उनसे अपेक्षा तो यह है कि घाट पर सुलभ शौचालय बनवाते, जिससे किसी को भी सार्वजनिक स्थान पर गंदगी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती.
नर्मदा और उसके किनारे घाटों की सफाई प्राथमिकता है. सफाई के लिए आम आदमी की सफाई तो नहीं की जा सकती है. वैसे भी नर्मदा से रेत की सफाई तो हो ही रही है, जो आईएएस आम आदमी पर इतना आगबबूला हो रहे हैं उन्हें नर्मदा में अवैध रेत खनन दिखाई नहीं पड़ता है लेकिन वे या तो आंखें मूंदे हुए हैं या इतना साहस नहीं है कि रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई कर सकें.
IAS ने जिस युवक को पीटा, पुजारी को धमकाया, वे कानून की शरण ले रहे हैं लेकिन जब शिकायत आईएएस के खिलाफ हो तो फिर तो एक्शन की संभावना कहां बचेगी. वह तो वीडियो वायरल न होता तो अफसर की दादागिरी का अंदाज ही नहीं लग पाता.
यह अकेली घटना नहीं है जब IAS सर्विस को उसके केडर ने ही लजाया हो. राज्य में अभी संतोष वर्मा का मामला सुर्खियों में ही है, उनके फर्जी प्रमोशन पर कार्यवाही का मामला विचाराधीन है. ब्राह्मण समाज के खिलाफ उनकी जातिगत टिप्पणी पर समाज आंदोलनरत है.
‘सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का’ यह कहावत शायद IAS अफसरों पर ही बनी है. इस केडर के गौरव बढ़ाने वाले भी बहुत हैं लेकिन बदनाम करने वाले भी कम नहीं. कार्यपालिका का पूरा नियंत्रण इसी सर्विस के पास होता है. राजनीतिक कार्यपालिका तो निर्णय करती है इंप्लीमेंटेशन तो IAS के जिम्मे ही होता है. अगर सुशासन कुशासन का रूप ले रहा है तो उसके लिए यह सर्विस ही जिम्मेदार मानी जाएगी.
हर विभाग और व्यवस्था में IAS ही निर्णायक है. अगर सिस्टम में करप्शन है जनता को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं तो इस सर्विस के अफसर अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते हैं. आईएएस सर्विस को ईगो चाटता जा रहा है. आम लोगों से सामान्य व्यवहार और शिष्टाचार जैसे उनकी ट्रेनिंग का हिस्सा ही नहीं होता.
जिनके हाथ में पॉवर है उनसे रूल्स, रेगुलेशन और निर्धारित मापदंडों पर आचरण की उम्मीद होती है. इसके विपरीत ऐसा दिखाई पड़ता है कि ज्यादातर केसेस में पॉवर हाथ से दिमाग पर चढ़ जाता है, उनकी सनक और सोच ही प्रशासन की शैली बन जाती है. ना कोई नियम मायने रखता है, ना प्रक्रिया.
प्रशासन में भ्रष्टाचार से भले ही जनता परेशान हो, इसके लिए छोटे-मोटे अफसर तो पकड़ लिए जाते हैं लेकिन आईएएस पर हाथ नहीं डाला जाता. इसका कारण शायद यह है कि सिस्टम के सारे निर्णायक पद पर बैठे लोग ‘मौसेरे भाई’ जैसा व्यवहार करते हैं. सारे नियम लिखित रूप से होते हैं. कोई भी एक्शन किसी की मर्जी पर नहीं होता लेकिन अफसर बदलते ही एक्शन बदल जाते हैं. इससे साफ़ होता है कि एक्शन नियम प्रक्रिया पर नहीं अफसर की मर्जी पर चलते हैं.
ब्यूरोक्रेसी जैसा ही ज्यूडिशरी में भी दिखने लगा है. हर स्टेज पर केस का फैसला बदलना सामान्य बात है. कानून एक ही है लेकिन न्यायमूर्ति की नजर उनको अलग-अलग तरह से देखती है.अभी जो बड़े मामले देश में जो चर्चा में है उनमें अरावली पहाड़ी और उन्नाव रेप कांड पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की चर्चा है.
पहले सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर जो फैसला दिया था अब खुद कोर्ट ने उसे बदल दिया है. इसी प्रकार उन्नाव रेप केस में सजा निलंबित करने और जमानत देने के हाईकोर्ट के फैसले को भी स्टे कर दिया गया है. इन दोनों मामलों में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था. अब तो यहां तक कहा जा रहा है कि जन भावनाओं के दबाव में ये फैसले आए हैं.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में पूरा तंत्र जनता की सेवा को है. असली मालिक वही आम आदमी है जिसकी पिटाई की जा रही है. सारा तंत्र लोकसेवक के नाम पर जन-धन का उपभोग कर वास्तविक मालिक को शासित करने का अहंकार पाले है. अहंकार तो रावण का भी नहीं चला फिर किसी नौकरशाह का कैसे चल सकता है?
यह अस्तित्व का नियम है, कर्म का फल मिलेगा, आज नहीं तो कल मिलेगा, जो आपने दिया है वही आपको लौट कर मिलेगा. आम आदमी पर हाथ उठाने वाले CEO का लंबा कार्यकाल बचा हुआ है. आम आदमी से जो व्यवहार उन्होंने किया है उसका जवाब उनको सेवाकाल में ही जरूर मिलेगा. हाथ चलाने से नाम नहीं ऊंचा होगा. इसके लिए तो कुछ सकारात्मक काम करना होगा.