राष्ट्रीय चरित्र के बिना कोई देश आगे नहीं बढ़ सकता. राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में राजनीतिक चरित्र की महत्वपूर्ण भूमिका है. राजनीतिक चरित्रहीनता अब राष्ट्रीय चरित्र को प्रभावित करने लगी है. चरित्रहीन राजनीति सत्ता के चमत्कार का सफलतम मॉडल बनती दिखाई पड़ रही है.
देश में कहीं ना कहीं चुनाव होते ही रहते हैं. राष्ट्रीय दल राज्य के चुनाव में चमत्कार के लिए ऐसे-ऐसे विरोधी कारनामे करते हैं जो राजनीतिक पंडितों को भी चौंकाते हैं. कर्नाटक में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का वायदा करने वाली कांग्रेस ने एमपी में बजरंग दल को प्रतिबंधित नहीं करने का ऐलान किया है. मंत्री-मुख्यमंत्री ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री जन-धन से शासकीय सुविधाएं लेते हैं.
इसलिए उन्हें भी एक प्रकार से संवैधानिक दायित्व पर ही माना जाएगा. हिंदुत्व और हिंदूराष्ट्र की राजनीति अब कोई छिपा हुआ विषय नहीं बचा है. इस पर सारा खेल खुला हुआ है. कोई एक दल नहीं अब तो कमोबेश हर राजनीतिक दल अपनी चुनावी राजनीति हिंदुत्व के सहारे के बिना आगे बढ़ाने की हिम्मत ही नहीं कर पा रहे हैं.
एमपी में कांग्रेस की चुनावी रणनीति दो बड़े नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के इर्द-गिर्द घूम रही है. कमलनाथ हिंदुत्व की राजनीति को चुनावी चमत्कार के लिए अपनाते हुए दिखाई पड़ रहे हैं तो दिग्विजय सिंह अपनी सेकुलर इमेज पर किसी भी तरह से धब्बा नहीं लगने देना चाहते. कमलनाथ ने देश में हिंदुओं की जनसंख्या के आधार पर यहां तक कह दिया कि जिस देश में 80% जनसंख्या हिंदुओं की हो उस देश को कौन सा देश कहा जाएगा?
उनकी इस बात को सोशल मीडिया पर इस रूप से प्रचारित किया गया कि उनका मानना है कि भारत हिंदू राष्ट्र है. अब प्रदेश के दूसरे बड़े नेता दिग्विजय सिंह का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इसमें वह कह रहे हैं कि संविधान की शपथ लेकर पद पर बैठने वाला कोई भी व्यक्ति हिंदूराष्ट्र की बात करता है तो उसे पहले संवैधानिक पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए.
निश्चित रूप से यह बात संविधान सम्मत है. जो भी संवैधानिक पद पर है, संविधान में वर्णित राष्ट्र की बात ही कर सकता है. संविधान को चुनाव में दोहराने की जरूरत क्यों पड़ती है? चुनाव में गुड गवर्नेंस और विकास का मॉडल राजनीतिक दलों का एजेंडा होना चाहिए लेकिन सुर्ख़ियों में रहती हैं हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, बजरंग दल और इसी तरह की असंगत बातें.
कर्नाटक की जीत के बाद उत्साहित कांग्रेस मध्यप्रदेश में मुद्दों से भटकती हुई दिखाई पड़ रही है. करप्शन फ्री विकास और गवर्नेंस स्थापित करने के लिए कांग्रेस की किसी भी बात को मापने के लिए मतदाताओं के पास अनुभव का पैमाना है. मध्यप्रदेश सहित देश के कई राज्यों में कांग्रेस लंबे समय से शासन कर चुकी है. इसलिए इन विषयों पर लोगों के अनुभव निर्णायक साबित होते हैं.
कर्नाटक में बजरंग दल पर वायदे के मुताबिक कांग्रेस की सरकार अभी तक प्रतिबंध नहीं लगा सकी है. एमपी में कई नेता पहले यह घोषणा कर चुके हैं कि कर्नाटक जैसे एमपी में भी बजरंग दल को प्रतिबंधित किया जाएगा. दिग्विजय सिंह कांग्रेस के चाणक्य माने जाते हैं. उन्होंने यह भांप लिया कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात न तो कांग्रेस के बूते की बात है और न ही चुनावी फायदे की. एमपी के चुनाव में यह मुद्दा कांग्रेस के खिलाफ उपयोग किया जा सकता है इसलिए शायद उन्होंने पहले ही यह ऐलान कर दिया कि बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का आवश्यकता नहीं है.
हिंदुत्व की राजनीतिक विचारधारा के नाम पर भारतीय राजनीति ऊपर से तो विभाजित दिखाई पड़ती है लेकिन चुनाव के समय हर दल हिंदुत्व पर सवार होने लगा है. इसे राजनीतिक दलों की चालाकी ही कहा जाएगा कि बुनियादी मुद्दों पर मतदाताओं को ध्यान केंद्रित करने का अवसर नहीं दिया जाता. ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं जो चर्चा में बने रहते हैं और चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. महंगाई,बेरोजगारी आज चुनाव में ये मुद्दे शायद इसीलिए नहीं बन पा रहे हैं क्योंकि कोई भी दल इनके लिए जवाबदारी से बच नहीं सकता.
राजनीतिक संघर्ष राष्ट्रवाद की अपनी-अपनी विचारधारा पर सिमट गया है. स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन के समय लाल किले पर विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति बीजेपी के राष्ट्रवाद के विरुद्ध कांग्रेसी राष्ट्रवाद गढ़ने की कोशिश कही जाएगी.
चुनावी वादे और चुनावी चेहरे, चुनावी राजनीति तक तो अलग ढंग से प्रस्तुत किए ही जाते हैं नतीजों के बाद तो सरकारें इनको पीछे धकेल देती हैं. राज्य के दिवालियेपन की कीमत पर भी चुनावी राजनीति में वायदों के दांव लगाए जाते हैं. राजनीतिक चरित्र का दोगलापन देखने और महसूस करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती. चौबीसों घंटे चारों तरफ इनके दर्शन किए जा सकते हैं.
कोई भी राजनेता दूसरे राजनेता को चरित्रवान और देशभक्त मानने को तैयार ही नहीं होता. चरित्रहीन राजनीति का सबसे बड़ा लक्ष्य ही होता है कि किसी की भी छवि चरित्रवान कायम नहीं रहने दी जाए. राजनीतिक चरित्र का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. कथनी और करनी स्वर्ग लोक और नरक लोक का दर्शन कराती है. चुनावी चमत्कार के लिए चरित्रहीन राजनीति भले ही तात्कालिक रूप से लाभ पहुंचाए लेकिन कालांतर में ऐसे हालात सियासी दल के पतन का रास्ता ही बनते हैं.
सिंहासन पर पहुंचकर भी चरित्रहीन व्यक्तित्व अपराधी भाव में ही बना रहता है. इसके विपरीत चरित्रवान व्यक्ति सड़क पर भिक्षावृत्ति करता हुआ भी सम्राट के भाव में ही जीता है. जो संगठन, जो विचार, जो व्यक्ति अपने कथन पर कायम नहीं रह सकता, जीत के लिए धोखे और फरेब को हथियार बनाने से पीछे नहीं हटता उसे ही चरित्रहीन राजनीति का पर्याय कहा जाता है.
नफरत और मोहब्बत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. नफरत का अभाव ही मोहब्बत है. नफरत ही नहीं मोहब्बत भी बांटती है. मोहब्बत चाहे श्रेष्ठता की हो, सत्ता की हो या जिस्मानी हो, वह मल्कियत में हिस्सेदारी स्वीकार नहीं करती.
एमपी में कांग्रेस का कन्फ्यूजन बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है. कांग्रेस परिणाम अपने हाथ में मानकर बिना परीक्षा के ही अति आत्मविश्वास के कारण मुद्दों के मामले में भटकती नज़र आ रही है. बजरंग दल को लेकर ‘कर्नाटक में तलाक एमपी में निकाह’ का कांग्रेसी स्टैंड चुनावी परिदृश्य पर कितना असर डालेगा यह बीजेपी और कांग्रेस के अलावा तीसरे दलों की सक्रियता पर भी निर्भर करेगा.