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सेवा के बहाने अकूत धनार्जन सभी बुराइयों की जड़

सार

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कह दिया कि, छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ नहीं, यहां सब गड़बड़ है. कमलनाथ को बहुत बुरा लग गया वह कह रहे हैं, छिंदवाड़ा वासियों का यह अपमान है. कमलनाथ यह भी आरोपित कर रहे हैं, कि मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य छिंदवाड़ा के आदिवासी समाज, मेहनतकश नौजवान माता-बहनों और किसानों का अपमान है. गढ़ और गड़बड़ किसी क्षेत्र का नहीं होता बल्कि इसके लिए कोई व्यक्ति जिम्मेदार होता है..!!

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विस्तार

कमलनाथ अगर छिंदवाड़ा को अपना गढ़ मानते हैं, तो फिर इस पूरे क्षेत्र में हो रही, गड़बड़ियों के लिए,गलतियों के लिए उन्हीं को जिम्मेदारी भी लेनी होगी. मुख्यमंत्री ने अगर कमलनाथ की गड़बड़ियों का खुलासा करने की बजाय गड़बड़ के सूत्र में ही अपनी बात कही है, तो कमलनाथ को उन्हें पूरे ख़ुलासे करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए?

कमलनाथ के समर्थक कांग्रेस छोड़कर दूसरे दलों में शामिल हो रहे हैं, तो यह कमलनाथ और कांग्रेस की गड़बड़ के कारण कर रहे होंगे. मध्य प्रदेश में 17 हज़ार कांग्रेस जन अगर पार्टी छोड़ चुके हैं, तो इसे गड़बड़ नहीं तो और क्या कहा जाएगा? 

कमलनाथ मुख्यमंत्री के रूप में अपने विधायकों को एकजुट नहीं रख सके, तो इसे उनकी गड़बड़ नहीं तो, क्या कहा जाएगा? कमलनाथ के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में, मध्य प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सरकारी संसाधनों से धन उगाहने का अगर आरोप लगा तो क्या यह कमलनाथ की गड़बड़ नहीं कही जाएगी? 

कमलनाथ के सहयोगियों के यहां पड़े आयकर छापों में उजागर हुए तथ्यों के बाद, वरिष्ठ अधिकारियों को जांच का सामना करना पड़ा, तो क्या यह गड़बड़ नहीं कही जाएगी?  कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को निश्चित राशि की सीमा तक फ्रीज़ करने की कार्यवाही के पीछे, आयकर को तथ्यों की मिली जानकारी के लिए, अगर कमलनाथ के सहयोगियों के यहां पर छापे जिम्मेदार हैं, तो क्या यह गड़बड़ी नहीं मानी जाएगी? 

छिंदवाड़ा में जल संसाधन विभाग में, ठेके में गड़बड़ी के लिए, आर्थिक अपराध ब्यूरो में प्रकरण दर्ज किया गया है. यह प्रकरण कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए, बिना काम शुरु हुए एडवांस के रूप में ठेकेदार को, बड़ी राशि दिए जाने के लिए, दर्ज किए गए हैं, तो क्या यह सरकार में कमलनाथ की गड़बड़ी नहीं मानी जाएगी?

आदिवासी बहुल्य छिंदवाड़ा ज़िले में महिलाओं को पीने के पानी के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है. स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थितियां क्या वहां संतोषजनक है? छिंदवाड़ा में मेडिकल कॉलेज कमलनाथ के गढ़ में 40 सालों के बाद ही खोले जाने की स्थिति बनना, क्या विकास के प्रति उनकी सोच में, गड़बड़ नहीं है?  छिंदवाड़ा के विकास  के मॉडल के नाम पर कांग्रेस की सरकार के समय करोड़ों रुपए का दुरुपयोग और गड़बड़ी क्या कमलनाथ के लिए सामान्य बात है?

कर्मों का हिसाब सबको देना होता है. यह सारा हिसाब इसी जगत में होता है. कमलनाथ और उनके परिवार ने छिंदवाड़ा के नाम पर अकूत धन-संपत्ति बटोरी है. बिना खास उद्योग पर उद्योगपति का तमगा लगाए, कमलनाथ अपने चुनावी घोषणा पत्र में, पॉलिटिक्स को ही अपना प्रोफेशन बताते हैं. जो नेता पॉलिटिक्स को सेवा के बदले प्रोफेशन मानता है, उसने तो नियत के स्तर पर ही गड़बड़ शुरु कर दी.

छिंदवाड़ा और छिंदवाड़ा वासियों से कमलनाथ को इतना प्रेम है, तो फिर लोकसभा के लिए छिंदवाड़ा के निवासियों में से कोई उपयुक्त प्रत्याशी, उन्हें क्यों नहीं मिला.

गड़बड़ी का शाब्दिक अर्थ अस्त-व्यस्त, अंड-बंड और ऊटपटांग होता है. गड़बड़ का मतलब होता है कोई काम गलत तरीके से करना. अगर कमलनाथ छिंदवाड़ा में ग़लत तरीके की राजनीति नहीं कर रहे होते, तो छिंदवाड़ा के कार्यकर्ता कांग्रेस छोड़कर क्यों जाते?

दीपक सक्सेना को तो कमलनाथ की छाया माना जाता था. छाया ही अगर साथ छोड़ने लगे तो फिर इसे ग़लती कहा जाएगा, गड़बड़ी कहा जाएगा या नहीं कहा जाएगा. चुनाव में सार्वजनिक मंचों से अश्रुधारा बहाकर संवेदनशील जनता का भावनात्मक शोषण, राजनीति की पुरानी स्टाइल है. ऐसी स्टाइल अगर सफल भी हो जाती है, तो इससे गड़बड़ समाप्त नहीं हो जाती. अपनी खुद की गड़बड़ी को छिंदवाड़ा के आदिवासी नौजवानों, माता-बहनों से जोड़ना गड़बड़ी से आगे राजनीतिक बदमाशी कही जाएगी.

हीनता और गड़बड़ सोच अवचेतन में होती है. खुद पर गड़बड़ी के आरोपों को लोगों से जोड़कर कमलनाथ द्वारा दी गई प्रतिक्रिया, राजनीतिक धूर्तता का बहुत बड़ा उदाहरण है. 

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को बर्बादी की कगार तक पहुंचाने के लिए कमलनाथ के अलावा और कौन ज़िम्मेदार हो सकता है? विधायकों को चलो-चलो करके अपमानित करने का अहंकार, राजनीतिक गड़बड़ नहीं, तो और क्या है?

कोई भी व्यक्ति अपनी किसी भी कमी को बहुत लंबे समय तक छिपा नहीं सकता है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ विधानसभा चुनाव के परिणामों से ही एक्सपोज़ हो गए हैं. कांग्रेस आलाकमान की नजरों में भी उनका पूरा एक्स्पोज़र हो चुका है. अब तो छिंदवाड़ा के लोगों ने भी, उन्हें पहचानना शुरु कर दिया है. शायद इसीलिए छिंदवाड़ा में लोग कांग्रेस छोड़ रहे हैं.

हर समय सफल रहने की कामना ही मानव की, बुनियादी कमजोरी है. हर समय कोई सफल नहीं होता. कमलनाथ को तो ईश्वर ने बहुत लंबे समय तक राजनीति में सफल और धन-धान्य से परिपूर्ण बनाया है. सफलता उनके सिर पर चढ़कर बोल रही थी. जनसेवा के बहाने धनार्जन में ही गढ़ और गड़बड़ की सारी जड़ें छिपी होती हैं. जब जड़ें हिल जाती हैं, तो पेड़ सूखने लगते हैं, पत्ते पीले होकर झड़ने लगते हैं. सफलता भोगने वाले को, असफलता का स्वाद लेने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. कर्मों का बिना पूरा हिसाब दिए ना कोई इस दुनिया से जा सका है और ना कोई जा सकेगा. 

गड़बड़ी और ग़लती की सजा यहीं मिलती है और वह मिलकर रहती है. यह बात अगर किसी को समझ नहीं आती, तो फिर साथ छोड़ रहे साथियों को देखकर समझ में आ ही जाना चाहिए. संपत्ति से सन्मति नहीं आती.