राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राजनीति के लिए सबसे पसंदीदा विषय बन गया है. समर्थकों के लिए तो है ही, विरोधी भी संघ को अपनी चर्चा में प्रमुखता देते हैं..!!
एक संगठन के रूप में संघ को रहस्यपूर्ण देखा जाता है. सरकार के साथ उसका रजिस्ट्रेशन नहीं करने को ऐसी हवा दी जाती है, जैसे वह कुछ अनहोनी कर रहा है. शताब्दी वर्ष में आरएसएस विरोधी विमर्श में चल रहे ऐसे सभी सवालों का जवाब दे रहा है.
सरसंघचालक कहते हैं कि आरएसएस 1925 में बना था. क्या उस समय ब्रिटिश सरकार में रजिस्ट्रेशन कराया जाता. संघ व्यक्तियों का संगठन है. इसे अदालत ने भी माना है. संघ मान्यता प्राप्त संगठन है, इसे बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स के रूप में स्वीकारा गया है. आजादी के बाद बनी सरकार ने रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं किया. सरकार कांग्रेस की थी, जो रजिस्ट्रेशन पर विवाद खड़ा करते हैं. सरसंघचालक कहते हैं, आयकर विभाग और अदालतों ने भी संघ को बॉडी ऑफ इंडिविजुअल मानकर टैक्स से छूट दी.
संघ पर तीन बार बैन लगाया गया. इसका मतलब है कि सरकार ने भी मान्यता प्रदान की. इतना तार्किक और सीधा जवाब विवाद पैदा करने वालों को वास्तविकता समझने के लिए पर्याप्त है. यह बात सही है कि अगर संघ को एक संगठन के रूप में कांग्रेस या उसकी सरकार नहीं देखती तो फिर उस पर तीन बार प्रतिबंध किस आधार पर लगाया गया. संगठन के रूप में ही उसे बैन किया गया. यह दृष्टिकोण ही बताता है कि कांग्रेस सरकार का बैन ऑर्डर ही इस संगठन की मान्यता का दस्तावेजी प्रमाण है.
संघ पर यह भी विवाद खड़ा किया जाता है कि वह बीजेपी के साथ खड़ी रहती है. इस पर भी भागवत का जवाब कांग्रेस के चिंतन के लिए जरूरी है. उनका कहना है संघ राजनीति पर नहीं राष्ट्र नीति पर खड़े होने वाले को ताकत देता है. संघ समाज को जोड़ने वाला है, जबकि राजनीति स्वभाव से विभाजनकारी है. संघ राजनीति पर नहीं राष्ट्रनीति पर चलता है. संघ का किसी खास पार्टी को समर्थन नहीं होता. भारतीय होने के कारण सभी पार्टियां हमारी हैं. संघ अपने विचार नीति व दिशा की ओर देश को ले जाना चाहता है, जो उस नीति का समर्थन करते हैं, उसे संघ ताकत देता है.
मोहन भागवत कहते हैं, संघ अयोध्या में राम मंदिर बनाना चाहता था. भाजपा इसके पक्ष में थी तो स्वयंसेवकों ने उसे वोट दिया. वहीं कांग्रेस राम मंदिर का समर्थन करती तो स्वयंसेवक उसे भी वोट देते.
संघ पर एक सवाल यह भी उठाया जाता है कि उसमें हिंदुओं के अलावा किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया जाता. इस पर किए गए सवाल पर भी सरसंघचालक कहते हैं, मुस्लिम ईसाई भी शाखा में आ सकते हैं. बशर्ते खुद को भारत माता के पुत्र और वृहद हिंदू समाज का हिस्सा मानें और अलगाव की भावना छोड़कर आएं. संघ में किसी ब्राह्मण या जाति को नहीं बल्कि हिंदुओं को अनुमति है. हम ना तो जाति धर्म पूछते हैं और ना ही इस आधार पर गिनती करते हैं.
पहले भी कई अवसरों पर वह यह बात कह चुके हैं कि भारत में रहने वाले हर व्यक्ति का डीएनए एक ही है. इसका मतलब ही होता है कि हर भारतीय के पूर्वज कई पीढ़ियों पहले एक ही थे. अलग-अलग धर्म की आस्था लोगों ने स्वीकार की, लेकिन भारतीय समाज तो कालांतर में एक ही रहा है. अपने-अपने धर्म पर चलते हुए भी भारतीयता का यह भाव विकसित करना तो एक अच्छा प्रयास हो सकता है.
राष्ट्रध्वज के अपमान का मामला भी कांग्रेस संघ पर लगातार उठाती है. कांग्रेस तो यहां तक कहती है, कि बहुत समय तक आरएसएस के नागपुर मुख्यालय पर राष्ट्रध्वज नहीं फहराया गया. संघ द्वारा भगवा ध्वज और राष्ट्र ध्वज में मतभेद बताने की कोशिश लगातार चलती है. इस पर भी मोहन भागवत ने सटीक जवाब दिया है. उनका कहना है, भगवा ध्वज को संघ में गुरू के रूप में माना जाता है. जहां तक राष्ट्रध्वज का सवाल है, उसके प्रति संघ का पूरा सम्मान है. देश के राष्ट्रीय ध्वज में भी एक रंग भगवा है.
संघ की यात्रा 100 साल की हो गई है. उसके विचार को देश में स्वीकारिता बढ़ती जा रही है. भाजपा संघ के विचारों का समर्थन करती है, इसलिए संघ उसे ताकत देता है. बीजेपी की राजनीतिक ताकत के पीछे संघ की भूमिका स्वीकारी जाती है. संघ विरोधियों के इस दृष्टिकोण को माना जाए तो भी जनमत का बहुत बड़ा हिस्सा संघ के विचारों के पक्ष में खड़ा दिखाई पड़ता है.
लोकतंत्र विचार और बहुमत पर टिका होता है. जिन विचारों को बहुमत स्वीकार करता है, उस पर ही शासन और राजनीतिक व्यवस्था चलती है.
प्रकृति का कोई धर्म नहीं है. सांस का कोई धर्म नहीं है. सांस के लिए राष्ट्र की धरती और आबोहवा जीवन प्राण बनती है. जो जीवन प्राण है उसके प्रति वंदना का भाव धर्मनिरपेक्षता ही है. पूरे देश को हर नागरिक को एक दूसरे के सह अस्तित्व के साथ रहना है. हर विचार को सुनने, गुनने और धर्म से ज्यादा खुद के और राष्ट्र के प्राण को पुष्पित-पल्लवित करना हमारा दायित्व है.
नागरिक चरित्र निर्माण, सांस्कृतिक गौरव और राष्ट्रनीति संघ की बपौती नहीं हैं. मार्ग कोई भी हो लक्ष्य तो सबका यही होना चाहिए.