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भ्रष्टाचार के भंवर से निकलती चुनावी डगर

सार

लोकसभा चुनाव में सभी मुद्दों को पछाड़ते हुए भ्रष्टाचार बड़ा चुनावी मुद्दा बनता दिखाई पड़ रहा है. पीएम मोदी हर चुनावी सभा में भ्रष्टाचार से जंग का ऐलान कर रहे हैं. अगले टर्म के 100 दिनों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई तेज करने की गारंटी दे रहे हैं तो विपक्षी दल भ्रष्टाचार पर अपने नेताओं के साथ अत्याचार को चुनावी मुद्दा बना रहे हैं..!!

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विस्तार

    अरविंद केजरीवाल बीजेपी के लिए भ्रष्टाचार के प्रतीक तो विपक्षी गठबंधन के लिए भ्रष्टाचार के नाम पर सरकार के अत्याचार का प्रतीक बन गए हैं. आम आदमी पार्टी ने ‘जेल का जवाब वोट से’ चुनावी केम्पेन शुरू किया है. मोदी विरोधी गठबंधन में शामिल पार्टियों और नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े मामले या आरोप महज एक संयोग है अथवा राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, इस पर अलग-अलग राय है.

    आजादी के बाद चले राजनीतिक दौर में पूरी राजनीति ही दागदार हो गई है. बेदाग़ व्यक्तित्व को भी दागदार आरोपित करना जैसे राजनेताओं के लिए समानता का अवसर बन गया है. मतदाताओं ने कई बार यह साबित किया है कि जब भी सरकारों के खिलाफ भ्रष्टाचार पर आरोप पब्लिक के बीच जाते हैं तो भले ही कानूनी रूप से उनके कोई नतीजे सामने नहीं आए हों लेकिन जनता अपने नतीजे निकाल लेती है. कालांतर में यही साबित होता है कि जनता के नतीजे पूरी तरह से सच के करीब थे.

    भारत में खंडित जनादेश और फिर लूले-लंगड़े बेमेल गठबंधन की सरकारों में भ्रष्टाचार का गठबंधन बड़ा आधार हुआ करता था. पूरा सरकारी सिस्टम भ्रष्टाचार के गठबंधन से कराहता रहता था लेकिन कोई भी कार्यवाही करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. इसका कारण शायद यह होता था कि सरकार के गठबंधन में शामिल हाथ ही भ्रष्टाचार में शामिल हाथ होते थे. अगर उन हाथों को पकड़ा जाता तो फिर सरकारों के पांव उखड़ जाते. इसीलिए भ्रष्टाचार पर बातें तो बहुत होती थी लेकिन सख्त कार्रवाई के नाम पर केवल लीपापोती ही देखने को मिलती थी.

    2024 का लोकसभा चुनाव ऐसा पहला चुनाव है जब चुनाव में जाने वाली सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मुद्दा नहीं है. इसके विपरीत सरकार की ओर से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है. सरकार की जांच एजेंसी द्वारा विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच और गिरफ्तारी की कार्यवाहियों को सरकार की तानाशाही तो कहा जा रहा है लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों का निराकरण अदालतों में ही होगा. इसलिए जनता की अदालत में तो मैसेजिंग का खेल चल रहा है. इस खेल में विपक्ष अपनी चाल में ही घिरता दिखाई पड़ रहा है. 

    बीजेपी के बाद कांग्रेस सबसे बड़ा राष्ट्रीय दल है. गठबंधन के नाम पर कांग्रेस ने जैसे दूसरे दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार के हार अपने गले में डाल लिए हैं. अरविंद केजरीवाल कांग्रेस की यूपीए सरकार के खिलाफ ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का आंदोलन करते हुए दिल्ली में मुख्यमंत्री बने थे. जिस कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं को सबसे भ्रष्ट बता जेल भेजने की बात केजरीवाल कह रहे थे उसी कांग्रेस के नेता केजरीवाल के समर्थन में उस समय खड़े हुए हैं जब केजरीवाल को शराब घोटाले के आरोप में जेल भेजा गया है. 

    आम आदमी पार्टी इसे तानाशाही और बीजेपी सरकार का अत्याचार बता रही है लेकिन घोटाले के कानूनी पक्षों पर तो फैसला अदालत में ही होगा. जहां तक जनता की अदालत का सवाल है इसका फैसला तो लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ स्पष्ट हो जाएगा. जनधारणा कभी गलत नहीं होती. भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के  सख्त कदम और विपक्ष द्वारा उसे तानाशाही और अत्याचार बताने के आरोपों पर बन रही जनधारणा लोकसभा चुनाव को प्रभावित करेगी.

    बीजेपी को भी यह जवाब तो देना होगा कि जो दागी नेता दूसरे दलों से उनकी पार्टी में शामिल हो रहे हैं उनकी जांचों और प्रकरणों को ठन्डे बस्ते में क्यों डाला जा रहा है? बीजेपी के लिए यह जनधारणा सही नहीं होगी कि दागी लोगों को पार्टी में शामिल कर भ्रष्टाचार की जांच को धीमा किया जा रहा है. विपक्ष का सबसे बड़ा आरोप यही है कि बीजेपी में जो नेता शामिल हो जाते हैं उनकी जांच बंद हो जाती है और जो दल या नेता बीजेपी का मुकाबला करने के लिए ताकत के साथ खड़े होते हैं उन्हें जांच एजेंसियों के माध्यम से फंसाया जाता है. 

    भ्रष्टाचार का मुद्दा तो पिछले दोनों लोकसभा चुनाव में बना हुआ था. बीजेपी को प्रधानमंत्री  मोदी की छवि का लाभ मिल रहा है. मोदी के विश्वास का मैजिक बीजेपी को चुनावी लाभ दिला रहा है. चुनावी लाभ का मतलब यह नहीं है कि भाजपा नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं.
 
    पीएम नरेंद्र मोदी जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग को तेज करने का ऐलान कर रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि अगले टर्म में बीजेपी के भ्रष्ट नेताओं को भी सबक सिखाया जाएगा. मोदी की हुंकार जितना विपक्ष के नेताओं को डरा रही होगी उतना ही बीजेपी के अंदर भ्रष्टाचार में शामिल नेता भी भयाक्रांत हो रहे होंगे. भ्रष्टाचार से लड़ाई में मोदी सरकार की ईमानदारी और गति पर किसी को कोई शंका नहीं है. शंका तभी पैदा होती है जब समाज में बीजेपी से जुड़े कई नेता भ्रष्टाचार में शामिल दिखाई देते हैं लेकिन उनके खिलाफ न कोई जांच होती है ना कोई कार्रवाई होती है.

    भ्रष्टाचार एक ऐसा कैंसर है जिसका बहुत आसानी से इलाज नहीं हो सकता है. अभी तक मोदी सरकार ने बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में कदम उठाए हैं. डिजिटल गवर्नेंस से भी सिस्टम के करप्शन पर रोक लगी है. मोदी सरकार अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में राजनीतिक दल से संपर्क का नजरिया समाप्त कर हर दल के लोगों को कटघरे में खड़ा करेगी तो फिर विपक्षियों के मुंह अपने आप बंद हो जाएंगे. 

    ऐसा लग रहा है कि एनडीए सरकार का तीसरा टर्म इसी दिशा में आगे बढ़ेगा. बीजेपी के उन नेताओं को सतर्क और सावधान हो जाना चाहिए जिनके हाथ भ्रष्टाचार में कहीं ना कहीं जुड़े हुए हैं. वैसे तो भाजपा राजनीतिक रूप से सत्ता में शामिल नेताओं की अदला-बदली करने में सबसे आगे है. कई राज्यों में तो पूरी की पूरी सरकार के चेहरे बदले जा चुके हैं. राज्यों के मुख्यमंत्री के चयन में तो अप्रत्याशित चेहरों को मौका शायद इसीलिए दिया जाता है कि सिस्टम में नवीनता आए.  सत्ताधारी दलों में सरकार के स्तर पर राजनीतिक परिवर्तन आसान नहीं होते. परिवर्तन करने का साहस और सलीका तभी आता है जब किसी भी राजनीतिक दल के राष्ट्रीय नेतृत्व की नियत और मंशा साफ होती है.

    अगर यह मान लिया जाए कि इस लोकसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार से लड़ाई एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है, ऐसी स्थिति में सभी दलों के नेताओं के भ्रष्टाचार के इंडेक्स और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में उनकी ईमानदारी और साहस को मापा जाएगा तो निश्चित रूप से पीएम नरेंद्र मोदी के कारण बीजेपी का पलड़ा भारी रहेगा. 

    2014 में जब पहली बार पीएम उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी सामने आए थे उसके बाद ही लंबे समय के बाद देश में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी थी. पांच साल बाद हुए चुनाव में भी बीजेपी को पिछले चुनाव से ज्यादा सीट हासिल होना इस बात का सबूत है कि मोदी के नेतृत्व में जनविश्वास बढ़ा है. अब यह लोकसभा चुनाव फिर मोदी के नेतृत्व पर केंद्रित हो गया है. बीजेपी मोदी की उपलब्धियां को अपना सबसे बड़ा चुनावी केम्पेन बना रही है तो विपक्षी दल मोदी के विरोध में अपना पूरा चुनावी केम्पेन संयोजित कर रहे हैं. इस लोकसभा चुनाव में मोदी ही मुद्दा हैं, मोदी ही लक्ष्य हैं, मोदी ही आशा हैं और मोदी ही विरोधियों का डर हैं. 

    चुनावी अभियान चरम पर पहुंचता जा रहा है. देश के जो बुनियादी मुद्दे हैं वह तो हमेशा से थे और रहेंगे. 2019 के चुनाव में जनता से किए गए महत्वपूर्ण वायदों को मोदी सरकार पूरा करने में सफल रही है. कश्मीर में धारा 370 हटाने के साथ ही अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका है. CAA लागू हो चुका है. समान नागरिक संहिता का कानून उत्तराखंड में लागू हो चुका है.

    वायदों को पूरा करने का भरोसा PM मोदी ने जीता है. इसी भरोसे पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के मोदी के ऐलान को जनादेश की कसौटी पर खरा उतरना है. भ्रष्टाचार के मामलों में तकनीकी और कानूनी  लड़ाइयां तो अदालतों में ही लड़ी जायेंगी लेकिन जनता की अदालत में विश्वास का मैजिक और अविश्वास का लॉजिक निर्धारित किया जाएगा. लोकतंत्र का मैजिक किस पर विश्वास करेगा यह चार जून को सामने आ जाएगा. जनता तय कर देगी कि भ्रष्टाचार पर जंग के लिए वह किस पर भरोसा करती है. जिसे भी भरोसा मिलेगा उसे इस जंग को अंजाम तक पहुंचाना होगा.