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इंडिया गेट पर सुभाष प्रतिमा स्थापना गणतंत्र की सच्ची आराधना

सार

बदलते इतिहास में राष्ट्र के साथ पिता और पति का संबोधन भी बदलना चाहिए।

janmat

विस्तार

आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारत के गौरव प्रतीकों में ब्रिटिश विरासत इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापना गणतंत्र की सच्ची आराधना है। भारत का इतिहास बदल रहा है। आजादी के लंबे समय बाद राजनीतिक बदलाव के कारण शिक्षा, संस्कृति और स्वराज आंदोलन के नायकों का नया इतिहास लिखा जा रहा है। यह नायक नए नहीं है, लेकिन इतिहास में सरकारों द्वारा उन्हें वह महत्व नहीं दिया गया जिसके वे हकदार थे। 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ऐसे ही महानायक हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व बलिदान किया। आजाद भारत में स्वतंत्रता के इतिहास को सुविधानुसार और इच्छा अनुसार ज्यादा और कम महत्व दिया गया। अभी तक तो महात्मा गांधी और गांधियन विचारधारा के अलावा आजादी के किसी भी नायक का कोई वजूद दिखाई नहीं पड़ रहा था। यह पहली बार हो रहा है कि नेताजी सुभाष की प्रतिमा राजपथ पर इंडिया गेट में लगाई जा रही है। होलोग्राम प्रतिमा लग चुकी है और ग्रेनाइट की 28 फीट ऊंची प्रतिमा शीघ्र ही लग जाएगी। 

गांधी के साथ नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा राष्ट्रीय महत्व के स्थानों पर लगनी चाहिए थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। आज चाहे लोकसभा हो चाहे विधानसभा हो, सभी जगह गांधी प्रतिमा तो मिल जायेंगी, लेकिन सुभाष की प्रतिमा नहीं मिलेगी।

आजादी की लड़ाई में गांधी जी का योगदान ज्यादा था या सुभाष चंद्र बोस का योगदान कम था, यह आंकलन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इन दोनों महानायकों ने देश के लिए बलिदान दिया। महात्मा गांधी के आजादी के योगदान को याद करते हुए भी देश में बड़ी संख्या में लोग उनके कुछ कामों का विरोध करते हुए भी दिखाई पड़ जाएंगे। धर्म के आधार पर देश का विभाजन उनमे प्रमुख है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ ऐसा नहीं है, उन्होंने जय हिंद का नारा देते हुए भारत की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज बनाई। संघर्ष किया, दुर्घटना में उनकी मृत्यु भी अभी तक रहस्य बनी हुई है। उनके संबंध में गोपनीय फाइलों को भी पहली बार वर्तमान सरकार ने जनता के सामने प्रस्तुत किया है। 

सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज को भारत की पहली सेना मानी जानी चाहिए, लेकिन उसको तो भुला ही दिया गया। दुनिया में शायद ऐसा कोई देश नहीं होगा जहां आजादी के 75 साल बाद आजादी के नायकों को लेकर भी विचारों में मतभेद हो। आजादी के बाद चली अब तक की सरकारों ने महात्मा गांधी के योगदान को ही विशेष रूप से स्वीकार किया। 

आजाद भारत की सरकारों द्वारा उन्हीं से जुड़े इतिहास को देश के सामने रखा गया। महात्मा गांधी का आजादी में योगदान अविस्मरणीय है लेकिन और भी बलिदानी है जिन्होंने आजादी के लिए बलिदान किया। देश के गांव-गांव में आजादी के नायक रहे, जनजातीय नायकों ने भी आजादी की लड़ाई में अभूतपूर्व योगदान दिया। अभी तक इन नायकों को भुला दिया गया था। अब सभी राज्यों में जनजातीय संग्रहालय के माध्यम से इन नायकों को पुनः स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

भारतीय गणतंत्र किसी पार्टी की धरोहर नहीं है। किसी ने पहले कभी गणतंत्र की मजबूती के लिए काम किया है तो उसको स्मरण करना गौरव की बात है, लेकिन भूतकाल के गौरव से राष्ट्र का वर्तमान नहीं चल सकता। भूतकाल के स्वतंत्रता संग्राम इतिहास पर ही जब सवाल हैं तब देश में लागू की गई विकास नीतियों और कार्यक्रमों पर तो सवाल उठना स्वभाविक है ।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर इंडिया गेट पर प्रतिमा की स्थापना और 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह के अंतर्गत सुभाष जयंती को शामिल करने से भारत में नया गणतंत्र शुरू हुआ है। नेताजी सुभाष को  रिकगनीसन देकर भारत में एक ओर जहां अपना अस्तित्व बताया है वही भावी पीढ़ी को स्वतंत्रता इतिहास का सही स्वरूप दिखाने का स्तुत्य प्रयास किया गया है।

इससे गैर गांधियन स्वतंत्रता के नायकों को सरकार द्वारा मान्यता मिलनी शुरू हुई है। गुजरात मे नर्मदा के किनारे सरदार वल्लभ भाई पटेल की सबसे उंची प्रतिमा स्थपित कर एक महानायक को पहले ही सम्मानित किया गया है।

आजादी के बाद से ही लगातार यह बात होती रही कि  सरकारों द्वारा स्वतंत्रता का जो इतिहास सरकारी ढंग से बताया जा रहा है, वह अपूर्ण है, एक पक्षीय है। कई महान नायकों के योगदान को भुला दिया गया है।

खुशी की बात है कि राजनीतिक बदलाव के बाद देश के लोगों की यह शिकायत दूर हुई और गैर गांधियन स्वतंत्रता इतिहास को भी देश के सामने लाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई। इसीलिए कहा  जाता है कि इतिहास बदलता है और दोबारा लिखा जाता है ।

आजादी के इतने सालों में भारत ने खाद्य निर्भरता के साथ अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। आज भारत दुनिया की चौथी सैन्यशक्ति है और पांचवी आर्थिक शक्ति है। इसके बावजूद स्वतंत्रता के इतिहास के मामले में भारत एकमत विचारधारा का नहीं हो सका। आजादी के महानायको को दलों के हिसाब से क्यों देखना चाहिए?

सभी महानायकों को सभी दलों को सम्मान देना चाहिए, ताकि एकमत से भारत का स्वतंत्रता इतिहास भारत की भावी पीढ़ी में भारत की एकता का संदेश पहुंचा सके। आजादी के महानायको को भी गांधियन और गैर गांधियन के रूप में क्यों देखा जाना चाहिए? विकास के मामले में भारत का रूपांतरण हुआ है। लेकिन भारतीय स्वाभिमान और अस्मिता के मामले में कुछ भूतकाल के डॉक्टरों के  प्रेस्क्रिप्शन अभी भी चल रहा हैं। भारत को नए इतिहास की जरूरत है ताकि भारत के नए मूड और जोश को दुनिया के सामने दिखाया जा सके। 

गणतंत्र दिवस के समापन समारोह के रूप में आयोजित किए जाने वाले बीटिंग रिट्रीट में गांधी जी की प्रिय धुन “अवॉइड विद मी” हटाने पर भी विवाद किया जा रहा है। इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति हटाकर वार मेमोरियल ले जाने को भी विवादास्पद बनाया जा रहा है। नया भारत ब्रिटिश राज  के प्रतीकों से हटना चाहता है। इसमें कोई एतराज का विषय नहीं होना चाहिए। क्या अभी भी कुछ लोग ब्रिटिश प्रतीकों को इसलिए कायम रखना चाहते हैं कि उनमे उन्हें अपनापन दिखता है। बदलाव जीवन का क्रम है| नई लोकसभा के निर्माण का भी विरोध किया गया। गुलामी की मानसिकता से कुछ लोग क्यों निकलना नहीं चाहते? भूतकाल पर टिके रहने से क्या लाभ होगा? तरक्की और देश की बेहतरी तो नए-नए प्रयोग और बदलाव से ही होगी।

बदलाव के इस दौर में एक और बदलाव बहुत जरूरी लगता है। महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया जाता है। यह कोई संवैधानिक पद नहीं है। लेकिन गांधी के प्रति सम्मान के लिए यह पदवी दी गई थी, अब यह पदवी भी नए भारत के दृष्टि से पुरातन लगने लगी है। किसी भी राष्ट्र के साथ पिता या पति लगाने का क्या ओचित्य है। राष्ट्रपिता और राष्ट्रपति के संबोधन को भी बदलने की जरूरत है। भले ही राष्ट्रपिता संवैधानिक व्यवस्था ना हो लेकिन अब सरकार को महान स्वतंत्रता के नायकों को "राष्ट्र नायक" के रूप में संबोधित करने की व्यवस्था भारत रत्न के अनुरूप करनी चाहिए। राष्ट्र नायक एक नहीं अनेक हो सकते हैं। इसी प्रकार राष्ट्रपति के संवैधानिक पद के नाम को भी बदलना आवश्यक है। अंग्रेजी में जब प्रेसिडेंट कहा जाता है तो हिंदी में राष्ट्रपति क्यों? राष्ट्रपति को राष्ट्र अध्यक्ष के रूप में संबोधित करना देश के लिए अधिक सम्मानजनक लगेगा।