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पहले चुनाव, जहां एक ही हवा, एक ही भाव

सार

लोकसभा में तीन चरणों का मतदान पूरा हो गया है.आधे से अधिक लोकसभा सीटों का जनादेश EVM में कैद  हो चुका है. तीसरे चरण के मतदान में पहले के दोनों चरणों की तुलना में मतदान बढ़ना खुशी की बात है. यह मतदान और अधिक बढ़ता तो लोकतंत्र ज्यादा मजबूत होता..!!

janmat

विस्तार

      बाकी चरणों में मतदान प्रतिशत बढ़ने की पूरी संभावना है. अब तक 282 सीटों पर मतदान हो चुका है. मतदान प्रतिशत के आधार पर चुनावी नतीजे का विश्लेषण, परिणाम के दिन तक चाय की चर्चा का विषय बने रहेंगे. देश में यह चुनाव एनडीए 400 पार के लिए लड़ रहा है, तो विपक्षी गठबंधन सरकार बनाने के लिए नहीं बल्कि एनडीए को अपना लक्ष्य पार नहीं होने देने के लिए लड़ता दिखाई पड़ रहा है. 

       देश के हर कोने में चुनाव परिणामों को लेकर परसेप्शन क्लियर और कॉन्फिडेंट है. पहले राजनेता अति-आत्मविश्वास में होते थे, इस बार देश की जनता अति-आत्मविश्वास में दिखाई पड़ रही है. यह चुनाव कई राजनीतिक राजवंश के लिए निराशाजनक साबित होंगे. यह लोकसभा चुनाव मोदी वर्सेस मोदी लड़े जा रहे हैं. हर सीट पर बीजेपी, एनडीए प्रत्याशी, नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं. विपक्षी गठबंधन पीएम मोदी की सरकार उनकी नीतियों और उनके भावी राजनीतिक इरादों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. विपक्ष अपना कोई सकारात्मक एजेंडा चुनाव में पेश नहीं कर पा रहा है. मोदी के पक्ष और विपक्ष में ही चुनाव सिमट गया है. लोकसभा चुनाव परिणाम के बारे में राजनीतिक रूप से निरक्षर मतदाता भी स्पष्टता के साथ यह कहता सुना जा सकता है,कि क्या परिणाम आने वाला है. 

    पीएम मोदी के विरोध में चुनावी मैदान में उतरा विपक्षी गठबंधन भी अपनी जीत का दावा नहीं कर रहा है? यह गठबंधन केवल इसी चुनावी चर्चा में व्यस्त है, कि नरेंद्र मोदी को 400 सीटों के पार नहीं जाने देना है. प्रचार अभियान में चुनावी चर्चा जीत और हार की नहीं हो रही है बल्कि सीटों की संख्या की हो रही है. जीत का परसेप्शन दीवार पर लिखी इबारत जैसा स्पष्ट है.

    केवल उत्तर भारत में ही नहीं दक्षिण, पूर्व और पश्चिमी  भारत में एक जैसी चुनावी हवा दिखाई पड़ रही है. यद्यपि दक्षिण भारत में कुछ राज्यों में विपक्षी गठबंधन की संभावनाएं  ज्यादा प्रबल दिखाई पड़ रही है, लेकिन तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी एनडीए सीटें हासिल करने में सफल हो सकता है. इन राज्यों में बीजेपी का मत प्रतिशत तो काफी बढ़ने की उम्मीद है. इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी एक सशक्त राजनीतिक दल के रूप में क्षेत्रीय दलों को चुनौती देने की स्थिति में आती दिखाई पड़ रही है.

    उत्तर भारत के राज्यों में यूपी, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, दिल्ली, पंजाब, छत्तीसगढ़ में 2019 में भाजपा द्वारा जीती गई सीटों की संख्या 2024 में बढ़ने की पूरी संभावना दिखाई पड़ रही है.पश्चिम बंगाल में भी बीजेपी की सीटें बढ़ती हुई दिखाई पड़ रही है. उड़ीसा में भी बीजेपी ग्रोथ की ओर दिख रही है. नॉर्थ ईस्ट में भाजपा अपनी संभावनाओं को मजबूत करती दिख रही है. कर्नाटक और तेलंगाना में बीजेपी की संभावनाओं पर विपक्षी गठबंधन में सवाल खड़े कर रहा है लेकिन चुनाव परिणाम बीजेपी के लिए सकारात्मक रहने की संभावना है.

    मध्य प्रदेश में 2019 के चुनाव में भी मोदी वर्सेस मोदी ही चुनाव हुआ था. इसी कारण मोदी के विरोध की पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा था. इस बार सिंधिया, नरेंद्र मोदी की पार्टी से चुनाव मैदान में हैं. उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है. यद्यपि लोकतंत्र में राजनीतिक राजवंशों का महत्व लगातार कम होता जा रहा है. इस चुनाव में वहीं राजनीतिक राजवंश चुनावी जीत हासिल करने में सफल होते दिखाई पड़ रहे हैं,जिनको मोदी और उनकी पार्टी का साथ मिला है.

    मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा और राजगढ़ दो सीटें हैं, जहां राज्य के दो कद्दावर नेता भाग्य आजमा रहे हैं. छिंदवाड़ा में कमलनाथ के बेटे चुनाव मैदान में हैं, तो राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इन दोनों सीटों परअच्छा खासा मतदान हुआ है. राजगढ़ में तो 2019 के चुनाव की तुलना में लगभग दो प्रतिशत ज्यादा मतदान हुआ है. दो फीसदी अधिक मतदान का मतलब हुआ,कि लगभग तीस से चालीस  हज़ार अधिक मतदान. इस लोकसभा सीट पर लगभग 21 लाख मतदाता बताये जा रहे हैं. इनमें दो प्रतिशत की वृद्धि इसी संख्या के आसपास आएगी. 

    राजगढ़ सीट पर भी कांग्रेस और एनडीए के प्रत्याशी के बीच में मुकाबले के रूप में अगर इस चुनाव का आँकलन किया जाएगा, तो दिग्विजय सिंह की जीत पक्की कहीं जा सकती है. बीजेपी उम्मीदवार के रोडमल नागर के खिलाफ क्षेत्र में नाराजगी भी देखी गई है. लेकिन नागर अपने लिए नहीं बल्कि पीएम मोदी के लिए वोट मांग रहे हैं. राजगढ़ में वोट प्रतिशत बढ़ने से जहां कांग्रेस के समर्थक खुश हैं, कि उनके राजा के पक्ष में यह मतदान हुआ है, तो वहीं भाजपा इसे पीएम मोदी के समर्थन में मतदान के रूप में देख रही है. राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव के परसेप्शन को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है, कि देश में चुनाव की हवा और भाव कमोवेश एक जैसे ही होते हैं. घटते बढ़ते मतदान प्रतिशत से परिणाम का आँकलन करने की बजाय परसेप्शन पर आँकलन करना ज्यादा सटीक बैठता है.

    लोकसभा चुनाव का प्रचार अभियान भले ही हिंदू मुस्लिम विभाजन, मुस्लिम आरक्षण, संविधान खत्म करने और लोकतंत्र बचाने के साथ ही आरक्षण समाप्त करने की साजिश पर सिमटा हुआ है. चुनावी प्रचार अभियान में यह नेगेटिव मुद्दे तो भोजन में अचार पापड़ जैसी भूमिका निभा रहे हैं. इस बार जनादेश का जो सकारात्मक दृष्टिकोण है, वह देश में स्थिर सरकार, मजबूत भारत, मजबूत नेता, सशक्त राष्ट्रवाद, विकास के पैमाने, पुरानी सरकारों से उनकी तुलना और शासकीय योजनाओं के लाभार्थी वर्ग बने हुए हैं. इन सभी पैरामीटर पर, अगर संभावित चुनाव परिणाम का आँकलन किया जाता है, तो परिणाम की स्पष्टता में कोई संदेह नहीं हो सकता. 

    इसी साल कुछ समय पहले हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह से परिणाम आए हैं, वह भी लोकसभा के परिणाम का संकेत कर रहे हैं. इन चुनाव में महिला वोटर भी बहुत बड़ा फैक्टर है. चुनावी इतिहास बताता है,कि पीएम मोदी को महिला वोटर्स का समर्थन लगातार बढ़ता जा रहा है. यह लोकसभा चुनाव महिलाओं को लोकसभा और विधानसभा में आरक्षण देने की नारी वंदन कानून बनने के बाद पहली बार हो रहे हैं. मध्य प्रदेश में तो लाडली  बहना योजना का डंका  अभी भी बज रहा है. महिलाएं धर्म और जाति की सीमा से ऊपर उठकर पीएम मोदी के समर्थन में दिखाई पड़ रही हैं.

     मुस्लिम महिलाओं का मिल रहा समर्थन भी चुनाव परिणाम का संकेत कर रहा है. पीएम मोदी के मुकाबले विपक्षी गठबंधन के पास प्रधानमंत्री उम्मीदवार का कोई चेहरा नहीं होना भी चुनाव परिणाम की दिशा बता रहा है. 

     अगर इससे ज्यादा संभावित परिणामों पर कोई टिप्पणी की जाती है, तो फिर EVM को अपनी इज्जत बचाना मुश्किल हो जाएगा. तीनों चरणों में कई विपक्षी नेताओं ने EVM पर तो सवाल खड़े ही किए हैं. भले ही सुप्रीम कोर्ट ने EVM पर सवाल पूरी तरह से खारिज कर दिए हो, लेकिन हार  के कारण कोई खुद को तो मानता नहीं है, इसके लिए जिम्मेदार किसी न किसी कारण को बनाना पड़ेगा, और EVM से बड़ा कारण तो कुछ भी नहीं हो सकता. 

     राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस नेताओं के सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो और रील्स उपलब्ध है, जिसमें वह कह रहे हैं कि पीएम मोदी EVM के भरोसे ही चुनाव जीत सकेंगे. जिन्हें मतदाताओं पर भरोसा नहीं है, वह EVM पर भरोसा कैसे कर सकते हैं? 

     लोकसभा चुनाव के परिणाम के लिए तो 4 जून का इंतजार करना ही पड़ेगा. लेकिन जनादेश का परसेप्शन परिणाम की ओर संकेत कर रहे हैं. जनता का अति-आत्मविश्वास लोकतंत्र में विश्वास को बढ़ा रहा है. कहीं भी जनता के बीच चले जाइए, उसके बाद चुनाव परिणाम के लिए किसी ओपिनियन पोल एग्जिट पोल की कोई जरूरत नहीं है. जो दाता है, जो लोकतंत्र का भाग्य विधाता है, वही जब सत्य का बोध कराता है, तो फिर कम और अधिक मतदान से परिणाम आँकने की कोई जरूरत नहीं है.