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पहले धन फिर, सियासी दनादन

सार

अचानक राहुल गांधी की तरफ से अडानी-अंबानी का नाम लेना कम कर दिया गया है, तो पीएम नरेंद्र मोदी ने इन दोनों उद्योगपतियों का नाम लेकर राहुल गांधी पर पलटवार कर दिया है..!!

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विस्तार

    भारत में हमेशा से भामाशाह रहे हैं. सामाजिक और सियासी कामों में भामाशाहों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है. पहले के भामाशाह अब कॉरपोरेट जगत के उद्योगपति हो गए हैं. अब तो इसके लिए कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी CSR फंड बन गए हैं. बिना उद्योग धंधों के कोई भी देश आगे नहीं बढ़ता, बिना उद्योगों के ना तो रोजगार बढ़ता है, ना उत्पादन बढ़ता है और ना ही देश की समृद्धि बढ़ती है.  

    हर सरकार अपने राज्य की समृद्धि के लिए उद्योगों को बढ़ावा देने में कोई कमी नहीं छोड़ती है. जब ऐसा होता है, कि नीतियों की बजाय उद्योगपतियों को टारगेट किया जाता है, देश के वेल्थ क्रिएटर को गाली दी जाती है, तो फिर सियासी लोगों और उद्योगपतियों के रिश्तों पर सवाल खड़े होते हैं. 

   लोकसभा चुनाव में अडानी अंबानी को सियासी भ्रष्ट्राचार का आइकॉन बनाया जा रहा है. कांग्रेस, विशेषकर राहुल गांधी कई सालों से अडानी अंबानी को टारगेट करते रहे हैं. चुनाव प्रचार अभियान में भी इन नामों का जिक्र वह करते रहे हैं. 

   अब अचानक राहुल गांधी की तरफ से अडानी-अंबानी का नाम लेना कम कर दिया गया है, तो पीएम नरेंद्र मोदी ने इन दोनों उद्योगपतियों का नाम लेकर राहुल गांधी पर पलटवार कर दिया है. तेलंगाना की सभा में पीएम मोदी तेलुगु फिल्म RRR की सफलता और कलेक्शन की चर्चा करते हुए तेलंगाना के सियासी ‘RRR’ पर हमला किया. बिना नाम लिए सियासी फिल्म RRR मतलब कि ‘रेवंत रेड्डी,राहुल’ के कलेक्शन का उल्लेख किया.

    पीएम ने यहां तक कहा कि  5 सालों से हर दिन अडानी-अंबानी की माला जपने वाले शहजादे ने अचानक दोनों उद्योगपतियों का नाम लेना क्यों बंद कर दिया? उन्होंने सवाल किया, कि इन उद्योगपतियों से कितना काला धन उठाया है? राहुल गांधी ने इसका जवाब देते हुए कहा ..'काले धन की सरकार जांच कराए'. कांग्रेस की सफाई आई है, कि राहुल तो अपने मुद्दे पर अब भी कायम हैं.

   यह सारे बयान सियासी कदमताल और धनादेश से जुड़े हुए हैं. राहुल गांधी जब-जब अडानी-अंबानी का नाम लेते हैं, तब तब उनका डबल स्टैंडर्ड उजागर होता है. 

  एक तरफ राहुल गांधी अडानी-अंबानी की खिलाफत करते हैं, तो दूसरी तरफ कांग्रेस शासित राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री दोनों उद्योगपतियों का रेड कारपेट वेलकम करते हैं. तेलंगाना में भी इसी प्रकार से हुआ है. थोड़े दिन पहले ही तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनी है. राहुल गांधी लगातार अडानी-अंबानी का विरोध कर रहे हैं, लेकिन तेलंगाना राज्य में कांग्रेस की सरकार ने इन दोनों उद्योगपतियों को निवेश के लिए न केवल आमंत्रित किया बल्कि दिल खोलकर स्वागत किया.

    राज्य सरकार की औद्योगिक नीति का फायदा दिया गया. सब तरह से इन उद्योगपतियों के निवेश को राज्य में सरपट गति दी गई. राहुल गांधी पर पीएम मोदी शायद इसीलिए सवाल खड़े कर रहे हैं, क्योंकि उनकी पार्टी की राज्य सरकार जिन उद्योगपतियों के साथ उद्योग धंधे स्थापित कर रही है, उन्हीं  उद्योगपतियों पर वह करप्शन के चार्ज लगाते हैं.

    ऐसे हालातो में सवाल पैदा होता है,कि तेलंगाना सहित कांग्रेस शासित राज्यों में इन उद्योगपतियों ने राज्य सरकारों के साथ निवेश के लिए भी वैसे ही हथकंडे अपनाए होंगे, जैसे हथकंडों के आरोप राहुल गांधी लगा रहे हैं. राजनीतिक दलों के धन संग्रह के लिए कॉरपोरेट जगत से मुफीद कोई दूसरा हो नहीं सकता. इलेक्टोरल बॉन्ड में भी यही सामने आया है, कि जिन राज्यों में, जिन दलों की सरकारें हैं, उन दलों को ही अधिकांश बॉन्ड मिले हैं. 

   इलेक्टोरल बॉन्ड अवैधानिक घोषित होने के बाद लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया में धन का प्रवाह तो नहीं रुका है. काला धन का प्रवाह भी लगातार दिखाई पड़ रहा है. चुनाव आयोग के निर्देशन में एजेंसियां बड़ी मात्रा में नगदी जप्त कर रही हैं. इसके साथ ही चुनावी राज्यों में करप्शन के मामलों में भी छापे पड़ रहे हैं और नोटों के पहाड़ जब्त हो रहे हैं. जो जब्ती हो रही है, वह अपनी जगह है, लेकिन जो पकड़ में नहीं आ रहा है, उसका तो अनुमान ही लगाया जा सकता है.

    चुनाव में काले धन का उपयोग कटु सत्य है, जब उपयोग कटु सत्य है, तो फिर पार्टियों के पास काला धन आना भी कटु सत्य है. राहुल गांधी पर सवाल इसलिए खड़े हो रहे हैं, कि वह उद्योगपतियों पर करप्शन को लेकर सवाल खड़े करते हैं, एक तरफ सवाल और दूसरी तरफ उन्ही उद्योगपतियों से धन की उगाही, यह तो राजनीतिक भयादोहन की गंभीर आपत्तिजनक प्रक्रिया प्रतीत होती है.

    अडानी-अंबानी पर निजी तौर पर सवाल उठाने की नादानी ना की गई होती, तो शायद पीएम मोदी के सवाल भी इतने प्रभावशाली नहीं होते. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के उद्योगपतियों पर आरोप और उनकी राज्य सरकारों द्वारा इन उद्योगपतियों के वेलकम के डबल स्टैंडर्ड के कारण ही सवालों को बल मिल रहा है. 

     पीएम मोदी ने अगर बोला है, तो यह मान कर चलना चाहिए कि उनके पास कोई ना कोई ऐसे तथ्य हैं, जो उनके आरोपों की पुष्टि करते होंगे. जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उसकी फंडिंग, उसके अकाउंट और इनकम टैक्स उल्लंघन के मामले पहले से ही चल रहे हैं. राजनीतिक दलों को नगद के रूप में चंदा लेने के लिए नियम निर्धारित है.

    कांग्रेस पर आयकर विभाग द्वारा थोपे गए टैक्स की अदालत में लड़ाई चल रही है. आयकर विभाग नियमों का पालन नहीं करने का आरोप लगा रहा है. नियम विरुद्ध धन जुटाने का आरोप लग रहा है. अडानी-अंबानी से काला धन लेने के जो लेटेस्ट आरोप हैं, यह भी आगे चलकर तथ्यों के साथ सामने आ सकते हैं.

   उद्योग जगत पर निजी तौर पर हमला करने की प्रवृत्ति हतोत्साहित होना चाहिए, इससे देश की समृद्धि पर ब्रेक लगता है. सरकार की नीतियों की आलोचना होना चाहिए. नीतियों के इंप्लीमेंटेशन में कानूनी खामियों पर सवाल खड़े किए जाना चाहिए. अडानी-अंबानी समूह आज जो भी उद्योग धंधे कर रहे हैं, उन्होंने भारत में जो भी निवेश किया हुआ है, उससे भारत में वेल्थ क्रिएशन बढा है. भारत के उद्योग जगत ने विदेशों में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

    राहुल गांधी की ओर से अडानी-अंबानी की जो भी आलोचना सामने आती है, उसमें कोई प्रमाण या तथ्यात्मक बात नहीं होती. केवल एनडीए सरकार से जोड़कर उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया जाता है. सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का आरोप लगाया जाता है.

    सार्वजनिक उपक्रमों के डिसइन्वेस्टमेंट की स्कीम, कांग्रेस सरकार द्वारा ही लाई गई थी. अर्थव्यवस्था और डिसइनवेस्टमेंट की पॉलिसी के मामले में मोदी सरकार कांग्रेस के ग्लोवलाइजेशन की पॉलिसी का ही कमोबेश अनुपालन कर रही है. उसमें कोई भी बुनियादी फेरबदल करना दिखाई नहीं पड़ता है,जो डिसइनवेस्टमेंट कांग्रेस की सरकारों में सही पाया गया था वही डिसइनवेस्टमेंट इसी पॉलिसी पर मोदी सरकार में कैसे गलत हो जाएगा? 

   सर्विसेज में क्वालिटी इंप्रूवमेंट के लिए डिसइनवेस्टमेंट के जरिए निजीकरण को प्रोत्साहन कांग्रेस सरकारों की ही नीति रही है. दीपावली पर पटाखे चलाने में जरा सी गलती कई बार खुद का हाथ जला देती है, पटाखा हाथ में फूट जाता है. अडानी-अंबानी का राहुल पटाखा, राहुल गांधी के हाथ में ही फूट गया लगता है. पीएम मोदी ने राहुल गांधी के पांच साल के अडानी-अंबानी जाप को एक हमले से ही धराशायी कर दिया है.

    कांग्रेस के बैंक अकाउंट फ्रीज  होने के हालात निर्मित होने के अंतिम चरण तक आने में भले ही लंबा समय लगा हो, लेकिन उसकी शुरुआत एक आयकर छापे में कांग्रेस मुख्यालय तक भेजे गए नगद पैसों की जानकारी के साथ हुई थी. अडानी-अंबानी से काला धन लेने के आरोपों की, भले ही अभी शुरुआत हो लेकिन इसकी अंतिम परणिति कहां पहुंचेगी, इसकी अभी कल्पना नहीं की जा सकती.

    जो अस्त्र राहुल गांधी ने चलाया था, उसका मुंह कांग्रेस की तरफ ही मुड़ गया है. जिन उद्योगपतियों को आरोपों के कटघरे में खड़ा किया था, अब उन्ही उद्योगपतियों से अगर कोई धन लिया गया है, तो फिर कांग्रेस की क्रेडिबिलिटी उन्हीं उद्योगपतियों के हाथों में पहुंच गई है. यद्दपि कांग्रेस ने अभी तक इन उद्योगपतियों से काला धन लेने के आरोपों का न तो खारिज किया और न ही खंडन किया है.

    जिन उद्योगपतियों को पीएम मोदी का मित्र बताया जाता है.  उनकी जानकारी को भी मित्रवत व्यवहार ही स्वीकार करना चाहिए. राहुल गांधी के सियासी मुद्दे जैसे हर बार मिस फायर होते हैं, वैसे हीअडानी-अंबानी का मुद्दा भी मिसफायर होता दिखाई पड़ रहा है!