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ईंधन और सिकुड़ता बाज़ार

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 23 Jan

सार

पेट्रोल डीज़ल की बड़ी क़ीमत का प्रभाव समाज में दिखने लगा है. यह बात याद रखने की है कि ऊर्जा स्रोत अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं..!

janmat

विस्तार

देश के हर भाग में पेट्रोल डीज़ल की बड़ी क़ीमत का प्रभाव समाज में दिखने लगा है। पेट्रोल और डीजल की मांग में कमी चिंताजनक संकेत है, यह बात याद रखने की है कि ऊर्जा स्रोत अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं। विभिन्न कारणों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े हुए हैं, ऐसे में घरेलू बाजार पर भी दबाव है। बीते २२ मार्च और छह अप्रैल के बीच पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य में १० रुपये की बढ़त हुई, जो कि दो दशकों में एक पखवाड़े में हुई सबसे बड़ी वृद्धि है।

इस वृद्धि का ही यही असर हुआ है कि मार्च के पहले १५ दिनों की तुलना में अप्रैल के पहले १५ दिनों में पेट्रोल की बिक्री लगभग १०  प्रतिशत और डीजल की बिक्री १६ प्रतिशत घट गयी। थोक और खुदरा मुद्रास्फीति की दर भी बहुत अधिक है। मार्च में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ७प्रतिशत तक पहुंच गया। पेट्रोल व डीजल की मांग घटने से वस्तुओं की ढुलाई में कमी आ सकती है।  इससे भी महंगाई बढ़ेगी। बाज़ार पहले से ही आगाह कर रहा हैं कि महंगाई की दर सितंबर तक छह फीसदी से ऊपर रह सकती है।

इस मौसम में देश के कई हिस्सों में बिजली की आपूर्ति बाधित होने के आसार हैं, क्योंकि कोयले की कमी हो रही है। गर्मी की वजह से बिजली की जरूरत बढ़ी हुई है। प्राकृतिक गैसों की कीमतों में भी बढ़त की गयी है। महामारी के इस काल में अभी तक रसोई गैस की मांग लगातार बढ़ती रही है, लेकिन अप्रैल के पहले पखवाड़े में इसमें१.७  प्रतिशत की कमी आयी है। आपूर्ति शृंखला के अवरोधों तथा भू-राजनीतिक हलचलों के कारण औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं की लागत बढ़ रही है।

उसकी भरपाई भी मुद्रास्फीति की एक वजह है। यदि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कारणों से पैदा हुई यह स्थिति अधिक समय तक बनी रही, तो बाजार में मांग में कमी का स्तर अधिक हो सकता है। इससे वर्तमान वित्त वर्ष में वृद्धि दर के अनुमानों को झटका लग सकता है। घटती मांग अर्थव्यवस्था में कुछ समय से हासिल उपलब्धियों पर पानी फेर सकती है। ध्यान रहे, मुद्रास्फीति की चुनौतियों के साथ-साथ अभी भी महामारी के नकारात्मक प्रभाव से हम उबर नहीं सके हैं।

वैसे या विश्व और भारत के संज्ञान में रहना चाहिए कि देश और दुनिया के हालात में बहुत जल्दी कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं होगा तथा आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर अस्थिरता बनी रहेगी। केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक की ओर से भरोसा दिलाया गया है कि मुद्रास्फीति की बढ़ती दर पर उनकी निगाह है।

भारत सरकार ने भी रिजर्व बैंक से ठोस पहल करने को कहा है। जानकारों का मानना है कि रेपो रेट में बदलाव किया जा सकता है। सरकार भी पहले की तरह कीमतों में राहत देने के लिए कुछ कदम उठा सकती है, पर कब कहना मुश्किल है। कृषि उत्पादों के बाजार में आने भी लोगों की जेब को आराम मिल सकता है। यदि मांग नहीं बढ़ेगी, तो उत्पादन भी प्रभावित होगा और रोजगार में भी कमी आ सकती है। इसलिए सुधार के प्रयास जल्दी किये जाने चाहिए।