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स्कूल : सरकार चाहे तो सब कर सकती है

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Wed , 03 Oct

सार

नये और बड़े नामों वाले गैर सरकारी स्कूलों की मशरूम बाढ़ प्रदेश में क्यों आई, कारण पर विचार शुरू हुआ, परिणाम यह आया कि सरकार के स्तर पर दिखाई जा रही उपेक्षा बल्कि एक तरह की संवेदनहीनता ही है जो लोकतांत्रिक प्रणाली में इस इस गोरखधंधे को बढ़ा रहा है जो नागरिक समाज के लिए चिंता का सबक बनता है..!

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विस्तार

और एक दिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सुबह –सुबह अधिकारियों को बुलाकर बैठक ली| मसला,भोपाल के एक स्कूल बस ड्राइवर ने एक नर्सरी में पढ़ने वाली ढाई साल की  मासूम के साथ शर्मनाक हरकत की थी | घटना पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सख्त तेवर दिखाए| उन्होंने पूछा कि इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग ने अब तक क्या कार्रवाई की? बस, प्रदेश के स्कूल खास तौर वे स्कूल जिन्हें सरकार चलाती है याद आ गये |

नये और बड़े नामों वाले गैर सरकारी स्कूलों की मशरूम बाढ़ प्रदेश में क्यों आई ? कारण पर विचार शुरू हुआ, परिणाम यह आया कि सरकार के स्तर पर दिखाई जा रही उपेक्षा बल्कि एक तरह की संवेदनहीनता ही है जो लोकतांत्रिक प्रणाली में इस इस गोरखधंधे को बढ़ा रहा है जो नागरिक समाज के लिए चिंता का सबक बनता है। अमेरिकी  गीतकार बॉब डायलन याद आये। जो अपने एक गीत में वह एक सवाल पूछते हैं कि चीख-पुकार बहुत हो चुकी, इसे सुनने के लिए बंदे के कितने कान होने चाहिए?

 सरकार के स्कूल हैं, प्रदेश का स्कूल शिक्षा विभाग सबसे बड़ा विभाग है |अखबारों में रोजाना ऐसी खबरें और तस्वीरें प्रमुखता से छप रही हैं। सोशल मीडिया पर इन दृश्यों को दर्शाते वीडियो वायरल हो रहे हैं। सब जगह मुख्य मांग यही है कि सरकारी स्कूलों में  व्यवस्था नहीं है | खुद मुख्यमंत्री कुछ दिनों पहले सरकारी स्कूलों को एक निजी बड़े संगठन को सौपने की बात कर चुके है, हुआ कुछ नहीं | पिछले दिनों सरकारी  स्कूलों में नए शैक्षिक सत्र की पुस्तकें उपलब्ध करवाने को लेकर अनेक स्थानों पर आवाज उठी थी। सवाल उठता है कि अध्यापकों की कमी अचानक कैसे हो गई? वास्तव में यह अचानक घटित नहीं हुआ। विधानसभा में बताया था कि स्कूल शिक्षकों के हजारों स्थान खाली थे। हर महीने काफी अध्यापक सेवानिवृत्त भी होते हैं। उनके स्थान पर कोई नई नियुक्तियां नहीं होतीं। 

इस दौरान स्कूली शिक्षा में ऐसे कदम उठाये जो कथित रूप से नई शिक्षा नीति के तहत हैं। प्रदेश में समावेश (मर्जर) के नाम पर कई स्कूलों को बंद किया गया । इनमें कन्या प्राथमिक और कन्या माध्यमिक स्कूल ज्यादा हैं। रेशनलाइजेशन की प्रक्रिया के तहत अनेक स्कूलों से लगभग सभी अध्यापकों को स्थानांतरित कर दिया गया। जो मापदंड बताया गया है उसके अनुसार 1  किलोमीटर में 1 प्राथमिक स्कूल, 3 किलोमीटर के भीतर एक माध्यमिक और 5  किलोमीटर की परिधि में कम से कम 500  विद्यार्थियों पर एक उच्च माध्यमिक स्कूल रहेगा। उच्च एवं सीनियर माध्यमिक विद्यालयों से सभी विषय के अध्यापक होंगे पर बी कागज पर दिखा,नई नियुक्तियां नहीं की गईं। 

आश्चर्य तो यह है कि शिक्षा जैसे अति संवेदनशील विषय पर कहीं कोई सार्वजनिक संवाद या बहस नहीं हुई और इतने दूरगामी महत्व के परिवर्तन कर दिए गए। अध्यापकों की स्थानांतरण नीति को लेकर उनके संगठनों को विश्वास में लेना कभी  उचित नहीं समझा गया। आज प्रदेश में स्कूली शिक्षा के हालात को लेकर जो आवाज उठ रही है उस पर शासन का ध्यान देना ही  हितकर है। यदि सभी सरकारी स्कूलों में पूरी संख्या में अध्यापकों की शीघ्र नियुक्तियां नहीं हुई और बंद स्कूलों को पुनः नहीं खोला गया तो इससे विद्यार्थियों के भविष्य पर गलत असर होगा व जनविश्वास में कमी आयेगी। 

जिन स्कूलों में अध्यापक कम थे उन्हें पूरा करने की मांग अभिभावक कर रहे थे। इसके विपरीत बचे हुए अध्यापकों को भी इधर-उधर कर दिया गया । कुछ  सरकारी स्कूलों में तो एक -दो ही अध्यापक बचे हैं। यदि कोई सरकार यह समझे कि  जनता को बच्चे की भांति लोगों को बहकाया जा सकता है तो यह बड़ी भूल होगी। शासन के मुखिया कह रहे हैं कि सरकार शिक्षा में आमूल चूल परिवर्तन  लाएगी पर कैसे ?। यह बयानबाजी वे अनजाने में  नहीं कर रहे है । वास्तव में व्यवस्था का  सरकारी स्कूलों के प्रति रुख ही यह है कि ये बंद हो जाएं।

जैसी चिंता शिवारज सिंह चौहान ने इस बुरी घटना के बाद दिखाई, उससे चौथाई कभी सरकारी स्कूलों के बारे में निष्पक्ष होकर दिखाई होती तो प्रदेश का नक्शा ही बदल जाता था | इस सरकार को लगभग 20 साल मिले थे| मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  ने कहा कि कितना भी बड़ा स्कूल हो जवाबदार है, जल्द सजा हो| उन्होंने सुबह 7.00 बजे बुलाई आपात बैठक में निर्देश देते हुए कहा कि भोपाल के स्कूल की बस में बेटी के साथ हुई वारदात विश्वास को हिला देने वाली घटना है| सच,इससे बड़ी घटना  सरकार का सरकारी स्कूलों पर ध्यान न देना है | उन्होंने कहा कि दोषी ड्राइवर और आया के साथ-साथ स्कूल प्रबंधन के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाए| उनकी चिंता वाजिब है, ऐसा होना भी चाहिए | सरकार सब कुछ कर सकती है, पर सबसे पहले मृत होते सरकारी स्कूल तंत्र को जीवंत और प्रमाणिक बनाये | इसके बगैर निजी स्कूल का धंधा फलता-फूलता रहेगा और ऐसे अमानुषिक कृत्य होते रहेंगे |