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आरक्षण से लाभान्वित वर्गों में अमीर गरीब की बढ़ती खाई? सरयूसुत मिश्र

सार

ओबीसी को पंचायतों और नगरीय निकायों में आरक्षण का मामला कई दिनों से राजनीतिक चर्चा का विषय बना हुआ था| मध्य प्रदेश सरकार ने तत्परता के साथ ट्रिपल टेस्ट का डाटा जुटाकर ओबीसी आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला बदलवा दिया| एक सप्ताह पहले सुप्रीम अदालत ने आरक्षण समाप्त कर दिया था| अब 50% कुल आरक्षण की सीमा के अंतर्गत पंचायतों और नगरीय निकायों में ओबीसी रिजर्वेशन  के साथ चुनाव कराने की अनुमति दे दी है..!

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विस्तार

सामान्य रूप से ऐसा नहीं माना जा रहा था कि एक सप्ताह में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला बदल सकता है| यद्यपि प्रदेश में विपक्ष इस फैसले को ओबीसी के साथ पूरा न्याय नहीं मान रहा है| फैसले के बाद आरक्षण की प्रक्रिया पूर्ण होने पर यह पता लगेगा कि इसके कारण पंचायतों और नगरीय निकायों में ओबीसी को लाभ होगा या पिछले चुनाव के समय उन्हें जो प्रतिनिधित्व मिला था उसी के आसपास रहेगा| इतना तो निश्चित है कि ओबीसी रिजर्वेशन सर्वोच्च न्यायालय ने मंजूर कर दिया| 

शिवराज सरकार ने पंचायतों और नगरीय निकायों में ओबीसी को 27% आरक्षण का वायदा किया था अदालत के फैसले से बीजेपी का यह वादा अधूरा ही रह गया है। कांग्रेस पार्टी ओबीसी के साथ न्याय नहीं होने की बात कहकर आंदोलन को हवा दे रही है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ओबीसी को अपने साथ जोड़ने के लिए बड़े-बड़े दावे कर रही थी लेकिन हकीकत ओबीसी के सामने आ गई है।

मध्य प्रदेश की यह उपलब्धि अब बाकी राज्यों में राजनीति का कारण बन गई है| महाराष्ट्र सरकार पर बीजेपी हमलावर हो गई है| तो बाकी राज्यों में ट्रिपल टेस्ट के डाटा जुटाने में सरकारें जुट गई हैं| अब मध्य प्रदेश उनके लिए एक नजीर बन गया है| यहां के सिस्टम को ही सभी राज्य अपनाएंगे और धीरे-धीरे सभी राज्यों में ओबीसी आरक्षण के साथ पंचायत और नगरीय निकाय के चुनाव होने के रास्ते खुल जाएंगे|

कम से कम अब ऐसा लग रहा है कि इन संस्थाओं के चुनाव कानूनी लड़ाई में नहीं रुकेंगे| अभी तक तो ऐसा लग रहा था कि आरक्षण की लड़ाई के नाम पर इन संस्थाओं का वजूद ही सवालों के घेरे में आ जाएगा| मध्यप्रदेश में 2019 के बाद अभी तक चुनाव नहीं हो पाए|

चाहे सरकारी नौकरियों में आरक्षण की बात हो या लोकतांत्रिक संस्थाओं में आरक्षण का मामला, आजकल राजनीतिक प्राथमिकता का सबसे महत्वपूर्ण विषय हो गया है|  आरक्षण  के पक्ष और खिलाफ में आवाज उठती रहती है| यह बौद्धिक हमेशा होता रहता है कि आरक्षण का आरक्षित वर्गों और भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है| शोषित, पीड़ित और गरीबों को समानता के अवसर देने के लिए आरक्षण संवैधानिक व्यवस्था है|

इस पर कोई भी एतराज स्वीकार नहीं किया जा सकता| लेकिन यह तो विचार किया ही जाना चाहिए कि आरक्षण से लाभान्वित वर्गों में क्या समानता के साथ सभी जातियों, उप जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है? अभी तक तो ऐसा लग रहा है कि आरक्षित वर्गों में ही अमीर और गरीब की खाई बढ़ती जा रही है| इस खाई को बढ़ाने में अन्य कारणों के साथ आरक्षण भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है|

आरक्षित वर्गों में कुछ खास जातियां, उपजातियां हैं| जिनके द्वारा आरक्षण का भरपूर लाभ उठाया जाता है और इन वर्गों की कई जातियां, उपजातियां हैं जिनको आरक्षण का लाभ बिल्कुल भी नहीं मिल पाता है| इसका कारण यह हो सकता है कि वे जातियां, उपजातियां शिक्षा में पिछड़ी हुई हों| जिसके कारण वह प्रतिस्पर्धा में मुकाबला नहीं कर पा रही हों| प्रतिस्पर्धा बराबरी में होती है|

जब एक उपजाति कमजोर है तो वह उस वर्ग की विकसित जाति से मुकाबला कैसे कर सकेगी| यह सवाल उसी तरह का है जैसा आरक्षण की व्यवस्था करते समय कहा गया था कि अति पिछड़ी जातियां सामान्य वर्गों का मुकाबला इसलिए नहीं कर पा रही हैं क्योंकि सामान्य वर्ग ज्यादा पढ़ा-लिखा, जागरूक और आर्थिक रूप से सक्षम भी है। ऐसे ही हालात अब आरक्षित वर्गों के बीच पैदा हो रहे हैं।

ओबीसी आरक्षण में नौकरियों में क्रीमी लेयर की व्यवस्था की गई है| इसका मतलब है कि सरकार और अदालतों द्वारा यह माना जाता है कि इस वर्ग में बहुत सारी जातियां हैं जो क्रीमी लेयर में आती हैं| क्रीमी लेयर का मतलब मलाईदार तबका, ऐसा तबका जो समृद्ध और प्रभावशाली है, साथ ही बिना आरक्षण के समाज में सभी वर्गों के साथ बराबरी से आगे बढ़ने में सक्षम है|

इसीलिए ओबीसी को नौकरियों में आरक्षण देते समय क्रीमी लेयर का कंसेप्ट लाया गया| वर्तमान में ओबीसी का ऐसा परिवार जिसकी वार्षिक आय ₹8 लाख से ऊपर है उसे क्रीमी लेयर के अंतर्गत माना जाता है| इसका मतलब है कि ओबीसी के उन्हीं परिवारों के बच्चों को नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा जिनकी आय ₹8 लाख वार्षिक से कम है|

क्रीमी लेयर की व्यवस्था SC/ST रिजर्वेशन में नहीं है| यह प्रावधान केवल ओबीसी रिजर्वेशन में है| नौकरियों में ओबीसी रिजर्वेशन के लिए क्रीमी लेयर का आधार बनाया गया है, तो फिर पंचायतों में और नगरीय निकायों में क्रीमी लेयर के आधार को क्यों नहीं देखा जाना चाहिए? क्रीमी लेयर का उद्देश्य है कि इस वर्ग का गरीब से गरीब आदमी आगे आए|

वर्ग के अमीर आदमी आरक्षण के प्रावधान  का पूरा लाभ ना ले जाएं| पंचायतों और नगरीय निकायों में यदि क्रीमी लेयर की व्यवस्था ओबीसी रिजर्वेशन में लागू की जाएगी, तो इन वर्गों के अति गरीब परिवारों को, लोकतांत्रिक संस्थाओं में प्रतिनिधित्व का मौका मिलेगा| ओबीसी के क्रीमी लेयर में आने वाले समूह तो सामान्य लोगों का मुकाबला करते हुए अपना प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में सक्षम है|

भारत में आज राष्ट्रपति अनुसूचित जाति के हैं| क्या जाति के कारण उनके परिवार को  इस वर्ग को दिए गए संविधान के आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए? कई मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से हैं, सांसद, विधायक, मंत्री, आईएएस, आईपीएस और अन्य वरिष्ठ सेवाओं के अधिकारियों के परिवारों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए? 

जो भी लोग राजनीति में संवैधानिक पदों पर, शासकीय सेवाओं में एक बार आ गए हैं और उनकी हैसियत सामान्य वर्ग से कम नहीं है, तो उनको पिछड़ा या गरीब कैसे माना जाएगा? जो लोग पढ़ लिख कर एक बार उसका लाभ लेने के सक्षम हो गए उन्हीं के परिवारों को बार-बार लाभ मिलता रहेगा तो फिर इन वर्गों के अति गरीब लोगों को कभी मौका मिलना संभव ही नहीं हो पाएगा, ऐसा होना संविधान की भावना के खिलाफ होगा।

क्रीमी लेयर की व्यवस्था बहुत तार्किक और समानता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है| आरक्षित वर्गों के बीच ही अमीरी और गरीबी की बढती खाई को रोकना है तो क्रीमी लेयर की व्यवस्था लाना पड़ेगा| भले ही इसमें इस तरह का संशोधन कर दिया जाए कि आरक्षण में शामिल वर्ग के किसी भी परिवार को एक बार लाभ दिया जा सकता है, लेकिन एक बार लाभान्वित होने के बाद उस परिवार को दोबारा उसका लाभ नहीं मिलेगा|

क्रीमी लेयर के नीचे के लोगों को इस व्यवस्था से ज्यादा से ज्यादा लाभ हो सकेगा|  आरक्षण की व्यवस्था में आज कितनी खामियां हैं| मंत्री का बेटा भी आरक्षण का लाभ ले रहा है, आईएएस, आईपीएस, सांसद, विधायक सब के बेटे अपनी जातियों को मिलने वाले आरक्षण का लाभ ले रहे हैं| यह व्यवस्था तो सामाजिक न्याय के खिलाफ लगती है| सबका साथ सबका विकास का मतलब इंडिविजुअल व्यक्ति से है| एक ही परिवार के अनेक व्यक्तियों  को आरक्षण का लाभ और अनेक परिवारों के किसी भी व्यक्ति को लाभ नहीं होना, सामाजिक न्याय नहीं बल्कि अन्याय जैसा है|