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गुजराती अस्मिता बनी राष्ट्रवाद, नतीजों से निकली देश की बात 

सार

भारत का लोकतंत्र अपना भविष्य लगातार इजाद कर रहा है। लोकतंत्र का भविष्य ही भारत का भविष्य बनेगा। भारत को ‘मदर ऑफ़ डेमोक्रेसी’ भी कहा जाता है और भारत में डेमोक्रेसी का अमृत काल चल रहा है। भारतीय लोकतंत्र ने अब तक बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं। गांधी से शुरू भारतीय लोकतंत्र में गुजराती अस्मिता अब राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गई है।  

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विस्तार

गुजरात के चुनाव परिणामों ने यह साबित किया है कि गुजरात और गुजराती निश्चित ही डिफरेंट हैं। चुनाव परिणामों का संदेश भले ही राज्य के लिए हो लेकिन इसके दूरगामी परिणाम राष्ट्रीय स्तर पर परिलक्षित हो रहे हैं। गुजरात और गुजरातियों की लोकल के साथ नेशनल सोच और दृष्टि, चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा संदेश है। 

महात्मा गांधी गुजराती अस्मिता के रूप में दुनिया में भारत के प्रतीक के रूप में स्थापित हुए थे। आजादी के अमृत काल में एक बार फिर गुजराती अस्मिता के प्रतीक के रूप में नरेंद्र मोदी ने दुनिया में अपना स्थान बनाया है। गुजराती गौरव के प्रति मतपेटियों से निकली 'मन की बात' को 'भारत की बात' के रूप में देखना राजनीतिक समझदारी होगी।  

चुनाव परिणामों का विश्लेषण अलग-अलग नजरिए से हो रहे हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस, आप तीन स्टेकहोल्डर थे। बीजेपी मोदी मैजिक के सहारे थी, कांग्रेस गांधी परिवार के नेतृत्व के आसरे टिकी थी और आप को केजरीवाल का सहारा था। गुजरात में मोदी मैजिक ने कांग्रेस और आप का सूपड़ा साफ कर दिया। हिमाचल में भले ही कांग्रेस विजयी हो गई हो लेकिन वहां पर भाजपा अपने वजूद को मजबूती के साथ खड़े रखने में मोदी मैजिक के सहारे ही सफल होती हुई दिखाई पड़ रही है। कर्नाटक, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में लोकसभा चुनाव के पहले चुनाव होंगे। इन चुनावों में फिर इन्हीं परंपरागत स्टेकहोल्डर्स के बीच मुकाबला माना जा रहा है। 

इन राज्यों के चुनाव परिणामों पर तो अभी  कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन नेशनल चुनाव के परिणामों की घोषणा कोई भी राजनीतिक जानकार कर सकता है। नेशनल चुनाव में मोदी मैजिक का मूवमेंट और मोमेंटम थामने की क्षमता अलग-अलग और संयुक्त विपक्ष के रूप में भी करने की स्थितियां दिखाई नहीं पड़ रही हैं। आज का मूमेंट मोदी का है और 24 का  मूमेंट भी मोदी का रहेगा। 

गुजरात में बीजेपी को मिली जीत ने राजनीतिक जानकारों को चौंकाया है। जीत की कल्पना तो सभी को थी लेकिन इस तरह की ऐतिहासिक जीत कि कल्पना किसी ने नहीं की थी की वहां प्रमुख विपक्षी दल को नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। सरकारों के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी स्वाभाविक है लेकिन 27 सालों के शासन के बाद गुजरात में बीजेपी के मतों में  वृद्धि और इसका आंकड़ा 52 % के ऊपर जाना इस बात का संकेत है कि यह जनादेश सकारात्मक है, विपक्षी दलों में मतों के विभाजन का यह जनादेश नहीं है बल्कि इसे मोदी मैजिक के पक्ष में गुजरात मॉडल के लिए जनमत संग्रह माना जा सकता है।  मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी इतना बड़ा जनादेश नहीं मिला था।  प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने देश के साथ-साथ गुजरात और गुजरातियों के साथ अपने भावनात्मक रिश्ते को मजबूती के साथ बनाए रखने की जो सकारात्मक पहल की यह उसके पक्ष में जनादेश है। 

राज्य सरकार के कामकाज के साथ ही मोदी और अमित शाह के गुजराती गौरव की भी यह जीत मानी जाएगी। लोकसभा के पहले देश में नरेंद्र मोदी के पक्ष में मजबूत संदेश देने के लिए गुजरात के लोगों ने इन विधानसभा चुनाव का उपयोग किया है। नेशनल पॉलिटिक्स में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के स्थापित होने के बाद देश में  ‘विजन आफ डेवलपमेंट एंड हिंदुत्व’ का नेशनल मॉडल स्थापित हुआ है। गुजरात मॉडल और नेशनल मॉडल की विश्वसनीयता का परिणाम गुजरात चुनाव नतीजे हैं। 

बीजेपी ने अपना पूरा चुनावी अभियान गुजराती अस्मिता और डेवलपमेंट मॉडल पर केंद्रित किया था। बीजेपी विरोधियों द्वारा महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के नाम पर ऊल जलूल तर्कों और टिप्पणियों को जनता ने नकार दिया। कांग्रेस के नए नवेले अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का ‘रावण’ गुजरात में जलकर खाक हो गया है। कांग्रेस अगर समझदार होगी तो इस तरह राजनीतिक रावण की बात अब वह दशहरे में भी करने से घबराएगी। 

गुजरात की हार कांग्रेस के लिए रिकॉर्ड तोड़ हार है। भारत जोड़ो यात्रा के दौर में रिकॉर्ड तोड़हार कांग्रेस के भविष्य में गांधी परिवार की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रही है। हिमाचल प्रदेश की जीत को नए नवेले अध्यक्ष ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रभाव की सफलता बताकर राजनीतिक चूक कर दी है।  इससे स्थानीय कांग्रेस जनों की अस्मिता पर चोट लगना स्वाभाविक है। 

नरेंद्र मोदी ने गुजरात में चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए कहा था ‘आई  हैव मेड गुजरात’। गुजरातियों ने मोदी के गुजराती अस्मिता के इस स्लोगन पर सोशल मीडिया में तूफान मचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। सोशल मीडिया पर सेल्फी और वीडियो की  बाढ़ आ गई। हर गुजराती मोदी की भावनाओं के साथ जुड़ कर दिखना चाहता था। 

आम आदमी पार्टी भी गुजरात में मुंह के बल गिर गई। अरविंद केजरीवाल सभाओं में गुजरात में उनकी सरकार बनने की लिखित का गारंटी देते हुए घोषणाएं कर रहे थे। जो परिणाम आए हैं उससे आप को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जरूर मिल जाएगा लेकिन चुनाव परिणाम ने केजरीवाल की बातों की विश्वसनीयता समाप्त कर दी है। गुजरातियों ने मुफ्तखोरी को सिरे से नकार दिया है। गुजराती मेहनत के साथ स्वयं की रोजी रोटी कमाना जानते हैं।

राजनीति तो राजनीति है। कोई भी अपने को किसी से कम नहीं मानता। प्रधानमंत्री पर टिप्पणी ऐसे लोकल स्तर से आती है जिसे लोकल में भी टिप्पणी करने की नैतिक शक्ति नहीं होना चाहिए। राजनीति में जो गिरावट देखी जा रही है उसमें भी बदलाव की जरूरत है। इन चुनाव परिणामों ने जातिवाद की राजनीति को भी नकारा है। भारतीय राजनीति में आई मोदी चेतना राजनीति में सुधार का बड़ा आधार अगर बन जाती है तो यह भारतीय लोकतंत्र की बहुत बड़ी सेवा होगी। इसके लिए त्याग, तपस्या के साथ नेशन फर्स्ट की भावना को हर मन में स्थापित करने की जरूरत है। 

मोदी की जीत को मतगणना के दिन ही देखने वाले हमेशा गलत आकलन के फेर में फंसेंगे, जो लोग हर दिन उनके कामों और कदमों पर नजर रखेंगे उन्हें साफ दिखता है कि राज्य और राष्ट्र में विकास की ओर राजनीतिक समीकरण को अपने पक्ष में रखने के लिए हर दिन स्क्रिप्ट को लिखा सुधारा और क्रियान्वित किया जाता है। 

इस जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये शेर फिट बैठता है-

जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का..! 
तब देखना फिजूल है कद आसमान का..!!