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हीरा बा की तपस्या, कर्म, कर्तव्यबोध हमेशा रहेगा जीवित 

सार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2022 का अंत दुख भरा रहा। शताब्दी की उम्र पूरी कर उनकी मां हीरा बा अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गईं। यह सब के जीवन में आने वाली सच्चाई है। किसी के लिए भी मां से पवित्र, प्रिय,अनमोल कोई दूसरा हो नहीं सकता। मां के प्रयाण का लम्हा भावनात्मक रूप से जीवन का सबसे कठिन लम्हा होता है..!

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विस्तार

नरेंद्र मोदी ने मां हीरा बा की त्याग, तपस्या, कर्म और कर्तव्यबोध की शिक्षा को इस सबसे कठिन लम्हे में भी जी कर मां का जीवित स्वरूप दिखाया है। जिस सादगी के साथ प्रधानमंत्री ने अपनी मां के अंतिम संस्कार की क्रियाओं को संपन्न किया है, उससे कर्तव्यबोध का ऐसा संदेश दिया है, जिसमें भारत का भविष्य और कल्याण सुरक्षित दिखाई पड़ता है। प्रधानमंत्री की मां के दुखद निधन पर पूरे देश में दुःख और संवेदना का माहौल स्वाभाविक है लेकिन मोदी परिवार ने सादगी की मिसाल कायम की है। सारे संस्कार रीति रिवाज़ के साथ एक सामान्य नागरिक जैसे पूरे किये गए। 

राजनीति में तो सुख या दुख कोई भी अवसर हो चेहरा दिखाने की होड़ लग जाती है। नरेंद्र मोदी सादगी और कर्तव्यबोध को वरीयता नहीं देते तो आज गांधीनगर में भारत के राजनेताओं का जमावड़ा लगा होता। बीजेपी के ही इतने मुख्यमंत्री मंत्री और नेता हैं कि वहां राज्यों के स्टेट प्लेन खड़े करने की जगह नहीं बचती।  

ऐसे अवसर पर पक्ष के साथ विपक्ष के लोग भी संवेदना व्यक्त करने पहुंचते, इसमें कोई संशय नहीं है। नरेंद्र मोदी और मोदी परिवार ने दुख की घड़ी में यही संदेश दिया कि जो जहां है वहीं मां की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करे लेकिन अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम भी संपादित करे। जिसका जो भी कर्तव्य है उसको पूरा करे। कोई भी काम छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। कर्तव्य के प्रति समर्पण की यह मिसाल भारत में ही देखी जा सकती है। 

वैसे तो कई बार ऐसा देखा गया है कि जब इतने बड़े व्यक्तित्व के परिवार में ऐसी कोई संकट की स्थिति होती है तो यह बहुत बड़ा इवेंट हो जाता है। इसमें बुरा क्या है? अच्छा क्या है? इस पर बहुत अधिक विचार करने से ज्यादा जरूरी यह है कि कौन अपने कर्तव्य को इस सादगी और समर्पण के साथ निभाने की क्षमता रखता है। 

नरेंद्र मोदी की अपनी माता जी के साथ जो बॉन्डिंग थी, वह अक्सर दिखाई पड़ती थी। मोदी बचपन से ही समाज सेवा के लिए अपना घर परिवार छोड़ चुके थे।  उन्होंने अपना सब कुछ समाज के लिए समर्पित कर दिया था लेकिन मां के साथ उनका सतत और सहज संपर्क बना हुआ था।  

नरेंद्र मोदी ने मां को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए ट्वीट में लिखा है- ‘शानदार शताब्दी का ईश्वर चरणों में विराम... मां में मैंने हमेशा उस त्रिमूर्ति की अनुभूति की है, जिसमें एक तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्मयोगी का प्रतीक और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध जीवन समाहित रहा है'।

पीएम ने एक और ट्वीट में लिखा- ‘मैं जब उनसे 100वे  जन्मदिन पर मिला तो उन्होंने एक बात कही थी, जो हमेशा याद रहती है. गुजराती में मां ने कहा था -काम करो बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से’।

मोदी ने मां को याद करते हुए जिन शब्दों का उपयोग किया है, उनमें तपस्वी की यात्रा, निष्काम कर्म योगी और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को मां का प्रतीक बताया है। भारत ने नरेंद्र मोदी की मां के बारे में तो थोड़ा बहुत ही जाना है लेकिन उनकी छाया के रूप में मोदी भारत के प्रतीक बन गए हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री और उसके बाद भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रसेवा के प्रति समर्पण और सादगी भरा उनका जीवन भारत के लिए संदेश बन गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि वह कभी अवकाश नहीं लेते, हमेशा कर्म के लिए समर्पित रहते हैं। मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता मोदी के फैसलों और उनके कामकाज के तरीकों में साफ-साफ देखी जा सकती है। मां का जिक्र करते हुए उनके कठिनाईपूर्ण जीवन और परिवार पालने के लिए किए गए संघर्ष पर कई बार भावुक होते हुए भी मोदी को देखा गया है। 

जीवन को अगर प्रकाश और मृत्यु को अंधकार माना जाए तो प्रकाशमान जीवन के लिए मृत्यु होती ही नहीं है। भारतीय चिंतन में मृत्यु नए जीवन का अवसर होती है। हीरा बा ने अपने कठिन संघर्ष से जैसा प्रकाशपूर्ण जीवन जिया है उसके प्रतिबिंब भारत में विश्वास के साथ दोहराते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। केवल नरेंद्र मोदी नहीं उनका पूरा परिवार सादगी की मिसाल के रूप में देखा जा सकता है। 

जीवन की कटु सच्चाई तो यह है कि एक छोटे से पद पर भी पहुंचने के बाद उस व्यक्ति की और उसके परिवार की उसके सगे संबंधियों की जिंदगी में बदलाव देखा जा सकता है लेकिन प्रधानमंत्री के सगे-संबंधी और परिवार जिस सामान्य और सहज ढंग से आम इंसान की तरह छोटे-छोटे रोजगार और व्यवसाय करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं वैसा भारत में बिरले सफल राजनीतिक परिवारों में ही संभव है। खासकर राजनीतिक जगत में जहां परिवारवाद की राजनीति फलती फूलती हुई दिखाई पड़ती है वहां एक ऐसा परिवार जिसमें एक व्यक्ति राजनीति के शिखर पर पहुंचे और परिवार के दूसरे लोग राजनीति से पूरी तौर से अलग रहें यह कहने और देखने में सामान्य लग सकता है लेकिन जीने में असामान्य है। 

हीरा बा का नाम ही ऐसी मूल्यवान धातु से जुड़ा है जिसको लोग गले से लगाने में जीवन खपा देते हैं लेकिन उन्होंने संस्कार, कर्तव्यबोध, सादगी और समर्पण का हीरा न केवल स्वयं अपने गले से लगाया बल्कि भारत को भी ऐसे ही हीरे को अपनाने और उसी रास्ते पर चलने का मार्ग दिखाया है। हीरा बा का नरेंद्र भारत का हीरा बनकर चमक रहा है। कर्तव्यपथ के इसी भाव का हीरा अगर प्रत्येक भारतीय अपने गले लगाएगा तो भविष्य का भारत दुनिया का सिरमौर बनकर ही रहेगा। मां के अंतिम संस्कार के बाद पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए करने का नैतिक और आत्मबल ‘हीरा बल’ ही हो सकता है।