क्या देश के सांसदों को ये आदेश नहीं मानना चाहिए. हमेशा इस तरह के आदेश निर्देश जारी होते हैं और इनका उल्लंघन होते हुए ही समाज देखता है. सहज प्रश्न है, क्या सांसद संसद के नियमों से ऊपर हैं..!
प्रतिदिन -राकेश दुबे
16/07/2022
गजब है, देश की संसद के सत्र के दौरान जो दृश्य सामने आते हैं, उनकी पुनरावृत्ति पर अंकुश लगाने की पहल ही विवादास्पद हो गई | विपक्ष के बड़े हिस्से कांग्रेस को इस सब पर आपत्ति है |संसद में कुछ शब्दों पर पाबंदी और धरना-प्रदर्शन करने पर भी रोक लगाने की प्रक्रिया सम्बन्धी आदेश को कांग्रेस, भाजपा की साजिश मान रही है। इस सारे मामले को लोकसभा सचिवालय ने बयान जारी कर इस आदेश को प्रक्रिया का अंग बताया है। इस विवाद के चलते यह प्रश्न खड़ा होता है कि क्या देश की संसद ऐसे ही चलेगी जैसी इन दिनों चलती दिख रही है ?
नए आदेश के मुताबिक संसद परिसर में किसा तरह के धरना, प्रदर्शन और अनशन पर रोक लगाने की खबर आने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने इस आदेश की प्रति साझा करते हुए कहा कि विश्वगुरु का नया काम- 'धरना' मना है। इस आदेश को लेकर मोदी सरकार को घेरते हुए कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने कहा कि भाजपा वन पार्टी रूल चाहती है। कोई दूसरा विपक्षी दल न हो, इसलिए भाजपा सबकी आवाज दबाना चाहती है। इन तर्कों को थोड़ी देर के लिए मान भी लें तो यह सवाल संसदीय इतिहास से खोजा जायेगा कि भाजपा ने विपक्ष में रहकर ये सभी वो काम किए हैं, जिनपर आज रोक लगाई जा रही है।
लोकतंत्र में संसद का दर्जा पवित्रतम स्थान का होता है, यह स्थान अभिव्यक्ति की स्वंत्रता की रक्षा करता है। इसके आगे जब कोई सांसद संतुष्ट नहीं होता तो वह प्रदर्शन करता है, गांधी जी की प्रतिमा के नीचे सांसद धरना देते हैं, यह लोकतंत्र का संविधानिक अधिकार है। इस अधिकार की सीमा अनेक बार आज के पक्ष और प्रतिपक्ष द्वारा लांघी जाती है और जब यह कृत्य मीडिया के माध्यम से समाज में आते हैं, तो वे संसद की गरिमा के विपरीत दिखाई देते हैं |इन दृश्यों का प्रभाव विश्व और देश के नागरिक समाज पर उल्टा दिखाई देता है |
इसी सब से मुक्ति के लिए संसद भवन परिसर में धरना, प्रदर्शन, हड़ताल और इस तरह की अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए लोकसभा सचिवालय ने अपने इस आदेश को प्रक्रिया बताते हुए कांग्रेस के आरोपों को खारिज कर दिया है। लोकसभा सचिवालय मुताबिक, संसद भवन में धरना, प्रदर्शन और इस तरह की अन्य गतिविधियों पर रोक का आदेश तो प्रक्रिया है जो सचिवालय द्वारा समय-समय पर जारी किये जाते रहे हैं । क्या देश के सांसदों को ये आदेश नहीं मानना चाहिए ? हमेशा इस तरह के आदेश निर्देश जारी होते हैं और इनका उल्लंघन होते हुए ही समाज देखता है | सहज प्रश्न है, क्या सांसद संसद के नियमों से ऊपर हैं ?
लोकसभा सचिवालय की तरफ से एक शब्दों की एक लिस्ट पर भी विवाद है। इसमें कई शब्दों को असंसदीय शब्द बताकर उनपर पाबंदी लगाई गई है, मतलब इनको लोकसभा और राज्यसभा में नहीं बोला जा सकेगा। इसमें जुमलाजीवी, तानाशाह, शकुनि, जयचंद, विनाश पुरुष, खून से खेती आदि को असंसदीय शब्द बताकर एक लंबी-चौड़ी लिस्ट तैयार की गई।इस नई गाइडलाइंस के अनुसार सांसदों को अपनी भाषा और कुछ शब्दों पर ध्यान देना होगा। संसद के दोनों सदनों में सदस्य अब चर्चा में हिस्सा लेते हुए ऐसे शब्दों के प्रयोग को अमर्यादित आचरण माना जाएगा और वे सदन की कार्यवाही का हिस्सा भी नहीं होंगे।
लोकसभा सचिवालय ने ‘दोहरा चरित्र’, ‘निकम्मा’, ‘नौटंकी’, ‘ढिंडोरा पीठना’ और ‘बिहरी सरकार’ जैसे शब्दों को असंसदीय अभिव्यक्तियों के रूप में सूचीबद्ध किया है। इन शब्दों के अलावा संसद में निशाना साधने के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द जैसे बाल बुद्धि, स्नूपगेट के प्रयोग पर भी रोक रहेगी। यहां तक कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले शर्म, दुर्व्यवहार, विश्वासघात, ड्रामा, पाखंड और अक्षम जैसे शब्द अब लोकसभा और राज्यसभा में असंसदीय माने जाएंगे। यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि आम बोलचाल में प्रयुक्त शब्द जो पूर्णत: शालीन है से परहेज क्यों ?
यह सब दिखाता है, इस पर पूर्ण रूप से विचार नहीं हुआ है | पक्ष और प्रतिपक्ष की पहली जिम्मेदारी संसद की गरिमा है | जो कृत्य इस गरिमा को नष्ट करते हो, उस पर उभय पक्ष को विचार करना चाहिए, सिर्फ विरोध के लिए विरोध न हो कुछ सकारात्मक योगदान उभय पक्ष को होना नहीं, बल्कि साफ दिखना चाहिए | आम बोलचाल की शालीन भाषा से भी परहेज श्रेष्ठी वर्ग की एक नई भाषा को जन्म देगा | वैसे अभी सांसदों को भाषा, भूषा और संस्कारों को परिमार्जित करने की जरूरत भी है |