चुनावी राजनीति में ‘हिंदू-मुस्लिम’ का हिट फॉर्मूला मध्यप्रदेश में भी दोनों प्रमुख दलों का सहारा बना हुआ है. राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हिंदू ध्रुवीकरण को प्रतिष्ठित करने का समसामयिक अवसर बन गया है. राम मंदिर की सक्सेस स्टोरी बीजेपी की पॉलिटिकल स्टोरी है. पॉलिटिक्स में आधारशिला और लोकार्पण का नेतृत्व राजनीतिक ईमानदारी और कर्मठता का सबसे बड़ा प्रमाण होता है..!!
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पब्लिक सेंटीमेंट में पॉलीटिकल पार्टी की निष्ठा और कमिटमेंट की प्राण प्रतिष्ठा को भी बढ़ाएगी. चुनाव में बाकी फार्मूले की सफलता संदिग्ध होती है लेकिन तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण का फार्मूला सफलता की गारंटी साबित होता रहा है. पांच साल समाज में एकता के प्रयास और विचार चुनाव में बेरहमी का शिकार हो जाते हैं. स्थानीय और क्षेत्रीय मुद्दे अगर कारगर होते नहीं दिखते तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे भी अंदरखाने, फुसलाने और बहलाने के लिए उछाले जाते हैं.
इजराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध भी चुनावी महायुद्ध का हथियार बन गया है. युद्ध और आतंक का दुष्प्रभाव जो लोग भुगत रहे हैं उनसे ज्यादा मिसइनफॉरमेशन का दुष्प्रभाव चुनावी राज्यों में देखा जा सकता है. केंद्र की भाजपा सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच इस युद्ध को लेकर मतभेद हैं. सरकार जहां इस्लामी आतंकवाद के सख्त खिलाफ है, वहीं कांग्रेस फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के लिए आतंकवाद पर चुप्पी साध लेती है. धर्म के नाम पर आतंक,बर्बरता, महिलाओं का शोषण और बेगुनाहों की हत्या भले ही इजराइल और गाजा में हो रही हों लेकिन उसका चुनावी बाजा मध्यप्रदेश में भी सुनाई पड़ रहा है.
खरगोन विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से चुनावी सभा में फिलिस्तीन के समर्थन में दो मिनट का मौन रखकर संवेदना व्यक्त करने का वीडियो तुष्टिकरण के राजनीतिक दांव के रूप में माना जा रहा है. सोशल मीडिया के कारण युद्ध के विनाशकारी दृश्य न्यूज़ चैनल और मीडिया में जितना इजराइल और गाजा में दिखाई और सुनाई पड़ रहे होंगे कमोबेश उतनी ही डेंसिटी में भारत में भी ये देखे और सुने जा रहे हैं. इस युद्ध में जो बुनियादी बातें दोनों देशों के बीच झगड़े का कारण हैं वैसे कारण भारत में हर राज्य-जिले और तहसील में उपलब्ध हैं. दंगे हमेशा इजराइल और हमास की सोच और मानसिकता पर ही खड़े होते हैं.
जहां चुनाव की बात हो वहां एक को चुनना है तो दूसरे को रिजेक्ट करना है. घृणा और प्रेम की बुनियाद पर ही चुनाव खड़ा है. चुनाव के प्रत्याशी इस बुनियाद को चौड़ा करके अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ते. बीजेपी राष्ट्रवाद के लिए इजरायल के समर्थन को अपने समर्थकों के बीच ध्रुवीकरण के रूप में उपयोग कर रही है. इस्लामिक आतंकवाद के रूप में हमास की कारगुजारियों और आतंक के क्रूरतम दृश्य के आधार पर ध्रुवीकरण को गति देने की कोशिश की जा रही है. दूसरी तरफ तुष्टिकरण भी ऐसा ही काम कर रहा है. धर्म के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय विवादों को जोड़कर धार्मिक एकता को बढ़ाना और मतों को पक्ष में ध्रुवीकृत करना राजनीतिक कवायद का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.
एमपी चुनाव में पहली बार 2008 में आतंकी गतिविधियों का असर देखा गया था. मुंबई में 26/ 11को हुए आतंकी हमले के बाद 27 नवंबर को मध्यप्रदेश में मतदान था. दूसरे चरण के मतदान में जनादेश आतंक के विरोध में जाते हुए देखा गया था. इजराइल-हमास युद्ध चुनावी राज्यों में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के बड़े मुद्दे के रूप में उछाला जा रहा है. विभिन्न धर्मो के धर्मावलम्बियों के खिलाफ नफरत बढ़ाने के लिए धार्मिक भावनाओं को जोड़ते हुए आतंक और बर्बरता का डर दिखाना किसी भी दृष्टि सेजायज नहीं है लेकिन यह काम सभी तरफ से हो रहा है. सोशल मीडिया पर वीडियो देखकर तो ऐसा लगता है कि चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदू ध्रुवीकरण ही साबित होगा.
हर राज्य में चुनाव तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण पर ही अंततः केंद्रित हो जाते हैं. केरल में ईसाई समुदाय के धार्मिक समारोह पर विस्फोट से बना वातावरण पूरे देश में चर्चित है. हमास के समर्थन में भारत में भी धर्म के आधार पर प्रदर्शन होना बहुत चिंताजनक है. केरल में तो हुए प्रदर्शन को हमास के कमांडर द्वारा वर्चुअली संबोधित किया गया था उसके बाद ही विस्फोट की घटना हुई है.
चुनावी राज्यों में तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण के प्रयासों को इसलिए ज्यादा गति मिल रही है क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच में सीधा मुकाबला है.कांग्रेस के युवा नेता जीतू पटवारी द्वारा ‘नफरती हिंदू’ भावना उछलकर ध्रुवीकरण को ही हवा दी जा रही है. मध्यप्रदेश के चुनाव में मुस्लिम कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत माने जा सकते हैं. यहां तीसरे दल के रूप में फिलहाल कोई भी पॉलीटिकल पार्टी मुसलमानों की पहली पसंद नहीं है. इसलिए कांग्रेस अपनी इस राजनीतिक ताकत को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती.
कांग्रेस के दो बड़े नेता रणनीति के तहत या अनजाने में विचारधारा के स्तर पर दो तरफ खड़े दिखाई पड़ते हैं. दोनों निजी तौर पर सनातनधर्मी और जीवन आचरण में भक्त दिखाई पड़ते हैं. अल्पसंख्यकों में कांग्रेस का चुनावी हिंदू अवतार चिंता का कारण बना हुआ है. कांग्रेस के बड़े मुस्लिम नेता अजीज कुरैशी तो कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व और कांग्रेस कार्यालय में हिंदू त्योहारों पर पूजा पाठ की कड़ी आलोचना कर चुके हैं. कमलनाथ अपने आप को हिंदुत्व का बड़ा चेहरा मानते हैं. मुसलमानों के बीच में हिंदुत्व और धर्मनिरपेक्षता के बीच कांग्रेस के बदलते चोले के कारण संदेहास्पद स्थिति बनी हुई है. बीजेपी कांग्रेस को चुनावी हिंदू बताकर अपने हिंदुत्व के जनाधार को मजबूत रखना चाहती है.
मुस्लिम तुष्टिकरण और हिंदुत्व का ध्रुवीकरण चुनावी नतीजे के समीकरणतय कर सकते हैं. जैसे-जैसे चुनाव अभियान बढ़ता जाएगा, ध्रुवीकरण के प्रयास भी बढ़ते जाएंगे. राम मंदिर का मुद्दा तो आ ही गया है. चुनावी प्रचार में हनुमान की गदा भी सामने आ ही रही है. हमास का आतंक दोनों तरफ उपयोग किया जाएगा. इसका उपयोग तुष्टीकरण में भी होगा और इसका उपयोग ध्रुवीकरण के लिए भी होगा.
पूरी दुनिया में जिस ढंग से धार्मिक आधार पर उथल-पुथल और आतंक का माहौल बना हुआ है उससे धार्मिक मुद्दे पर दुनिया के देश बंटे हुए हैं. इस्लामिक देश धर्म के नाम पर एकजुट होकर आगे बढ़ रहे हैं तो उसके विरोध में दूसरे धर्म के लोग आत्मरक्षा में एकजुट होते जा रहे हैं. यही हालत भारत के राज्यों में भी है. चुनाव में तो इसकी गर्माहट थोड़ी ज्यादा बढ़ जाती है. चुनावी चर्चाएं इसके इर्द-गिर्द ही सिमटती दिख रही हैं. विकास और अन्य बातें तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण की राजनीति के पीछे हो जाती हैं.
शांतिपूर्ण चुनाव हो, धर्म पर समाज में नफरत ना फैले, सहिष्णुता का आधार हमेशा बना रहे, चुनाव आए या जाएं लेकिन राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण हावी ना हो. युद्धकालीन भावनाओं का लाभ उठाने की राजनीतिक कोशिश निश्चित रूप से अस्वीकार की जानी चाहिए. भावनात्मक और वैचारिक मुद्दे सांप्रदायिक लामबंदी को भड़काने के इरादे से चुनावी लाभ तो दे सकते हैं लेकिन ये लोकतंत्र का अहित ही करेंगे.