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कब तक भारत शरण देता रहेगा ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 05 Nov

सार

शांति, सद्भाव तथा शिष्टाचार भारतीय संस्कृति के ही मूल लक्षण हैं।

janmat

विस्तार

प्राचीन काल से भारत शांति का पक्षधर रहा है। शांति, सद्भाव तथा शिष्टाचार भारतीय संस्कृति के ही मूल लक्षण हैं। ‘जियो और जीने दो’ अर्थात ‘जीवन जीना अधिकार तथा समस्त प्राणियों को जीने देना कर्तव्य। यह सिद्धांत जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर ‘महावीर स्वामी’ के उपदेशों का हिस्सा है, जो वर्तमान में जंगी जुनून में मदहोश होकर विश्व को तीसरे विश्व युद्ध से रोकने का एक प्रकाशमान दर्शन है। वर्तमान में मजहबी कट्टरवाद तथा आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे वैश्विक स्तर पर एक बड़ा खतरा बन चुके हैं। 

युद्ध, मजहबी उत्पीडऩ व आतंकवाद जैसी भीषण आपदाओं के कारण अपना मुल्क छोडऩे वाले बेगुनाह लोगों के लिए भारत ने हमेशा मसीहा की भूमिका निभाई है। यहां तक कि भारत से गद्दारी करने वाले लोगों के प्रति भी भारत का नजरिया नैतिकता का ही रहा है।

याद कीजिये, भारत विभाजन के बाद जोगिंद्रनाथ मंडल दलित व पिछड़े वर्ग का रहनुमां बनकर पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान के गर्वनर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने जोगिंद्रनाथ मंडल को पाक हुकूमत की काबीना में ‘कानून व श्रम’ मंत्री नियुक्त कर दिया।

वजूद में आते ही पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर मजहब के नाम पर संघर्ष शुरू हो गया था। पाक में भाईचारे के पैरोकार बनकर गए जोगिंद्रनाथ मंडल को दोबारा भारतभूमि पर ही शरण लेनी पड़ी थी। 

मजहबी हिकारत से आहत होकर जगन्नाथ आजाद ने अपने पूर्वजों की पुश्तैनी विरासत को अपनी जन्मभूमि मियांवली में त्याग कर पाकिस्तान को अलविदा कह कर भारत में ही शरण ली थी। 

बांग्लादेश की मौजूदा मजहबी जमातें भी आज उसी तहरीर को दोहरा रही हैं। अपने चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के जरिए बांग्लादेश के मजहबी कट्टरपंथ को बेनकाब करने वाली लेखिका ‘तस्लीमा नसरीन’ को सन् 1994 में अपना मुल्क बांग्लादेश छोडऩा पड़ा।

वहां की कट्टरपंथी जमातों तथा कई आतंकी संगठनों ने तस्लीमा नसरीन के खिलाफ मौत का फरमान जारी कर दिया था। तस्लीमा नसरीन ने सन् 2004 से भारत में शरण ली है। बांग्लादेश में हिंसक कारवाईयों से हालात इस कदर बेकाबू हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के लाखों लोग भारत में शरण लेने को आमादा हैं। 

1980 के दशक में श्रीलंका में गृह युद्ध के कारण हजारों तमिल शरणार्थियों को भारत के दक्षिणी राज्यों में पनाह दी गई। अफगानिस्तान पर सन् 1979 में सोवियत आक्रमण तथा तालिबान की हुकूमत के दौर में अस्थिरता का माहौल पैदा होने से हजारों अफगान नागरिक भी भारत में शरण लेने को मजबूर हुए।

नेपाल, तिब्बत व भूटान जैसे देशों की एक बड़ी आबादी भारत में निवास करती है। दूसरे मुल्कों की स्वतंत्रता को कायम रखने व अकलियतों के हकूक की आवाज भारत हमेशा बुलंद करता है।

मजहब की रहनुमाई करने वाले कई देश हैं, लेकिन जातिवाद व मजहबी हिकारत के कारण बेघर हो रहे लोगों को शरण देने की जहमत कोई भी मुल्क नहीं उठाता। बहरहाल कई देशों में आतंक व मजहबी उन्माद का शिकार होकर बेवतन हो रहे मजलूमों को शरण देकर भारत एक मुद्दत से मानवता के तकाजे निभा रहा है।

पड़ोसी मुल्कों पर चीन का दबदबा तथा विदेशी खूफिया एजेंसियों की बढ़ती पैठ से उत्पन्न माहौल भारत की सुरक्षा को सीधी चुनौती है। अत: एटमी ताक़त से लैस व विश्व की चौथी ताकतवर सैन्यशक्ति की हैसियत रखने वाले भारत को अपनी सैन्य ताकत का पैगाम भी देना होगा। पड़ोसी मुल्कों में भारत विरोधी गतिविधियां देश के हित में नहीं हैं।