राज्य मंत्रीपरिषद के निर्णय जनमानस को प्रभावित करते थे लेकिन अब तो कैबिनेट बैठक ही अपने आप में जनता को अर्पण की जा रही है. यह भी पहली बार हो रहा है, जब कैबिनेट बैठक का ऐलान सरकार के एडवर्टाइजमेंट द्वारा हो रहा है..!!
इसमें यह भी बताया जा रहा है कि, इसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री करेंगे. यह कोई नई बात नहीं है, कैबिनेट मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में ही सम्पन्न होती है. पचमढ़ी में आयोजित कैबिनेट बैठक को सतपुड़ा के पराक्रमी सपूत भभूत सिंह के अमर बलिदान और शौर्य को समर्पित बताया गया है. यह बैठक पचमढ़ी में इसलिए हुई क्योंकि वर्ष 1857 की क्रांति की मशाल जलाने वाले भभूत सिंह की यह कर्मस्थली है.
सीएम ने ज़ारी सरकारी विज्ञापन में यह बताया है कि, तात्या टोपे के साथ कांधे से कांधा मिलाकर राजा भभूत सिंह ने आजादी की जंग में वीरता का प्रदर्शन किया. इस वीर में शिवाजी महाराज की छवि दिखाई देती थी. पचमढ़ी में मध्य प्रदेश मंत्रीपरिषद की बैठक का आयोजन राजा भभूत सिंह के गौरवशाली योगदान को जनमानस के समक्ष लाने का प्रयास है. यह विडम्बना ही कही जायेगी कि प्रदेश गठन के इतने वर्षों के बाद राजा भभूत सिंह के योगदान पर सरकार का ध्यान गया.
इस विज्ञापन में जनजाति संस्कृति के सम्मान और सशक्तिकरण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को भी प्रदर्शित किया गया है. विज्ञापन यह नहीं बताता है कि, जनधन खर्च कर हो रही कैबिनेट बैठक में जनहित के किन मुद्दों पर विचार कर फैसला लिया जाएगा? मध्य प्रदेश सरकार यह अभिनव प्रयास कई स्थानों पर कर चुकी है.
दमोह के संग्रामपुर तथा देवी अहिल्याबाई की नगरी इंदौर में वर्तमान सरकार की कैबिनेट हुई. और अब यह पचमढ़ी में हो रही है. कैबिनेट की बैठक मात्र से किसी महापुरुष के योगदान को जनमानस में कैसे लाया जा सकता है? कोई सरकार अगर किसी महापुरुष के योगदान को आगे लाना चाहती है तो उसके लिए सरकार कोई योजना बना सकती है या फिर स्मारक.
ऐसे महापुरुष के योगदान को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल भी किया जा सकता है फिर उनके नाम पर सरकार सम्मान, पुरस्कार स्थापित कर सकती है. उनके योगदान पर आधारित ऐतिहासिक तत्वों को संग्रहित कर संग्रहालय बनाया जाना भी एक तरीका हो सकता है. सरकार के पास महापुरुषों के बलिदान और पराक्रम को आधुनिक समय में स्थापित करने के लिए तमाम सारे प्रकल्प हैं. लेकिन केवल कैबिनेट बैठक से तो कुछ भी अचीव नहीं किया जा सकता.
इतिहास में विचरण कर सरकारें शायद अपनी वर्तमान की कमियों को छिपाने में लगी होती है. सरकार के सारे अभियान या फिर इवेंट इतिहास पर आधारित होते हैं. वर्तमान तो उनमें कहीं दिखाई नहीं पड़ता है. इतिहास में किसी महापुरुष ने पराक्रम और शौर्य किया था तो शैक्षणिक संस्थानों में उसको महत्व मिलना चाहिए था. उनके शौर्य और आदर्शों पर सरकारों को चलकर दिखाना चाहिए. केवल बोलने से बदलाव नहीं आता. पचमढ़ी वन्यजीव अभ्यारण्य का नाम राजा भभूत सिंह के नाम पर करने का ऐलान एक अच्छा प्रयास है. इसके लिए कैबिनेट की आवश्यकता नहीं थी.
एक आदिवासी महानायक उस दौर में क्रांति की मशाल जलाने में योगदान दे सकता है तो क्या हम आज ऐसे व्यक्तित्व की खोज कर सकते हैं, जो निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर दिखाई दे. कैबिनेट की मर्यादा होती है. किसी विशेष परिस्थिति में किसी स्थान पर कैबिनेट की बैठक को तो अप्रत्याशित घटना करने के रूप में स्वीकार किया जा सकता है. लेकिन अगर उसे एक इवेंट के रूप में लगातारअलग-अलग स्थान पर करने की परंपरा कायम हो जाएगी तो फिर कैबिनेट की मर्यादा प्रभावित होगी.
महत्व स्थान का होता है. हर घर में देवी देवी देवता प्रतिष्ठित हैं. सभी देवी देवताओं का अपना धाम निश्चित है. उसी स्थान पर उस धाम की गरिमा और मर्यादा हमारी संस्कृति में कायम है. राजधानी क्यों होती है? इसकी तो तब, कोई आवश्यकता ही नहीं है जब हर जिले में कैबिनेट बैठक हो सकती है. हर जिले में मंत्रालय स्थापित किये जा सकते हैं. सरकारें और हर लीडर अपने-अपने फंडे पर चलतें है.
मध्य प्रदेश ने हर लीडर के साथ नए-नए फंडे देखे हैं. प्रदेश में जिला सरकार भी रह चुकी है. जब जिला सरकार बनाने वाले नेता सीएम के पद पर थे, तब इसके अलावा मध्य प्रदेश में किसी भी बात को पब्लिसिटी नहीं मिलती थी. मध्य प्रदेश ने पंचज अभियान भी देखा है और गोकुल ग्राम का बदलाव भी. स्वर्णिम मध्य प्रदेश के विज्ञापन भी खूब देखे हैं. आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश के सुनहरे दस्तावेज भी पुस्तकालय में उपलब्ध है.
वक्त के साथ यह सारे नारे मिट गए. इनको लाने वाले भी अपना अस्तित्व नहीं बचा पाए. अब वर्तमान मध्य प्रदेश वृंदावन ग्राम के साथ ही श्रीकृष्ण पाथेय कोअपना सबसे बड़ा एजेंडा मानकर चल रहा है. शिवराज सिंह चौहान भी राजधानी के बाहर कैबिनेट की बैठक करते रहे हैं. इसकी शुरुआत उमा भारती ने ओंकारेश्वर में कैबिनेट करके की थी. सरकारी संसाधनों का उपयोग कर राजनीतिक लाभ की रणनीति नई नहीं है. पचमढ़ी में कैबिनेट के बाद दूसरे दिन भाजपा विधाययों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की भी योजना है.
प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता मुंह बाये खड़ी है. राजधानी भोपाल का मास्टर प्लान नहीं बन सका है. बातों और काम में अंतर साफ दिखता है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि, सरकारें ऐसे काम करने लगी हैं जो केवल मीडिया फोकस में बने रहे. आम लोगों को भ्रमित किया जा सके. वैसे भी सरकारें आज कल नकद सहायता देने का केवल एटीएम बन गई हैं. कर्जों में डूबी सरकारें नकद सहायता बांटकर अनुकूल चुनावी नतीजे की उम्मीद करती है. मुफ्तखोरी के जरिए समाज में कर्महीनता को बढ़ावा देना सरकारों की बड़ी असफलता दीर्घकाल में साबित होगी.
राजधानी के बाहर कैबिनेट होने लगी है तो अब इस बैठक के जिला फॉर्मेट भी धीरे-धीरे सामने आएंगे. अब तक पीएम नरेंद्र मोदी ने तो अपनी कैबिनेट राजधानी दिल्ली में ही की है. शायद जितने जनहित के फैसले राष्ट्रीय स्तर पर लिए गए हैं, उनकी मिसाल नहीं हो सकती फिर भी कैबिनेट बैठक राजधानी से बाहर करने की आवश्यकता नहीं महसूस की गई.
महापुरुष को जोड़कर खुद की महानता का अहसास राजनीति की बड़ी कमजोरी है. जिन्होंने इतिहास बनाया है, उनका नाम लेकर कोई अपना इतिहास नहीं बना सकता. हर चेतना अलग है. उसको अपने कर्म से ही अलग मुकाम हासिल होगा.