कांग्रेस पार्टी, जो आज आपसी कलह और विश्वास के संकट से गुजर रही है, वह देश में विश्वास पैदा करने की असफल कोशिश करती दिखाई पड़ रही है.
विश्वास के संकट गुजर रही है कांग्रेस, लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी.. सरयूसुत मिश्रा
कांग्रेस पार्टी, जो आज आपसी कलह और विश्वास के संकट से गुजर रही है, वह देश में विश्वास पैदा करने की असफल कोशिश करती दिखाई पड़ रही है. जो पार्टी दशकों तक देश का नेतृत्व करती रही है, वह पार्टी अनुशासनहीनता के दौर में पहुंच गई है. कांग्रेस के असंतुष्ट 23 नेताओं के दबाव में कांग्रेस कार्यसमिति हुई जरूर, लेकिन बिना किसी नतीजे के केवल औपचारिकता बनकर रह गई. किसी भी संस्था में अनुशासन संस्था के सदस्यों के स्वानुशासन से बनता है. कांग्रेस के सदस्यों के स्वानुशासन पर अगर नजर डालें, तो शायद एक ऐसा नेता ढूंढना मुश्किल होगा, जिसका जीवन बेदाग हो, जिस के चरित्र का हम उदाहरण दे सकें,जिनके काम और नाम पर प्रबुद्ध जन चर्चा कर सकें.
एक कवि की कविता कांग्रेस पर सटीक बैठती है.कि “ जिंदगी जीने का तरीका उन्हीं लोगों को आया है, जिन्होंने अपनी जिंदगी में धक्का खाया है. जमाया है सर्द रातों में खुद को, तपती धूप में खुद को तपाया है, वही नहीं हुए असफल,जिंदगी में उन्होंने ही इतिहास बनाया है”. कांग्रेस ने पहले देश में निश्चित ही इतिहास बनाया है. भारत की आजादी में अपना सब कुछ लगाया है. देश के विकास की दिशा को भी बनाया है. भारत में अभी सबसे ज्यादा समय तक कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री रहे हैं. कांग्रेस क्यों कमजोर हुई और लगातार होती जा रही है ? कांग्रेस संघर्ष के लिए बनी थी. विचारधारा उसका आधार था. वह अपनी विचारधारा पर अडिग नहीं रही और न उसमें संघर्ष का माद्दा बचा. वह पहले संघर्षशील लोगों को मौका देती थी. अब मैनेजमेंट को मौका देती है. कांग्रेस के इतिहास पर नजर डालें, तो हमेशा कांग्रेस का नेतृत्व व्यापक संघर्ष और जन विश्वास में खरे व्यक्ति के पास होता था.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निधन के बाद प्रधानमंत्री का पद परिवारवाद के हिसाब से तय होने लगा. कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार की पार्टी स्थापित हो गई. विरोध की आवाजों को दबाया जाने लगा. संवाद की स्थिति खत्म हो गई. केवल निर्णय सुनाने तक की स्थिति बन गई. विचारधारा डगमगाने लगी. यही वह दौर था जब कांग्रेस से कई क्षेत्रीय नेता बाहर हुए और उन सभी ने अपने अपने राज्यों में राजनीतिक दल बनाए और आज वह सब मजबूत स्थिति में खड़े हुए. क्षेत्रीय दलों की राजनीति से देश के महत्वपूर्ण मामलों में छुद्र राजनीति हुई लेकिन कांग्रेस के बिखराव से क्षेत्रीय दलों की राजनीति को विस्तार मिला. कभी अल्पसंख्यकवाद को सिर माथे लगाया गया तो कभी बीच का रास्ता अपनाने में घर के रहे न घाट के, जैसी स्थिति बनती गई. कभी मस्जिद और चर्च का विश्वास कांग्रेस पर था, लेकिन जब से कांग्रेसी नेता सॉफ्ट हिंदुत्व के लिए मंदिर के दर्शन और जनेऊ प्रदर्शन करने लगे, तब दोनों तरफ का विश्वास ख़त्म होने लगा है.
राजीव गांधी के बाद पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने और विचारधारा पर चलने का प्रयास किया. जब विचारधारा होगी तब परिवारवाद प्राथमिकता नहीं होगी, ऐसा ही हुआ और नरसिंह राव और गांधी परिवार के मतभेद सतह पर आते रहे. फिर मनमोहन सिंह की सरकार बनी, वह सरकार गांधी परिवार की छाया में ही चलती रही. गांधी परिवार के युवराज ने कई बार ऐसे दृश्य सार्वजनिक रूप से दिखाएं, जिससे स्पष्ट हुआ कि मनमोहन सरकार गांधी परिवार की ही सरकार है. लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल को फाड़ना एक दृश्य है, जिसे सबने देखा है.
गांधी परिवार में कांग्रेस के नेता अभी भी सार्वजनिक रूप से विश्वास दिधाते हैं, लेकिन जब नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी दूर दिखने लगती है तो फिर असंतोष पनपता है. राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं. देश में कई चुनावों का नेतृत्व कर चुके हैं, लेकिन हर बार हार का सामना करना पड़ा. जहां छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस सरकार में आयी, वहां भी सरकारों के नेतृत्व ने जनता को निराश किया. मध्यप्रदेश में तो युवा नेता ज्योतिराज सिंधिया अपने विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए और कमलनाथ की सरकार 15 महीने में गिर गई. राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत का विवाद जगजाहिर है छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की लड़ाई खुलकर सामने आ गई है. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद की परिस्थितियां कांग्रेस के लिए आत्मघाती रही हैं.
गांधी परिवार का देश के विकास में अहम योगदान रहा है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधीऔर राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री के रूप में देश के विकास को दिशा दी उसका लाभ कई क्षेत्रों में आज भी मिल रहा है. सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस पार्टी नेताओं की आपसी अहंकार और गुटबाजी का शिकार बनती गई .अब तो सोनिया, राहुल, प्रियंका मिलकर कांग्रेस को उबारने में जुटे हुए हैं. यूपी मैं प्रियंका गांधी 40% महिलाओं को विधानसभा टिकट देने की घोषणा कर रही हैं.बच्चियों को स्मार्टफोन और स्कूटी देने का वायदा कर रही हैं.. लोकसभा चुनाव में हर परिवार को 72 हज़ार रूपये सालाना देने का वायदा कांग्रेस ने किया था. लोकसभा में कांग्रेस का क्या हश्र हुआ है, सब ने देखा है. ऐसा ही यूपी चुनाव में भी कांग्रेस के साथ होने वाला है. कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट यह है कि उसके नेताओं पर विश्वास ही नहीं बचा है. जो कुछ जगह कुछ जगह कांग्रेस पार्टी अभी जीत रही है वह कांग्रेस के पुराने संघर्ष और पुराने दौर की उपलब्धियां अभी लोगों के जेहन में रहने के कारण है. नई कांग्रेस के काम इन स्मृतियों को लगातार कम कर रहे हैं. कांग्रेस को उन राज्यों में थोड़ी बहुत सफलता मिल रही है जहाँ भाजपा-कांग्रेस का तीसरा बिकल्प नहीं है. लेकिन सताधारी दल की एंटीइनकमबेंसी का ही फ़ायदा कांग्रेस को मिलता रहा है. पीढी दर पीढ़ी पंडो जैसी संस्कृति कांग्रेस के लिए शायद फायदेमंद नहीं हो सकेगी. वैसे देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है.