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विचारधारा या पर्सनलधारा, चुनाव परिणाम करेंगे निपटारा

सार

​​​​​​​लोकसभा चुनाव में जुटे दोनों गठबंधनों के मेनिफेस्टो सामने आ चुके हैं. एक तरफ अनुभव और विचारधारा का संकल्प दिखता है, तो दूसरी तरफ तात्कालिक चुनावी गेन के लिए प्रायोजित घोषणाएं दिखती हैं. एक तरफ यूनिफाइड मेनिफेस्टो है तो दूसरी तरफ गठबंधन की पार्टियों के टुकड़े-टुकड़े मेनिफेस्टो आ रहे हैं. एक तरफ सुरक्षित और मजबूत राष्ट्र की चिंता है, तो दूसरी तरफ न्यूक्लियर पावर पर सवाल है. गारंटी देने के मामले मेंदोनों गठबंधन एक विचार पर खड़े हैं..!!

janmat

विस्तार

मेनिफेस्टो को कोई कानूनी मान्यता तो नहीं है, लेकिन वायदे निभाने का इतिहास मेनिफेस्टो पर विश्वास की कसौटी होता है. डॉ भीमराव अंबेडकर की जयंती पर संविधान की शपथ के साथ बीजेपी ने अपना संकल्प पत्र देश के नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में लाभार्थियों को सौंप कर मेनिफेस्टो का लोक व्यापीकरण कर दिया है. वायदों को पूरा करने का ट्रैक रिकॉर्ड अगर पैमाना माना जाएगा तो बीजेपी और नरेंद्र मोदी की गारंटी देश की गारंटी मानी जाएगी.

बीजेपी ने अपने बुनियादी मुद्दों राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 की समाप्ति पूरा करके देश का विश्वास जीता है. बीजेपी का तीसरा बुनियादी मुद्दा देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने 2024 का संकल्पपत्र जारी करते हुए, UCC लागू करने की घोषणा की है. राहुल गांधी की कांग्रेस मुस्लिम पर्सनल लॉ का समर्थन कर रही है, तो नरेंद्र मोदी की बीजेपी UCC उच्च लागू करने की गारंटी दे रही है. बीजेपी के लिए यह मुद्दा विचारधारा का मुद्दा है. राजनीति में विचारधारा कामहत्वपूर्ण योगदान होता है.

UCC वर्सेस पर्सनल लॉ में विचारधारा और पर्सनलधारा के बीच हो रहे इस चुनाव में परिणाम इस बात का निपटारा करेंगे कि देश में विचारधारा चलेगी या पर्सनल धारा. समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय भावनात्मक मुद्दा बन गया है. किसी भी देश में एक ही विषय पर दो कानून देश की एकजुटता के लिए खतरा माने जाते हैं. हिंदू मुस्लिम दो भाइयों के लिए अलग-अलग कानून यह तो भारत की संस्कृति नहीं कहीं जा सकती है.

दोनों गठबंधनों के मेनिफेस्टो में विकास के बहुत वायदे किए गए हैं. बीजेपी का मेनिफेस्टो जहां अनुभव और राष्ट्र की वास्तविकता के करीब दिखाई पड़ता है. वहीं कांग्रेस और उसके गठबंधन के दूसरे दलों के मेनिफेस्टो वास्तविकता से दूर चुनावी जमघट के लिए डुगडुगी का आभास देते हैं. मुफ्तखोरी की योजनाओं से ना तो राष्ट्र का विकास होगा और ना ही इससे कर्मप्रधान भारतवासियों का कल्याण होगा. लोगों की कर्मठता अगर कुंद पड़ गई तो, फिर भारत की प्रगति भी कुंद पड़ जाएगी. सबको सब कुछ देने के शेखचिल्ली वायदे मेनिफेस्टो की गंभीरता ही समाप्त कर देते हैं.

पूरी दुनिया आज युद्ध के मुहाने पर खड़ी हुई है. भारत के पड़ोसी मुल्कों की भारत पर बुरी नजर नई बात नहीं है. भारत के पड़ोसी न्यूक्लियर पावर संपन्न देश हैं. कांग्रेस के सहयोगी दल का घोषणा पत्र ऐसा वायदा कर रहा है, कि भारत को न्यूक्लियर पावर राष्ट्र होने की जरूरत नहीं है. राजनीतिक दलों के ऐसे खतरनाक इरादे भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए न केवल खतरनाक हैं, बल्कि राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी बातें राष्ट्र की गरिमा और गौरव को ही खंडित कर देंगे. 

रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई, लिखाई, स्वास्थ्य जैसे जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर नए विकल्प और नए प्रकल्प के वायदे तो समझ जा सकते हैं, लेकिन एक राष्ट्र में दो कानून राष्ट्र की सुरक्षा के खिलाफ़ वायदे राजनीतिक दिवालियापन के अलावा कुछ नहीं कहे जा सकते.

सबको स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना का विस्तार सबसे पहली जरूरत है. 70 वर्ष से ऊपर के सभी जाति, धर्म और आय के बुजुर्गों को आयुष्मान योजना में शामिल करना सरकार की ओर से हेल्थ गारंटी की दिशा में बढ़ाया गया बहुत बड़ा कदम है. विकास ज़रूरी है तो विरासत का संरक्षण भी ज़रूरी है. संस्कृति और विरासत जाति और धर्म से ऊपर होती है. धर्म कोई भी हो देश की विरासत अलग-अलग धर्म के विचार से निर्धारित नहीं हो सकती है.

वैसे तो चुनाव में मेनिफेस्टो का बहुत अधिक महत्व नहीं होता. ऐसे ऐसे वायदे किए जाते हैं, जो कभी पूरे नहीं हो सकते जिन राजनीतिक दलों को चुनाव में पराजय मिलती है, वह अपने पुराने मेनिफेस्टो को भुला देते हैं और फिर नए चुनाव में नए मेनिफेस्टो हेर-फेर के साथ नए डायलॉग के रूप में पेश किए जाते हैं. 2019 के चुनाव में भी प्रत्येक परिवार को 72 हजार रुपए सालाना देने का वायदा किया था. जनादेश ने वायदे को नकार दिया था. फिर इस चुनाव मेंउसी को घुमा फिरा कर अब एक लाख रुपए देने का वायदा कर दिया गया है. 

पॉलिटिक्स में विश्वसनीयता सबसे बड़ा फैक्टर होता है, किसी नेता या पार्टी ने अगर अपनी विश्वसनीयता खो दी है तो फिर उसका बड़े से बड़ा और कीमती से कीमती वायदा भी जनादेश की गारंटी नहीं बन पाता. इसके विपरीत किसी नेता की और पार्टी की विश्वसनीयता अगर क़ायम है, तो फिर उसकी बात और चेहरा ही जनादेश की गारंटी बन जाता है. इसके लिए मेनिफेस्टो में वायदों की भी आवश्यकता नहीं पड़ती.

मोदी की गारंटी आज जनादेश की गारंटी बना हुआ है. किसी का भी भरोसा खास कर किसी देश का भरोसा हासिल करना तो जीवन के समर्पण के बिना संभव नहीं है. समर्पण विचारों का, समर्पण नीतियों का, समर्पण अपने पूरे कर्तव्य का और समर्पण अपने ईमान को लेकर जब तक देश को भरोसा ना दिलाएं तब तक जनादेश की गारंटी नहीं बनती.

समान नागरिक संहिता भाजपा शासित राज्य उत्तराखंड में लागू हो चुकी है. मेनिफेस्टो में UCC पूरे देश में लागू करने का वायदा किया गया है. UCC के जरिए सभी नागरिकों को समान अधिकार मिलेंगे साथ ही महिलाओं पर हो रहे उत्पीडन पर भी लगाम लगेगी समान नागरिक संहिता कानून के अंतर्गत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन संबंधों को नियंत्रित करने का प्रावधान है. तीन तलाक को खत्म करने से मुस्लिम महिलाओं की गरिमा की रक्षा हुई है.

भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कही गई है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई फैसलों में इसे लागू करने के लिए कहा है समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत के सभी धर्म की बालिकाओं के लिए एक समान आयु लागू हो जाएगी. इसके साथ ही बहु विवाह, निकाह, हलाला और इद्दत,तीन तलाक आदि पर प्रतिबंध लग जाएगा. मुस्लिम महिलाओं को भी संपत्ति में समान हिस्सेदारी, समान नागरिक संहिता लागू होने पर मिलना संभव हो सकेगी.

लोकसभा के चुनाव में UCC वर्सेस पर्सनल लॉ के विचारों पर जनादेश के नतीजे आने की पूरी संभावना है. देशकी 80% आबादी समान नागरिक संहिता के पक्ष में है. मुस्लिम समाज में बढ़ रहे उदारवाद के कारण ऐसा माना जा सकता है, कि देश की 20% आबादी भी पर्सनल लॉ के पक्ष में नहीं होगी. जिन पर पर्सनल ला लागू होता है, उनसे बिना किसी चर्चा के राजनीतिक दल उनके मुद्दों को अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए उभार कर अपना लाभ भले न कर पाते हों, लेकिन उस समाज का नुकसान जरूर कर देते हैं.

लोकसभा के नतीजे 4 जून को आ जाएंगे. देश को तय करना है, कि उसे समान नागरिक संहिता की जरूरत है या पर्सनल कानून को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. जब गोवा और उत्तराखंड में UCC लागू है और वहां पर रहने वाले मुस्लिम समाज के लोगों को भी कोई आपत्ति नहीं है, तो इसका मतलब है, UCC देश की आवाज है. व्यापक विचार विमर्श और सभी संबंद्ध पक्षों से चर्चा के बाद UCC की तरफ कदम बढ़ाना भारत को आगे ले जाने के लिए जरूरी है. लोकतंत्र स्वायत्तता, निजता एवं समानता के सिद्धांत को सर्वोच्च वरीयता देता है.