एमपी कांग्रेस में सीएम फेस को लेकर चल रही चर्चाओं को अंततः राज्य में आलाकमान की हैसियत रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विराम लगा दिया है. उन्होंने ऐलान किया है कि एमपी में सीएम फेस कमलनाथ ही रहेंगे. वैसे तो कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक सीएम फेस का आधिकारिक ऐलान नहीं किया है लेकिन दिग्विजय सिंह के ऐलान के बाद अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि कांग्रेस का सीएम फेस कौन होगा.
कोई भी पार्टी किस फेस पर जनता के सामने चुनाव में उतरेगी यह उसका निर्णय हो सकता है लेकिन जनता के लिए सीएम फेस से ज्यादा गवर्नेंस का फेस महत्वपूर्ण होता है. किसी भी राजनीतिक दल को पब्लिक के सामने सुशासन की अपनी योजनाओं और शासन शैली को सार्वजनिक करने की जरूरत है. खास करके ऐसे दल को जो शासन में रह चुका हो और कार्यशैली के कारण अलोकप्रियता प्राप्त कर सरकार से उसे अपदस्थ होना पड़ा हो.
मध्यप्रदेश में 2018 में भले ही सीएम फेस घोषित नहीं किया गया हो लेकिन चुनाव में जीत के बाद कमलनाथ को सीएम बनाया गया था. उनके नेतृत्व में 15 महीने की कांग्रेस सरकार के कामकाज और कार्यशैली को देखा सुना और पहचाना जा चुका है.
मध्यप्रदेश के इतिहास में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार होगी जो अपने अंतर्विरोध और बगावत के कारण गिरी है. जब दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री हुआ करते थे तब देश में कांग्रेस के दिग्गज नेता और राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले अर्जुन सिंह ने कांग्रेस से बगावत कर तिवारी कांग्रेस बनाई थी. दिग्विजय सरकार में अर्जुन सिंह समर्थक विधायकों की संख्या निश्चित रूप से रही होगी लेकिन खुली बगावत के बाद भी अपने राजनीतिक चातुर्य से दिग्विजय सिंह ने न केवल अपनी सरकार बचाई थी बल्कि सभी खेमों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अपने साथ जोड़े रखा था. इसका मतलब है कि लीडर की कार्यशैली राजनीति में जोड़ने और तोड़ने दोनों में सबसे महत्वपूर्ण होती है.
यदि कांग्रेस की ओर से बनाए गए लीडर द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को पर्याप्त मान सम्मान अवसर दिया गया होता तो आज कांग्रेस को सीएम फेस घोषित करने की जरूरत नहीं पड़ती. कांग्रेस का सीएम ही चुनाव मैदान में उतरना चाहिए था लेकिन कार्यशैली की खामियों की वजह से पार्टी में ही बगावत हो गई. मध्यप्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है कि पांच साल के शासनकाल में प्रदेश के लोगों ने दो सरकारों का अनुभव किया है. पहले 15 महीने तक की सरकार कमलनाथ के नेतृत्व में चली और उसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार काम कर रही है. सरकारों के कामकाज हमेशा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान आम बात मानी जाती है. इस बार सत्ता विरोधी रुझान दो दलों में बंट जाएगा क्योकि दोनों दलों ने पांच साल की अवधि में शासन किया है.
चुनाव परिणाम क्या होगा यह तो उसी समय पता चलेगा लेकिन क्योंकि कांग्रेस ने सीएम फेस पुराना ही घोषित किया है. इसलिए इस बात का विश्लेषण जरूर किया जाना चाहिए कि 15 महीनों में कांग्रेस की सरकार में किस तरह की खामियां महसूस की गई थी? यह विचार भी किया जाना चाहिए कि इन खामियों को दूर करने के लिए क्या कुछ सबक लिया गया है? गवर्नेंस में सुधार के लिए बगावत की संभावनाओं को समाप्त करने की दिशा में क्या कांग्रेस द्वारा कोई कदम उठाया गया है?
किसी भी सरकार से आम लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन की अपेक्षा होती है. कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के समय क्या यह महज संयोग था या कोई सोचा समझा प्रयास था कि भ्रष्टाचार का केस वापस लेकर दागी अधिकारी को मुख्य सचिव का पद दिया गया. कांग्रेस सरकार में दो अधिकारियों को मुख्य सचिव बनाया गया था. इन दोनों अधिकारियों पर वर्तमान में भ्रष्टाचार के मामलों में जांच की कार्यवाही चल रही है.
कांग्रेस सरकार में जो पहले मुख्य सचिव बनाए गए थे उनका केस वापस लेने का जो निर्णय लिया गया था उसे बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बदल दिया गया था. इससे यह स्पष्ट हो गया है कि मुख्यमंत्री द्वारा उस समय लिया गया निर्णय न्यायपूर्ण नहीं था. सीएम फेस पुराना होगा तो निश्चित रूप से मुख्य सचिव बनाने की शैली भी पुरानी होगी. जब प्रशासन का प्रमुख ही भ्रष्टाचार के आरोप से घिरा होगा तो फिर पूरा शासन-प्रशासन भ्रष्टाचार मुक्त होने की कल्पना कैसे की जा सकती है?
जनता से किए गए वायदों को पूरा करने के मामले में भी कांग्रेस की 15 महीने की सरकार की शैली ईमानदार नहीं कही जाएगी. कांग्रेस ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि डीजल-पेट्रोल पर टैक्स कम किया जाएगा. सरकार आने के बाद टैक्स कम करने की बजाय 5% बढ़ा दिया गया था. ऐसे अनेक वायदे हैं जिनको पूरा नहीं किया गया बल्कि सरकार ने वायदों के विपरीत आचरण किया. जनता के साथ वायदा खिलाफी की पुरानी शैली ही क्या भविष्य में बनी रहेगी? इस पर जनता के सामने पार्टी की ओर से स्पष्ट बात रखी जानी चाहिए.
कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में जिम्मेदार लोगों द्वारा ही एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे. सरकार के समय राजनीतिक टकराहट और स्वार्थपूर्ति के लिए लड़ाई रोकने की कांग्रेस ने क्या कोई रणनीति तैयार की है या फिर वही पुराना रवैया ही कायम रहेगा? शासन प्रशासन को दल के हिसाब से विभाजित कर सरकार चलाने की शैली कांग्रेस के लिए नुकसानदायक रही थी. इसमें भी कोई बदलाव दिखाई नहीं पड़ रहा है.
सीएम फेस बताने से ज्यादा पब्लिक को यह बताया जाए कि विकास योजनाओं के लिए जो घोषणाएं की जा रही हैं, उनके लिए धन की व्यवस्था कहां से की जाएगी? कांग्रेस ने कभी क्या इस बात पर चिंतन किया है कि 15 महीनों में पार्टी की ओर से क्या गलतियां की गई थीं? उन गलतियों के लिए कौन जिम्मेदार है? उन गलतियों के कारण जनता को और प्रशासन को जो कष्ट भोगना पड़ा था वह आगे फिर नहीं भोगना पड़ेगा. इसके लिए सुधार की कोई प्रक्रिया प्रारंभ की गई है?
मध्यप्रदेश के सीएम फेस घोषित किए गए कमलनाथ विपक्ष के नेता के रूप में अविश्वास प्रस्ताव के समय सदन में उपस्थित नहीं होते. जनप्रतिनिधियों के साथ सामान्य शिष्टाचार नहीं होने की शिकायत कांग्रेस की सरकार में भी थी और सरकार न रहने के बाद भी पार्टी में भी ऐसा ही आरोप लगता रहा है.
गलतियां और सुधार मानवीय स्वभाव और प्रक्रिया होती है. कांग्रेस इस माननीय स्वभाव को राजनीतिक सुधार के लिए शायद विस्मृत कर चुकी है. राजनेताओं से लोकतांत्रिक व्यवहार की अपेक्षा स्वाभाविक है लेकिन बदले में तानाशाही पूर्ण व्यवहार राजनीतिक दल के लिए प्रतिगामी साबित होता है.कांग्रेस को सबसे पहले भविष्य के लिए उसके गवर्नेंस फेस और कार्यशैली का ऐलान करना चाहिए. अगर केवल सीएम फेस ही फोकस होगा तो लोकतंत्र की संवैधानिक व्यवस्थाओं का क्षरण कैसे रोका जा सकेगा?
कांग्रेस की ओर से एक ताज़ा सर्कुलर जारी किया गया है. जिसमें कार्यकर्ताओं को चेताया गया है कि सोशल मीडिया और प्रचार के दूसरे माध्यमों में कोई भी नेता-कार्यकर्ता स्वयं को भावी प्रत्याशी के रूप में घोषित नहीं करे. अगर ऐसा किया जाता है तो अनुशासनहीनता की कार्यवाही की जाएगी. अब बताइए सीएम फेस के लिए क्या यह अनुशासन लागू नहीं होता? अनुशासन केवल कार्यकर्ताओं पर लागू होता है? यह वहीं शैली है जो 15 महीने तक कांग्रेस की सरकार में चलती रही थी.