जी-20 में दिल्ली आए विभिन्न देशों की ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की बात धरी की धरी रह जाएगी, क्योंकि ये देश कौप-28 में पहुंचते ही जी-7 व जी-77 के चोगे पहन लेंगे और अपने-अपने खेमों में बंटे तलवार खींचते नजर आएंगे..!
दिसम्बर 2023 में, दुबई में होने वाले कौप-28 के लिये ज्यादा समय नहीं बचा है। ख़ास बात कौप-28 की मेजबानी जो एक बडा तेल उत्पादक देश कर रहा है जो तेल के उपयोग में कटौती की बजाय तकनीकों से कार्बन उत्सर्जन कटौती की राह अपनाने का पक्षधर है। लगता है जी-20 में दिल्ली आए विभिन्न देशों की ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ की बात धरी की धरी रह जाएगी, क्योंकि ये देश कौप-28 में पहुंचते ही जी-7 व जी-77 के चोगे पहन लेंगे और अपने-अपने खेमों में बंटे तलवार खींचते नजर आएंगे।दिल्ली सम्मेलन ‘एक पृथ्वी, एक कुटुम्ब, एक भविष्य’ की थीम पर हुआ था। पृथ्वी के प्रति चेतना जगाने के लिए ऐसे नारे पहली बार नहीं गढ़े गए । 5 जून 1974 के पहले एवं 5 जून 2022 के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम भी ‘केवल एक ही पृथ्वी है’ थी।
नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री ग्रो हर्लेम ब्रंटलैंड आयोग की वैश्विक पर्यावरण पर रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यावरण और विकास आयोग द्वारा 1987 में ‘हमारा साझा भविष्य’ नाम से प्रकाशित की गई थी। यह आयोग 1983 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित किया गया था। जहां तक कुटुम्ब का भाव है, प्रकृति-जनित नैसर्गिक परिवेश में हम सब पृथ्वी में सहोदर हैं, परन्तु सारे आदर्श नारों के उद्घोषों के बावजूद पृथ्वी के हालात बिगड़ते ही रहे हैं, पृथ्वी ज्वरग्रस्त होती गई है। यथार्थ अब पृथ्वी के गरम होने का नहीं, बल्कि उबलती पृथ्वी का है, किन्तु अपनी समृद्धि के लिये उसका ताप बढ़ाने से न तो देशों को परहेज है, न उद्योगों व व्यावसायिक संस्थानों को। पृथ्वी हर साल, पिछले साल से ज्यादा गर्म हो रही है।
यही प्रवृत्ति जारी है। बिगड़ते हालात की प्रतिक्रिया में 2021 के पृथ्वी दिवस की थीम ‘रिस्टोर अवर अर्थ’ अर्थात ‘अपनी पृथ्वी को पुनस्र्थापित करें’ रखना पड़ा। इसी क्रम में 5 जून 2021 के पर्यावरण दिवस से यूएनओ ईकोसिस्टम रिस्टोरेशन का 2021 से 2030 तक का दशक भी मना रहा है। इन परिप्रेक्ष्यों में जब धनी व बड़ी आर्थिकी वाले देशों का दिल्ली में मिलना हुआ तो वैश्विक वंचितों में आर्थिक व पर्यावरणीय न्याय पाने की आशा तो जगनी ही थी। कारण यह भी था कि जी-20 की मूल उत्पत्ति व परिकल्पना धनी देशों के विश्व व्यापार मंच की ही थी। कटु यथार्थ यह भी है कि जी-20 देशों द्वारा गर्म करती गैसों के उत्सर्जन व उनके कारण खेमों में बंटी दुनिया भी पूरे विश्व का ही जोखिम बढ़ा रही है। पिछले अनुभव बताते हैं कि जलवायु पर विभाजित विश्व में एक परिवार का उद्देश्य पाना मुश्किलों भरा है। शर्म-अल-शेख में आयोजित ‘कौप-27’ सम्मेलन में खेमों में बंटे देशों के व्यवहार में कटुता देख यूएनओ महासचिव एंटोनियो गुटेरस को तो यहां तक कहना पड़ा कि उत्तर और दक्षिण तथा विकसित व विकासशील आर्थिकियों के लिये एक-दूसरे पर आरोप लगाने का यह उपयुक्त समय नहीं है। ऐसे में विनाश निश्चित है। उनका कहना था कि हम उन देशों को पर्यावरण न्याय से वंचित नहीं कर सकते जिनकी जलवायु आपदा लाने में कोई भूमिका नहीं रही है। उनका आशय सबसे कम विकसित और द्वीपीय देशों से था जिनकी जलवायु आपदा फैलाने में सबसे कम भूमिका है, किन्तु जो जलवायु आपदा की मार सबसे ज्यादा झेलते हैं।
इतिहास में कौप-27 ऐसा पहला सम्मेलन बन गया जिसमें भारी दबावों के बीच धनी देशों ने आर्थिक व सामाजिक संरचनाओं को होने वाले नुकसानों की भरपाई के लिये कार्बन प्रदूषण से पीडि़त गरीब देशों की एक मुआवजा-कोष की मांग मान ली। कौप-27 में जलवायु जोखिम से असुरक्षित देशों ने तो कोष स्वीकृति पर दबाव बनाने के लिये यह धमकी भी दे डाली कि जब तक इस पर निर्णय नहीं होगा वे वापस नहीं जायेंगे। जून 2022 में निकली 55 देशों की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि पिछले दो दशकों में जलवायु आपदाओं से इन देशों में लगभग 525 अरब डालर की हानि हुई है।
यह उनके सम्मलित जीडीपी का लगभग 20 प्रतिशत है। दिल्ली सम्मेलन में भी पहुंचे यूएनओ महासचिव एंटोनियो गुटेरस पहले दिन ही, नौ सितम्बर 2023 को क्लाइमेट व इनवायरमेंट के सत्र में चेता गये थे कि इस जलवायु आपदा काल पर तुरंत काम किया जाना चाहिये। जो कुछ जैसा चल रहा है, उसको हम वैसा जारी नहीं रख सकते। यहां से कड़ा संदेश जाना चाहिये। हर हाल में धरा की तापमान बढ़ोतरी को रोकने का लक्ष्य जिंदा रखना चाहिये, किन्तु असल में ऐसा कुछ नहीं हुआ।