पहले तो सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे जाते थे. इस बार भारतीय सेना ने सबूत के साथ सारा ऑपरेशन किया है. पाकिस्तान खुद अपनी बर्बादी के सबूत दुनिया को दिखा रहा है. अपनी अपनी सेटेलाइट से दुनिया के देश पाकिस्तान पर भारत के हमले का नजारा देख रहे हैं..!!
भारतीय सेना ने ऐसा करिश्मा किया है कि, दुनिया उसकी बारीकियां समझने की कोशिश कर रही है, यह सारे सबूत भी कांग्रेस को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं. उनके सवाल पाकिस्तान से भी ज्यादा है. सरकार को घेरने के लिए अब उनका ताजा सवाल है कि पहलगाम के आतंकवादी कहां चले गए? अब तक न वो पकड़े गए और ना मारे गए तो फिर बदला कैसे पूरा हो गया?
आतंकवादियों की फैक्ट्री को उड़ा दिया गया है. उनके ज़नाजे दुनिया देख रही है. लेकिन कांग्रेस सरकार की कमियां तलाश रही है. भारतीय सेना ने पाक के भीतर घुसकर जिन आतंकवादी ठिकानों को उड़ाया है, उनमें जितने आतंकवादी मारे गए हैं, उनमें पहलगाम के आतंकी भी शामिल हों, क्या ऐसा नहीं हो सकता है?
पहलगाम के आतंकवादियों को ढूंढने के लिए ना मोदी मैदान में है और ना ही अमित शाह. मैदान में तो हमारी सेना और दूसरी फोर्सज जंगलों की ख़ाक छान रही हैं. जम्मू कश्मीर में इस बीच में कई दुर्दांत आतंकवादी मौत के घाट उतारे गए हैं. अगर पहलगाम के आतंकवादी अब तक नहीं पकड़े गए हैं और इस पर सवाल किया जाता है तो यह सवाल हमारी फोर्सज पर है.
सवालों के गोले भले मोदी सरकार के खिलाफ दागे जा रहे हों, लेकिन इसका निशाना तो फोर्सेज तक ही जाता है. कांग्रेस और आतंकवाद का इतिहास समानांतर चलता रहा है. जम्मू कश्मीर में जितने आतंकवादी हमले हुए हैं उनमें लाखों बेगुनाहों का खून बहाया गया है. आतंकवाद की जड़ को समाप्त करने के लिए अगर हमारी नीति शुरू से वर्तमान जैसी होती तो शायद अब तक हम इस नासूर से आगे निकल चुके होते.
सरकार के विरोध के कारण कांग्रेस तो यह मानने को ही तैयार नहीं है कि, भारत ने पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर में बड़ी जीत हासिल की है. आतंक के ठिकानों को और उनके एयरबेस को उडाकर भारतीय सेना ने जो इतिहास रचा है, वह पाक प्रायोजित आतंकवाद की कमर तोड़ने में मील का पत्थर साबित होगा.
कांग्रेस जानती है कि, आतंक के खिलाफ यह पहला ऐसा हमला है जिससे करारा सबक सिखाया गया है. मजबूरी राजनीति की है. अगर हम मान लेंगे तो फिर मोदी सरकार को क्रेडिट देना पड़ेगा और यह कांग्रेस को कभी भी मंजूर नहीं हो सकता. कांग्रेस के सवालों को पाकिस्तान अपने झूठे प्रोपेगेंडा में उपयोग कर रहा है फिर भी ऑपरेशन सिंदूर पर राजनीति छोड़ी नहीं जाती है.
कांग्रेस कार्यकर्ताओं की आर्मी और पार्टी का सुपर पावर अलग-अलग ढंग से सोचता है. सुपर पावर राजनीति को प्राथमिकता देता है तो कार्यकर्ता के लिए देश सबसे ऊपर है. कांग्रेस का यह अंतर्विरोध कई बार सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित भी हो रहा है. जब आम कार्यकर्ता बिना किसी सवाल के ऑपरेशन सिंदूर में सेना और सरकार के साथ खड़ा दिखाई देता है तो पार्टी का सुपर पावर सवालों के गोले दाग कर पीएम मोदी को कटघरे में खड़ा करने में कोई कमी नहीं छोड़ता.
पीएम मोदी ने संसद में एक बार कहा था कि, कुछ लोगों को ऐसा सीक्रेट वरदान मिला हुआ है कि, वह जिसके खिलाफ काम करेंगे, जिसका विरोध करेंगे उसका उल्टा प्रभाव पड़ेगा. निश्चित रूप से उनका इशारा कांग्रेस और उसके सुपर परिवार की तरफ था. जो कांग्रेस आजादी के आंदोलन की विरासत पर खड़ी है वही पार्टी किसी सरकार में किसी नेता के विरोध के कारण यह भी भूल जाती है कि, उसके सवाल दुश्मन देश के प्रोपेगेंडा को सहयोग दे रहे हैं.
लोग ऐसा सोचते हैं कि, यह जानते हुए भी कि ऐसे स्टैंड से कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचेगा फिर भी वैसे सवाल उठाए जाते हैं तो यह सोची समझी रणनीति है या मूर्खतापूर्ण कार्रवाई. बालाकोट एयर स्ट्राइक के समय भी सबूत मांगे गए थे. सरकार के खिलाफ सवाल खड़े किए गए थे. उसके बाद हुए आम चुनाव में देश के लोगों ने कांग्रेस के ताबूत में कील ठोंक दी थी.
ऑपरेशन सिंदूर देश की जन भावनाओं से इतना जुड़ गया है कि अब कांग्रेस को सिंदूर शब्द से ही नाराजगी सी हो गई है. बीजेपी आपरेशन सिंदूर की सक्सेस को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सिंदूर को प्रतिकात्मक रूप से उपयोग करने की बात कर रही है तो कांग्रेस इसे भी मोदी विरोध के प्रतीक के रूप में उपयोग करने में लगी है. पूरा देश ऑपरेशन सिंदूर से गदगद है तो कांग्रेस अपना ऑपरेशन फितूर जारी रखे हुए हैं.
कुछ सवाल ऐसे होते हैं जिनके उत्तर की कोई प्रतीक्षा ही नहीं करता बल्कि सवाल करने वाले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है. कांग्रेस ऐसे ही सवाल कर रही है जिसका उत्तर तो ना मिला है और न ही मिलेगा. लेकिन उसका नुकसान कांग्रेस स्वयं अपने कांधों पर सवालों के साथ ही लाद लेती है. देश की सुरक्षा और युद्ध ऐसे विषय हैं, जिन पर संसद में भी चर्चा नहीं होती. इसके लिए भी मान्य परंपरा स्थापित है. संसद सत्र होगा भी तो उन सवालों पर चर्चा नहीं होगी, जो सवाल कांग्रेस खड़े कर रही है
कांग्रेस का संगठन वैसे ही उड़ा हुआ है. वैचारिक गोले मिसफायर हो रहे हैं. पूछे जा रहे सवालों के कारण पार्टी के संभावित नुकसान को कांग्रेस के रडार पकड़ नहीं पा रहे हैं.
पार्टी का कोई डिफेंस सिस्टम बचा नहीं है. जैसे पाकिस्तान उधार की जिंदगी जी रहा है वैसे ही कांग्रेस को भी मोदी विरोध की राजनीति का ही सहारा है .केवल विरोध से ही काम नहीं चलेगा कांग्रेस को जनसेवा, समर्पण और राष्ट्र सेवा की नई मिसाइल विकसित करना होगा.