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महंगाई नीचे आती नहीं दिखती, कुछ और सोचिये!

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Tue , 20 Apr

सार

प्रतिदिन -राकेश दुबे - मुफ्त की राजनीति को अमलीजामा पहनाने से  तो राज्य की अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ और बढ़ेगा। चुनाव के दौरान आप ने बिजली-पानी में रियायत के जो वादे कियेजाते है , उनको हकीकत बनाना टेढ़ी खीर ही साबित हो रही है ।

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विस्तार

प्रतिदिन -राकेश दुबे                                                                            

आगामी ६ माह में नया साल २०२३ आ जायेगा,लेकिन २०२३ के मार्च बीतने तक महंगाई नीचे नहीं आएगी| भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि इस वर्ष दिसंबर तक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक छह प्रतिशत से अधिक बना रहेगा| वर्तमान वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च,२०२३ ) में ही मुद्रास्फीति बमुश्किल छह प्रतिशत से नीचे आ सकेगी| इसका अर्थ यह है कि महंगाई से जल्दी राहत मिलने की आशा नहीं है| इससे पारिवारिक खर्च और बचत पर तो असर पड़ेगा ही, खाद्य पदार्थों, निर्मित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य में भी वृद्धि संभावित है|

हम सब तो यह करने की सोच भी सकते हैं, परन्तु देश की राज्य सरकारें कब  जागेंगी? मुफ्त की राजनीति को अमलीजामा पहनाने से  तो राज्य की अर्थव्यवस्था पर कर्ज का बोझ और बढ़ेगा। चुनाव के दौरान आप ने बिजली-पानी में रियायत के जो वादे कियेजाते है , उनको हकीकत बनाना टेढ़ी खीर ही साबित हो रही है । राज्य सरकारें कह रही है कि जीएसटी लागू होने से राज्यों को नुकसान हुआ है, इनमे पंजाब सरकार भी है जहाँ  कृषि पैदावार को जीएसटी के अधीन न लाकर बड़ी छूट दी गई है। चिंता यह है कि राज्य में कर्ज का बोझ पंजाब सरकार के वार्षिक बजट से दोगुना हो गया है। राज्य सरकारें वित्तीय संसाधनों का बेहतर प्रबंधन नहीं कर पायी हैं। वहीं जून, २०२२ में जीएसटी मुआवजा खत्म होने से सरकारों को झटका लगा है। दरअसल, वोट जुटाने के लिये मुफ्त बिजली, पानी, सार्वजनिक परिवहन और कृषि ऋण माफी जैसी नीतियों के चलते राज्यों पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ा है।

इस स्थिति मेंदेश के और देश के बाहर के  उद्योग भी नये निवेश से कतराते हैं| मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के एक ठोस उपाय के रूप में कुछ समय पहले रिजर्व बैंक ने दो चरणों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी की तथा बैंकों के लिए निर्धारित संचित राशि रखने की सीमा भी बढ़ायी गयी| इस माह की मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक ने मानसून के सामान्य रहने तथा भारतीय खरीद के लिए कच्चे तेल की कीमत औसतन १०५  डॉलर प्रति बैरल होने की उम्मीद पर २०२२-२३ में मुद्रास्फीति के ६.७ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है|

आंकड़े कहते हैं ,इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह ७.५, दूसरी तिमाही में ७.४, तीसरी तिमाही में ६.२ और चौथी तिमाही में ५.८ प्रतिशत रह सकती है| उल्लेखनीय है कि कई महीनों से थोक मूल्य सूचकांक भी दो अंकों में है| उसका प्रभाव खुदरा मूल्यों पर पड़ना स्वाभाविक है| मानसून के सामान्य रहने का अनुमान तो है, पर जलवायु परिवर्तन और धरती के तापमान में वृद्धि जैसे कारकों के असर अनिश्चित हैं|

इस वर्ष के प्रारंभिक महीनों में अधिक तापमान होने से गेहूं की पैदावार प्रभावित होने की खबरें है| इस कारण भारत सरकार को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ी| कुछ जानकारों का मानना है कि ऐसा निर्णय चावल के बारे में भी करना हो सकता है. मुद्रास्फीति से भारत ही नहीं, अन्य अर्थव्यवस्थाएं भी प्रभावित हैं| अमेरिका और ब्रिटेन में महंगाई दर चार दशकों में सबसे अधिक हो चुकी है| अन्य यूरोपीय देश और चीन भी इसका सामना कर रहे हैं|

इसे क्या नाम दें ,वैश्विक अर्थव्यवस्था ने कोरोना महामारी के असर से उबरना शुरू ही किया था कि रूस और यूक्रेन के युद्ध ने तेल, प्राकृतिक गैस और अनाज का व्यापक संकट पैदा कर दिया| रूस और अमेरिका व यूरोपीय संघ के परस्पर आर्थिक प्रतिबंधों ने भी लेन-देन और आवाजाही को मुश्किल बना दिया है| महामारी के दौरान लगी पाबंदियों में ढील के साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार में बहुत तेजी आयी थी, जिसका एक नकारात्मक असर आपूर्ति शृंखला में अवरोध के रूप में सामने आया|

चीन द्वारा कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उठाये गये बेहद कठोर उपायों से भी अंतरराष्ट्रीय बाजार को धक्का लगता रहता ही है| ऐसी स्थिति में भारत के लिए अधिक मुद्रास्फीति से बचे रहना संभव नहीं है|