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महँगाई: शिक्षा प्रभावित, कुछ और क्षेत्र भी गंभीर

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Thu , 08 Dec

सार

भारत में महंगाई अपने चरम पर जा रही है, इसके आसार अब साफ़ नज़र आने लगे हैं..!

janmat

विस्तार

भारत में महंगाई अपने चरम पर जा रही है, इसके आसार अब साफ़ नज़र आने लगे हैं। देश का मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग इससे हलकान है। इन दोनों वर्गों ने अपने ख़र्चों में कटौती करना शुरू कर दिया है। एक सर्वे के मुताबिक़ भारत में कोई 40 लाख बच्चों को निजी स्कूल छोड़ना पड़ा है। इसके अलावा रोज़मर्रे के कई और क्षेत्र इसकी चपेट में आते दिख रहे हैं।

वैसे तो भारत में फरवरी महीने से ही महंगाई को लेकर चिंता जताई जा रही है। भारत में खुदरा महंगाई दर पिछले 17 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में, विगत दो महीने से रिजर्व बैंक से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह रेपो रेट बढ़ाएगा, ताकि महंगाई से लोगों को कुछ राहत मिलेगी।

ज्यादातर अर्थशास्त्री यह तय मान रहे थे कि भारतीय रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने बढ़ती महंगाई पर ध्यान देते हुए रेपो रेट में करीब दो साल बाद यह बदलाव किया है।इससे मिलने वाली राहत ऊँट के मुँह में जीरे की कहावत की तरह है। कुछ और विचार फ़ौरन ज़रूरी है।

केंद्रीय बैंक को पूरी अर्थव्यवस्था को समग्रता में देखना चाहिए। जहां अमीरों या निवेशकों के साथ न्याय जरूरी है, वहीं सबसे ज्यादा जरूरी है, कीमतों को नियंत्रण में रखना। बढ़ती कीमतों का असर हरेक आदमी और हर कंपनी पर पड़ रहा है। रिजर्व बैंक के लिए भी यह बहुत जरूरी है कि वह जहां देश के विकास की रफ्तार को सुनिश्चित रखे, वहीं तेज महंगाई पर भी लगाम लगाए।  

भारतीय रिजर्व बैंक ने महंगाई को कम करने के लिए महीनों इंतजार के बाद जो कदम उठाया है, जिस पर स्वाभाविक ही मिश्रित प्रतिक्रिया हो रही है। मई 2020 से ही रिजर्व बैंक रेपो रेट को स्थिर रखे हुए था। कोरोना दुष्काल के शुरुआती दिनों में जब लॉकडाउन लगा था और उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे थे, तब रिजर्व बैंक ने यह फैसला लिया था कि वह रेपो रेट को स्थिर रखेगा।

रेपो रेट को स्थिर या न्यूनतम चार प्रतिशत पर रखने का मकसद था, बैंकों को आसानी से पर्याप्त नकदी मुहैया कराना। अब जब रेपो रेट में बढ़ोतरी कर दी गई है, तब बैंक पहले की तुलना में कम नकदी या पैसे रिजर्व बैंक से उधार लेंगे। अनुमान है कि इससे बैंकों के पास जब नकदी की कमी होगी, तब वे भी ब्याज बढ़ाएंगे या अगर ब्याज नहीं बढ़ाया, तो ऋण देने में कमी करेंगे। ऋण देने में जब कमी आएगी, तब बाजार में अनेक वस्तुओं, जमीन-जायदाद की खरीद में भी कमी आएगी। जब खरीद में कमी आएगी, तब महंगाई भी कम होगी। 

रिजर्व बैंक ने जैसे ही रेपो रेट को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत किया, वैसे ही शेयर बाजार में बिकवाली चालू हो गई। मतलब शेयरों को खरीदने की तुलना में शेयरों को बेचने की होड़ मच गई। रेपो रेट बढ़ने के बाद शेयर बाजार में भारी गिरावट आई। बॉम्बे शेयर बाजार 1306 अंक से ज्यादा गिर गया। निफ्टी भी 408 अंक गिरा।

यह कहने की जरूरत नहीं है कि भारतीय शेयर बाजार में तेजी लगातार बनी हुई है। जब बुरा दौर चल रहा था, तब भी भारतीय शेयर बाजार में तेजी दिख रही थी, क्योंकि मौद्रिक नीतियां ऐसी थीं कि निवेशकों को जरूरत से ज्यादा सहूलियत हो रही थी। बहुत से लोग कोरोना दुष्काल में भी मालामाल हुए हैं और महंगाई भी लगातार बढ़ रही है।

शिक्षा विशेषकर स्कूल शिक्षा क्षेत्र में निजी स्कूलों से 40 लाख बच्चों का जाना छोटी घटना नहीं है, भविष्य का एक ख़तरनाक संकेत है। इनमे अधिकांश मध्यम वर्ग से सम्ब्न्ध रखते हैं, ये महंगाई के कारण किसी और स्कूल में जाएँगे तो गरीब तबके बच्चों को पढ़ने की आयु में वो सब करना होगा, जो भारत के समाज को विकास की ओर जाने में बाधक होगा । पड़ौसी देश यथा श्री लंका और पाकिस्तान के हालात जगज़ाहिर है, भारत को फ़ौरन कुछ करना चाहिए।