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केजरीवाल : अब तो सब स्पष्ट है 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 30 Apr

सार

केजरीवाल के सचिव को बर्खास्त कर दिया गया है, उनके मंत्रिमंडल के एक सदस्य ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है..!!

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विस्तार

यूँ तो केजरीवाल अब सुप्रीम कोर्ट का रुख़ कर रहे हैं। कारण साफ़ है दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की गिरफ्तारी और रिमांड को ‘वैध’ और ‘न्यायसंगत’ करार दिया है। केजरीवाल के सचिव को बर्खास्त कर दिया गया है, उनके मंत्रिमंडल के एक सदस्य ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इस्तीफ़ा दे दिया है।

 केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) को अदालत ने तब करारा झटका दिया, जब उसने शराब नीति और कथित घोटाले में दोनों की संलिप्तता भी मानी। अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के साक्ष्यों और दस्तावेजों के सौजन्य से कहा कि केजरीवाल साजिश में शामिल थे। उन्होंने ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक के तौर पर घूस भी मांगी थी। रिश्वत का पैसा गोवा चुनाव में खर्च किया गया। उसकी मनी टे्रल भी स्पष्ट है। कानून की दृष्टि से मुख्यमंत्री को कोई विशेषाधिकार नहीं है कि उनकी गिरफ्तारी चुनाव के समय पर नहीं हो सकती है । 

ईडी ने जो सामग्री, तथ्य, ई-मेल और व्हाट्स एप चैट के ब्योरे अदालत के सामने रखे हैं, वे सही और पर्याप्त हैं। जांच एजेंसी ने सबूतों के आधार पर गिरफ्तारी की है। केजरीवाल गवाहों से ‘क्रॉस’ कर सकते हैं। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने गंभीरता से यह टिप्पणी की है कि सरकारी गवाहों पर उंगली उठाना अदालत और न्यायाधीश पर आक्षेप लगाना है। अदालत का सरोकार संवैधानिक नैतिकता के प्रति है। अदालत पर कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं होता और न ही उसे चुनाव के समय, चुनावी टिकट और चुनावी बॉन्ड से कोई लेना-देना है। सरकारी गवाहों के बयान पीएमएलए और धारा 164 में न्यायाधीश के सामने लिए गए हैं। सरकारी गवाह का प्रावधान सैकड़ों साल पुराना है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि इन प्रावधानों का उपयोग केजरीवाल को फंसाने के लिए किया गया।

वैसे भी यह मामला ईडी और केजरीवाल के बीच का है। इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। केजरीवाल ने उच्च न्यायालय में उनकी गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती दी थी, गलत करार दिया था, लेकिन जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने इन टिप्पणियों के साथ केजरीवाल की अर्जी को खारिज कर दिया। केजरीवाल और ‘आप’ के सामने अब भी सर्वोच्च अदालत में इस फैसले को चुनौती देने का संवैधानिक विकल्प शेष है, लेकिन उच्च न्यायालय के स्तर पर यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि शराब नीति बनाने और उसकी आड़ में घूस मांगने के कथित अपराध में केजरीवाल भी संलिप्त थे।

 बेशक ‘आप’ के नेता और प्रवक्ता दलीलें देते रहें कि चवन्नी भी बरामद नहीं हुई है। केजरीवाल को फंसाना और जेल तक पहुंचाना अभी तक की सबसे बड़ी राजनीतिक साजिश है। भाजपा ‘आप’ को कुचल देना चाहती है, दिल्ली की सरकार गिराने के उसके मंसूबे हैं। ‘आप’ राजनीतिक स्तर पर कितने भी अभियान चलाए, लेकिन अदालत के सामने ठोस साक्ष्य हैं। उन्हें अदालत ने बुनियादी तौर पर स्वीकार भी किया है। हवाला ऑपरेटर्स के बयान भी मौजूद हैं। जिन्होंने घूस की राशि दी है, उनके बयान, ई-मेल, व्हाट्स एप चैट, बैठकों और मुलाकातों आदि के ब्योरे भी उपलब्ध हैं। केजरीवाल और ‘आप’ किस-किस को झुठलाने की कोशिश करेंगे। दरअसल केजरीवाल एक चक्रव्यूह में फंस चुके हैं। उनकी कानूनी टीम और अन्य सलाहकारों ने गलत सलाह दी। केजरीवाल को ईडी के 9 समन्स को खारिज नहीं करना चाहिए था। अब जो कानूनी निष्कर्ष सामने हैं, वे उच्च न्यायालय के हैं। किसी के खोखले आरोप नहीं हैं। नौबत यहां तक पहुंच चुकी है कि यदि ‘आप’ का भ्रष्टाचार भी साबित हो गया और ‘आप’ के राष्ट्रीय संयोजक के नाते केजरीवाल का अपराध भी साबित हो गया, तो चुनाव आयोग ‘आप’ की मान्यता भी रद्द कर सकता है।

‘आप’ के प्रवक्ताओं को शरत रेड्डी और 60 करोड़ रुपए के चुनावी चंदे और भाजपा की वाशिंग मशीन में धुल कर आरोपितों के पाक-साफ होने सरीखे तर्कों के अलावा कुछ और भी ठोस तर्क देने होंगे। एक चोर दूसरे चोर पर उंगली उठाते हुए यह दलील नहीं दे सकता कि उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है? यदि ‘आप’ की दलीलों में दम है, तो वह भाजपा में शामिल होने वाले ‘चोरों’ के खिलाफ अलग से शीर्ष अदालत में जा सकती है। 

फिलहाल केजरीवाल और उनके साथी शराब घोटाले में आरोपित होकर जेल में हैं। पीएमएलए मामलों में जमानत भी आसान नहीं होती। केजरीवाल के प्रति सामाजिक, सार्वजनिक मोहभंग भी अब सामने आने लगेगा। वह राजनीतिक शुचिता और नैतिकता को जरूर याद करें, जिनका शोर मचाते हुए उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया था। वैसे अभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार भी है।