संप्रभु राष्ट्र से सीधा अर्थ निकलता है, वो राष्ट्र जिसके पास अपनी पूर्ण शक्ति और अधिकार हो तथा उसे कोई भी ऐसा काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसे वह राष्ट्र न करना चाहें। भारत की आज इसी कसौटी पर परीक्षा है|
प्रतिदिन राकेश दुबे
दुनिया के देशों का एक धड़ा, भारत पर दबाव बना रहा है| कारण, बयानबाज़ी है, जिससे भारत में कुछ राजनीतिक बाज़ नहीं आ रहे और सरकार सीधे से कोई सम्वाद करने से बच रही है| क्या यह किसी सम्प्रभु राष्ट्र की निशानी है? एक बड़ा सवाल है| संप्रभु राष्ट्र से सीधा अर्थ निकलता है, वो राष्ट्र जिसके पास अपनी पूर्ण शक्ति और अधिकार हो तथा उसे कोई भी ऐसा काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जिसे वह राष्ट्र न करना चाहें। भारत की आज इसी कसौटी पर परीक्षा है|
यह सब जानते है,भारत फिलहाल अमेरिका या चीन जैसी आर्थिक ताकत नहीं है। रक्षा मोर्चे पर हमारी सेना दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है लेकिन वह मुख्यत: रक्षात्मक सेना है जिसका फोकस भारत में घुसपैठ से, खासतौर से कश्मीर में लोहा लेना है|हमारी सेना ऐसी नहीं है जो देश की सीमाओं से बाहर कहीं तैनात हो या उसकी ऐसी क्षमता हो।ऐसा न करने या करने की कोशिश न करने के भारत के अलग कारण हैं। वैसे एक गरीब देश के लिए ऐसा करना उचित भी नहीं होगा कि वह अपने सीमित संसाधनों को सैन्य शक्ति विकसित करने में खर्च करे जोकि पूरी तरह से रक्षा के लिए नहीं है।
हम वैश्विक संकेतकों पर पिछड़े हुए हैं वास्तव में भारत एक आंशिक लोकतंत्र ही है। इसके चलते हम अपनी पूरी क्षमता और ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। इसी कारण से हमें भारत में मानवाधिकारों और अल्पसंख्यकों के साथ बरताव पर दूसरे देश क्या कहते हैं उन्हें भी सुनना चाहिए।
अर्थव्यवस्था- बांग्लादेश हमसे प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में आगे निकल गया है। २०१४ में बांग्लादेश हमसे ५० प्रतिशत पीछे था, लेकिन अब हमसे आगे निकल चुका है। बेरोजगारी और उपभोग के मोर्चे पर सरकारी आंकड़े ही सारी हकीकत बयान कर देते हैं। बीते कुछ सालों की हालत देखें तो साफ हो जाता है कि भारत आने वाले दिनों में आर्थिक रूप से चीन या अमेरिका के आसपास कहीं पहुंच सकेगा ।जर्मनी, जापान, ताइवान और दक्षिण कोरिया ने आर्थिक और तकनीकी तौर पर खुद को विकसित किया है और इसी आधार पर वे बाहरी देशों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। इन सभी देशों को मिलाकर भी भारत इनसे कहीं बड़ा है लेकिन हमारी कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण हम अपनी क्षमता का इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं।
कहने को कुछ खाड़ी देशों की मांग और दबाव में भारत सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी ने कुछ कदम उठाए तब कुछ बातें थी जिन्हें हमें ध्यान में रखना चाहिए था । ये मांगें कितनी जायज थीं, यह अलग मुद्दा है या फिर भाजपा के कारण भारत इस स्थिति में पहुंचा है, यह भी अलग ही मुद्दा है। बहुत से लोग इस बारे में लिख रहे हैं। मुद्दा यह है कि आखिर भाजपा सरकार ऐसा कदम उठाने को क्यों मजबूर हुई जो वह करना ही नहीं चाहती थी। शायद ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भाजपा को नहीं पता था कि सरकार के पास भारत के सभी अंदरूनी मुद्दों से ध्यान भटकाने की क्षमता है। हम ऐसे मामलों में नाजुक स्थिति में हैं ।
आज बाहरी दबाव का विरोध करने के लिए भाजपा भारत की अंतर्निहित संपत्ति का उपयोग कर सकती है और मानवाधिकारों और अल्पसंख्यक अधिकारों को अधिक स्थान देकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने का प्रयास कर सकती है। इसे अल्पावधि में किया जा सकता है। भारत को एक प्रमुख आर्थिक शक्ति बनाने में अधिक समय लगेगा, लेकिन पहला कदम यह आकलन करना हो सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में क्या गलत हुआ है?