होली, दिवाली जैसा राज्यों के बजट सत्र में कैग रिपोर्ट आती है. कुछ करप्शन और अनियमितता के रंग और पटाखे छूटते हैं. जिस दिन रिपोर्ट आती है, उसी दिन मीडिया की भी उस पर नजर जाती है, उसके बाद तो कैग रिपोर्ट अगले साल नई अनियमितता और भ्रष्ट्राचार के आंकड़ों के साथ चर्चा में आती है.!!
पुरानी रिपोर्ट पर क्या हुआ यह जानना तो सामान्य इंसान के लिए संभव नहीं है. सिस्टम के समंदर में कैग रिपोर्ट की लहर उठती है और फिर उसी में समा भी जाती है. हाल ही में मध्य प्रदेश की विधानसभा में भी कैग रिपोर्ट आई है. रिपोर्ट की इसलिए ज्यादा चर्चा है क्योंकि इसमें आपदा का मुआवजा पीड़ितों को देने के बदले अफसरों ने अपने रिश्तेदारों के खातों में डाल दिया.
विधानसभा में पेश रिपोर्ट में बताया गया है कि, वर्ष 2018 से वर्ष 2022 के बीच मध्य प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को रूपये दस हजार साठ करोड़ की राहत राशि वितरित की गई. इसमें से 13 जिलों में रूपये 23.81 करोड की राशि फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर कर दी गई. सरकारी सिस्टम ने फर्जी आदेश तैयार कर अपने रिश्तेदारों के बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर करवाए.
ऐसी ही गड़बड़ी संबल योजना में भी बताई गई है. इस रिपोर्ट में सबसे गंभीर बात उजागर हुई है कि ग्लोबल बजट प्रणाली और आईएफएमआईएस सिस्टम की कमियों ने ई-भुगतान प्रणाली को कर्मचारियों के लिए सरकारी धन के गबन का माध्यम बना दिया है.
अंत्येष्टि सहायता योजना निधि में भी गड़बड़ी इस रिपोर्ट में बताई गई है. सरकारी जमीन आवंटन में भी गड़बड़ी की बात सामने आई है.
कैग रिपोर्ट सिस्टम के ही समुद्र का हिस्सा होती है. इसका अधिकांशतः उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ही किया जाता है. यूपीए सरकार के खिलाफ वर्ष 2014 में बीजेपी ने कैग रिपोर्ट के आधार पर देश में भ्रष्टाचार को चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाया था. कैग रिपोर्ट को ही आधार बनाकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी ने बड़ा सियासी अभियान चलाया.
दिल्ली में सरकार बनने के बाद बीजेपी ने शराब घोटाले सहित शीश महल और दूसरे विषयों पर कैग रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया. कैग रिपोर्ट का जितनी चातुर्य के साथ राजनीतिक उपयोग बीजेपी ने किया है, इतना कोई भी राजनीतिक दल करने में सक्षम नहीं रहा है.
वही कैग रिपोर्ट है जिस पर दिल्ली में तो बीजेपी हमलावर होती है लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी हीला हवाला बताने लगती हैं. जहां तक मध्य प्रदेश के विपक्ष का सवाल है, उनका तो करप्शन का इतना लंबा इतिहास है कि करप्शन और अनियमितता के किसी मामले पर ताकत से हमला करने की ना उनकी राजनीतिक सामर्थ्य है और ना ही नैतिक ताकत.
कैग रिपोर्ट में यह भी बताया है कि दस हज़ार करोड़ से ज्यादा की राशि प्राकृतिक आपदा से पीड़ित परिवारों को दी गई है. आपदा राशि में जो गड़बड़ियां पकड़ी गई है वह तो समझी जा सकती हैं लेकिन जिस राशि का वितरण बताया गया है उसमें गड़बड़ियां नहीं होगी, यह दावे से कैग नहीं कह सकता है. आपदा राशि तो वैसे ही बंदर बाँट का ही जरिया बनती है.
विधानसभा के सत्र में कैग रिपोर्ट चर्चित होती है तो यह भी देखने में आता है कि, ऐसी अजीब अजीब घटनाएं प्रदर्शन, दंगे-फसाद और विवाद विधानसभा सत्रों के दौरान होते ही, जो सदन में मुद्दा बनते हैं. इस पर भी शोध होना चाहिए कि, कहीं ऐसा तो नहीं है कि चाहे संसद हो या विधानसभाएं हो उनमें चर्चा के लिए कुछ घटनाओं को स्वार्थ के साथ अंजाम दिया जाता है.
संसद सत्र में भी ऐसा देखा गया था. इसी दौरान ही अमेरिका में हिडन वर्ग के रिपोर्ट आती है. अदानी के खिलाफ विदेशी कोर्ट का फैसला आता है. कानून व्यवस्था की स्थितियां बिगड़ती हैं, इसका अध्ययन किया जाएगा तो बड़ी रोमांचक बात स्थापित होगी कि संसद और विधानसभाओं के सत्रों के दौरान घटनाओं में अचानक तेजी आ जाती है. प्रदर्शनों की भीड़ आ जाती है. बयानों में कट्टरता बढ़ जाती है. जैसे ही यह सत्र समाप्त होतें हैं फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है.
सिस्टम के समुद्र में पक्ष, विपक्ष सामूहिक होते हैं. समुद्र की लहर से उठने वाले सियासी रंग का सुविधानुसार उपयोग करने से दोनों पीछे नहीं रहते हैं.
कैग रिपोर्ट का अंतिम निराकरण विधानसभा और लोकसभा में गठित पब्लिक अकाउंट्स कमेटी द्वारा किया जाता है. नैतिक सुचिता के लिए ऐसी व्यवस्था है कि, इस कमेटी का अध्यक्ष विपक्ष का ही सदस्य होता है. कैग रिपोर्ट में जो घोटाले और अनियमितताएँ उजागर की जाती है, उनमें अब तक कोई पॉलिटिकल गवर्नमेंट का जिम्मेदार लोक सेवक दंडित होता दिखाई नहीं देता और ना बड़े अफसर दोषी पाए जाते हैं. छोटे-मोटे अफसर और कर्मचारी को बलि का बकरा बनाकर सिस्टम के समुद्र की कैग लहर को सिस्टम में समाप्त कर दिया जाता है.
जो जन धन की बर्बादी होती है, उसकी तो अजीब हालत है. ऐसी योजनाएं निर्मित कर स्वीकृत कर दी जाती है, उन पर धनराशि खर्च कर दी जाती है और फिर आपत्ति आ जाती है. उनकी लागत बढ़ती रहती है और मनमर्जी से उन योजनाओं को पूरा भी कर दिया जाता है.
लेट लतीफी के कारण योजनाओं की लागत बढ़ने से जो जन-धन बर्बाद होता है उसके लिए भी सिस्टम जिम्मेदार है. सिस्टम की एक खासियत होती हैकि, इसका हर पार्ट अपने बचने का तरीका और तर्क अपने पास रखता है. जनता की सेवा का सिस्टम, जनता को तो कुछ बताता नहीं है. अपने भीतर ही जनधन का दुरुपयोग करप्शन, अनियमितता को अंजाम भी देता है और शिकायत या कैग रिपोर्ट जैसे तथ्य आने पर उनका समाधान भी अपने लेवल पर ही कर लेता है.
पूरी ऑडिट व्यवस्था को बदलने की जरूरत है. यह व्यवस्था भी उसी सिस्टम का पार्ट बन गई है जो करप्शन और अनियमितता करने में लगा होता है.
ऑडिट भी हिस्सेदारी को जनहित से ऊपर महत्व देता है. ऑडिट व्यवस्था को कागज का शेर कहा जा सकता है. जमीन पर जो कुछ हो रहा है उसका ऑडिट से कोई लेना देना नहीं है.
परिवहन विभाग में घोटाले और वसूली की जो परंपरा चल रही थी उसको कोई आडिट क्यों नहीं पकड़ सका? शायद इसीलिए कि, क्योंकि जमीन के सत्य से आडिट व्यवस्था अनभिज्ञ होती है.