राहुल गांधी पूरे दस के साल बाद प्रदेश कांग्रेस कार्यालय आ रहे हैं. कांग्रेस में जोश है. पीसीसी अपने राष्ट्रीय नायक के स्वागत को तैयार हैं. राहुल गांधी के सामने सबको अपनी वफादारी साबित करना है. साबित करने से वफादारी नहीं होती. वफादारी खून में होती है..!!
राहुल गांधी जब गुजरात गए थे तब उन्होंने कांग्रेस के भीतर गद्दारों की बात की थी. बीजेपी से मिले कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी से बाहर करने की बात की थी. अब जब वह मध्य प्रदेश आ रहे हैं तो राहुल गांधी के मनोनीत मध्य प्रदेश के संगठन और विधायक दल के नेताओं ने पहले ही गद्दारों को पहचान कर बाहर करने की बात शुरू कर दी है.
राहुल गांधी संगठन सृजन कार्यक्रम में आ रहे हैं. किसी भी सृजन के पहले धूल, मिट्टी साफ करना पड़ता है. खरपतवार हटाना पड़ता है. गद्दार शायद ऐसी ही खरपतवार हैं, जब वह हटेंगे तभी तो नया सृजन होगा.
राहुल गांधी संगठन को मजबूत और नया रूप देने के लिए नेक नियति से काम करते दिखाई पड़ते हैं. गद्दारी कभी कार्यकर्ता नहीं करता. इसकी शुरुआत तो बड़े और स्थापित नेताओं से ही होती है. पार्टी से ज्यादा जब पैसे से प्यार होता है, तभी गद्दार बनते हैं. कांग्रेस मध्य प्रदेश में पंद्रह महीने का कार्यकाल छोड़ दिया जाए तो दो दशकों से सत्ता में नहीं है.
कांग्रेस नेताओं के ठाठ-बाट और लाइफस्टाइल में कमी होने के बदले उल्टा इजाफा ही हुआ है. राहुल गांधी को क्या यह नहीं पता होगा कि, पंद्रह महीने में कितने ऐसे उनके नेता हैं, जो पहली बार मंत्री बने थे और जिन्होंने राजधानी भोपाल में करोड़ों के फार्म हाउस और मकान बना लिए हैं.
कांग्रेस के जो नेता लाखों की कमाई की क्षमता नहीं रखते वह करोड़ों की गाड़ियों में चलते हैं, तो यह समझने में किसी को मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि, इन नेताओं को पार्टी से ज्यादा पैसे से कितना प्यार है. जैसे ही कोई नेता पैसे में फंसता है, वैसे ही वह पार्टी से गद्दारी करने लगता है. भले हैं यह साबित हो या छिपा रहे.
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने विधानसभा में एक बार कहा था कि, करप्शन फाइलों में ढूंढने से कोई लाभ नहीं होगा. करप्शन तो लोगों के चेहरे और लाइफस्टाइल में तलाशना होगा. राहुल गांधी को पार्टी में गद्दार तलाशने और उन्हें पार्टी से बाहर करने के लिए इसी फार्मूले पर आगे बढ़ना होगा. इसमें अपने करीबी और दूरी को नजरअंदाज करना होगा.
राहुल गांधी ने अब तक पार्टी में जिससे भी धोखा खाया है, वह उनके सबसे करीबी होते हैं. किसी का नाम लेने की आवश्यकता नहीं है. सबको पता है कि राहुल गांधी के करीब कौन थे और कैसे उन्होंने गांधी परिवार और पार्टी को धोखा दिया. इसका मतलब है कि,गांधी परिवार भरोसा ठोक बजाकर नहीं करता. पहले के धोखे अपनी जगह हैं लेकिन वर्तमान में भी हालात वैसे ही दिखाई पड़ते हैं.
राष्ट्रपति के चुनाव में दो दर्जन विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. पार्टी चुपचाप इस धोखे को सहन कर लेती है. राज्य में नया नेतृत्व सौंपते समय वरिष्ठ नेताओं को भरोसे में नहीं लिया जाता. जो लोग स्थापित नेताओं के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी करते हैं, उन्हें ही राहुल गांधी नेतृत्व सौंप देते हैं. ऐसे कृत्यों से वफादार नहीं बन सकते. इससे तो पैसे से प्यार वाले गद्दार ही खड़े होंगे.
मध्य प्रदेश का कांग्रेस संगठन तुलनात्मक रूप से बहुत मजबूत हुआ करता था. उत्तर भारत में जब कांग्रेस कमजोर हो रही थी. यूपी से कांग्रेस समाप्त हो रही थी तब मध्य प्रदेश ने कांग्रेस को मजबूती दी थी. एक दौर था जब यह कल्पना नहीं की जा सकती थी कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा दल पांच साल तक सरकार चला सकता है.
यह तिलस्म टूटा और अब तो ऐसा माहौल बन गया है कि शायद मध्य प्रदेश की कांग्रेस भी उत्तर प्रदेश की तर्ज पर आगे बढ़ रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने पद संभालने के बाद कहा था कि नए निर्माण के लिए पहले भूमि को समतल करना जरूरी है. उनका भी इशारा पार्टी में बदलाव के लिए पुराने लोगों को हटाने से था. अब तो नए अध्यक्ष को काफी लंबा समय हो गया है. कांग्रेस आलाकमान की नजर में भले ही मध्य प्रदेश के संगठन में सुधार आया हो लेकिन जमीन में तो इसका प्रभाव दिखाई नहीं पड़ता. इसके बदले पार्टी के भीतर वहीं गुटबंदी, वही खेमेबाजी चारों तरफ मुंह बाये खड़ी है.
कमलनाथ अलग-थलग खड़े हैं. दिग्विजय सिंह भी अपनी संगठन क्षमता के आधार पर अपना महत्व बनाए हुए हैं. पीसीसी प्रेसिडेंट और नेता प्रतिपक्ष दोनों युवा नेता हैं. पार्टी को खड़े करने और जीत के लायक बनाने में सामूहिक प्रयासों से ज्यादा इस बात के प्रयास होते हैं कि, अगर मौका आता है तो सामने कोई प्रतिद्वंदी बचना नहीं चाहिए. इसलिए उसे पहले ही निपटा दिया जाए. निपटने निपटाने के इसी खेल में पार्टी अब तक निपटती रही है.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस ऐसी जगह खड़ी है, जहां जीत की संभावना पर ही मुख्यमंत्री की रेस शुरू हो जाती है. पिछले चुनाव में ही कमलनाथ तो भावी मुख्यमंत्री के रूप में पोस्टरों पर छाए हुए थे. यही प्रवृत्ति अभी भी चल रही है. सोशल मीडिया की दौड़ में हर पद पर बैठा नेता अपने को श्रेष्ठ प्रोजेक्ट करने में कोई कमी नहीं छोड़ता. कार्यकर्ता को तो कोई पूछता ही नहीं है. अब तो कांग्रेस नेताओं की पार्टी हो गई है. कार्यकर्ता तो हमेशा से महत्व पाने के लिए संघर्ष करते पाए जाते हैं.
अब कांग्रेस में कार्यकर्ता नहीं है बल्कि हर नेता का एक सोशल मीडिया गिरोह है, जो उस नेता को महान बनाने के लिए इसका भरपूर उपयोग करता है और इसी को आलाकमान के सामने अपनी सक्रियता के रूप में प्रस्तुत करता है. वैसे भी कांग्रेस सोशल मीडिया पर सक्रिय नेताओं को ही पद और चुनाव में टिकट देने की रणनीति पर काम कर रही है.
मध्य प्रदेश में संगठन सृजन कार्यक्रम की बहुत जरूरत है. राहुल गांधी की कोशिशें रंग लाएगी तो मध्य प्रदेश को खुशी होगी. लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष की भूमिका है. मध्य प्रदेश में संभलने के लिए कांग्रेस के पास अगला विधानसभा चुनाव ही है. अगर इस चुनाव में भी कांग्रेस हारती है तो फिर मध्य प्रदेश भी उत्तर प्रदेश और गुजरात के तर्ज पर कांग्रेस का तीसरा राज्य बन जाएगा.
वफादार और गद्दार से ज्यादा पद पर बैठे लोगों की नियत और बढ़ती संपदा की खोज अगर राहुल गांधी करेंगे तो गद्दार अपने आप उभर कर आएंगे. राहुल गाँधी के इस दौरे से कांग्रेसजनों को काफी उम्मीद है. राहुल को इतना पता ही होगा कि, कस्तूरी पास होने के बाद भी मृग उसे बाहर तलाशता है.