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आतंक से वफादारी, ख़ुद से गद्दारी

सार

लोकसभा के चुनावी मुद्दे भारत की सीमाओं से आगे निकल गए हैं.  सियासत वोट बैंक के लिए पाकिस्तान से वफ़ादारी दिखा रही है. भारत और पाकिस्तान भले आमने-सामने हों, लेकिन सियासी तार कहीं ना कहीं भारत के चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं..!!

janmat

विस्तार

    भारत के फारूक अब्दुल्ला पाकिस्तान के परमाणु बम का दम दिखा रहे हैं. पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फ़वाद चौधरी भारत के राहुल गांधी का समर्थन कर रहे हैं. बीजेपी पाक अधिकृत कश्मीर पर अपना दावा पेश कर रही है. भारत के रक्षा मंत्री POK को भारत का हिस्सा बता रही है. उनका कहना है, कि POK को कब्जे में करने के लिए भारत को किसी ताकत की जरूरत नहीं है. कश्मीर की बेहतरी और तरक्की को देख POK के लोग अपने आप भारत में मिल जाएंगे.

    रक्षा मंत्री की यह बात फारूक अब्दुल्ला को इतनी चुभ गई, कि वह भारत के विरोध की बात करने लगे हैं. फारूक अब्दुल्ला कह रहे हैं, कि POK पर भारत कब्जा करेगा तो पाकिस्तान ने क्या चूड़ियां पहन रखी हैं? पाकिस्तान के पास परमाणु बम है. यह परमाणु बम भारत पर गिरेगा. भारत का कोई राजनेता पाकिस्तान का दम दिखाकर भारत को डराने की कोशिश करेगा, ऐसा तो कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन चुनावी राजनीति में अकल्पनीय चीजें ही हो रही हैं.

    आतंकी हमले और शहादत पर भी राजनीति हो रही है. पुंछ में भारतीय वायुसेना के काफिले पर हमले में मध्य प्रदेश के विकास पहाड़े शहीद हुए हैं. उनकी शहादत पर पूरा देश गोरवान्वित है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शहादत को प्रणाम करने के लिए शहीद के घर पहुंचे. दूसरी तरफ कांग्रेस के नेता पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी कह रहे हैं, कि आतंकवादी हमले स्टंटबाजी होते हैं. यह पूर्व नियोजित होते हैं और बीजेपी को लाभ पहुंचने के लिए होते हैं. शहादत का इससे बड़ा अपमान कुछ भी नहीं हो सकता है. पुलवामा अटैक और सर्जिकल स्ट्राइक के समय भी ऐसी ही सियासी बयानबाज़ी हुई थी. शहादत पर सियासत सियासी गद्दारी कहीं जाएगी.

    मुंबई में हुए आतंकी हमले में शहीद हुए जांबाज़ पुलिस अफसर हेमंत करकरे की शहादत पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. यह सवाल भी महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता उठा रहे हैं. पुस्तक में लिखे किसी संदर्भ के हवाले से, वह कह रहे हैं, कि करकरे की शहादत आतंकी अफजल कसाव की गोली से नहीं हुई थी, बल्कि एक पुलिस अफसर की गोली से हुई थी. आतंकी हमले की पूरी जांच हो चुकी है. अदालत से आतंकी को फांसी की सजा हो चुकी है. हमले से जुड़े सारे घटनाक्रम जांच प्रक्रिया में मौजूद हैं. इन सारे फैक्ट्स पर सवाल उठाना कौन सी सियासत है. यह केवल विभाजन की सियासत हो सकती है. 

    पाकिस्तान की बुनियाद भारत के विभाजन पर खड़ी है. दोनों देशों के बीच हमेशा से विभाजनकारी सोच काम करती रही है. जब-जब चुनाव का दौर आता है,  तब-तब दोनों देशों से सियासी हमले बढ़ जाते हैं. पाकिस्तान इस्लामिक देश है. भारत धर्मनिरपेक्ष देश है. लेकिन धर्मनिरपेक्षता के पीछे इस्लामी सोच की सियासत चुनाव को विभाजन की तरफ धकेलती है. चुनाव में बहुमत के लिए भेदभाव को बढ़ाना जरूरी है. चुनाव का मतलब ही एक का समर्थन और एक का विरोध है. 

    विभाजन की राजनीति जहां समर्थन पाने के लिए होती है. वहीं विरोध की राजनीति भी समर्थन पाने की ही कहानी कहती है. चुनाव के सभी किरदार इसी नांव पर सवार हैं. लेकिन एक किरदार भारत के समर्थन में बात करता है, तो दूसरा किरदार पाकिस्तान के समर्थन में बात कर भारत की इस्लामी सोच वाले तबके को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करता है. भारत में आतंक का दौर पहले जैसा तो नहीं है. पाकिस्तान लगातार अपने घरेलू मामले में ही इतना उलझता चला गया, कि अब शायद उसमें ताकत ही नहीं बची है, कि दूसरे देश में कोई अस्थिरता पैदा कर सके. 

    पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक हालात विस्फोटक हैं. भारत के राजनेता जो पाकिस्तान की भाषा में बात करते हैं, उनका पाकिस्तान से प्रेम होगा ऐसा तो नहीं कहा जा सकता.  लेकिन यह भाषा चुनाव में अगर कुछ लाभ दे जाए, तो फिर क्या नुकसान है. आजादी के समय से ही कश्मीर को लेकर भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समस्या पैदा करने की कोशिश की जाती रही है.

    भारत के फारूक अब्दुल्ला पाकिस्तान के परमाणु बम का दम दिखा रहे हैं, तो वामपंथी पार्टियां भारत के परमाणु बम को नष्ट करने के चुनावी वायदे कर रही हैं. यह कौन सी राजनीतिक सोच है, कि भारत के परमाणु बम नष्ट कर दिए जाएं और पाकिस्तान के परमाणु बम के डर के साए में भारत को जीने के लिए मजबूर किया जाए. 

    भारत में मुस्लिम राजनीति भले ही उदारवाद की ओर बढ़ रही हो, लेकिन सियासी मुस्लिमवाद की कट्टरता कम नहीं हो रही है. कांग्रेस और उसके गठबंधन मुस्लिम हितों के लिए जितनी आक्रमकता से चुनाव में और अपने घोषणा पत्र के वायदे कर रहे हैं, उतनी आक्रामकता देश के मुसलमान उनके समर्थन में नहीं दिखा रहे हैं. इसी प्रकार से बीजेपी जितनी आक्रामकता के साथ विपक्षियों की मुस्लिम राजनीति का तीखा विरोध कर रही है, उतना तीखा विरोध मुसलमान बीजेपी का नहीं कर रहे हैं. लोकसभा के चुनाव में मुस्लिम राजनीति और तुष्टिकरण का वोट बैंक भी ध्वस्त होता दिखाई पड़ सकता है.

    बीजेपी की सर्वधर्म समभाव की लोक कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी वर्ग में बहुत बड़ा वर्ग मुस्लिम समाज से आता है. लाभार्थी वर्ग अगर किसी भी तरह से राजनीतिक समर्थक के रूप में माना जाए, तो फिर इन चुनावों में बीजेपी को मुसलमानों का समर्थन निश्चित रूप से मिलने जा रहा है. वैसे तो पूर्व चुनाव में भी बीजेपी को मुस्लिम समर्थन मिलता रहा है. लेकिन इस बार उसमें अप्रत्याशित वृद्धि की संभावना है.

    मुसलमानों के बीच इस बात की आकांक्षा बड़ी है, कि बीजेपी की सरकारों में जहां योजना का लाभ मिला है, वहीं उनका समाज शिक्षा की तरफ तेजी से आगे बढ़ा है. UPSC की सेवाओं के अभी हाल ही में जो परिणाम आए हैं, उसमें 50 से अधिक अल्पसंख्यक वर्ग के प्रत्याशी चुने गए हैं.  यह सामान्य बात नहीं है, कि एक ही वर्ष के परिणाम में इतनी बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक चुने गए हैं.

    परमाणु बम पेट की भूख के बम से ज्यादा ताकतवर नहीं होता. पाकिस्तान आज भूख के बम की चपेट में है. फारूक अब्दुल्ला को पाकिस्तान के परमाणु बम का दम भारत वासियों को दिखाने की जरूरत नहीं है. इसके विपरीत उन्हें पाकिस्तान के भूख के बम की सच्चाई चुनाव में बताने का साहस दिखाना चाहिए. पाकिस्तान समर्थन या पाकिस्तान की भाषा में बात करने वाला कोई भी व्यक्ति आतंकवाद, POK और राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करने से ज्यादा अगर पाकिस्तान के भूख के बम की वास्तविकता भारत में बताएं, तो भारत की ऊंचाई और तरक्की पाकिस्तान को बोलने लायक भी नहीं छोड़ेगी. 

    जिस देश में हम रहते हैं, जिस देश से हम जीवन पाते हैं, जिस देश से हमारी बेहतरी है, उस देश को दूसरे देश के नाम पर डर दिखाना अंदर से खोखला और बेदम इंसान ही कर सकता है. दमदार भारत ऐसे बेदमदार विचारों की अब परवाह नहीं करता. भारत अपने दम पर खड़ा है. सुरक्षित है. डोजियर देने में नहीं डोज़ देने में अब भरोसा करता है. भारतीय लोकसभा चुनाव भी ऐसे नेताओं को ऐसा डोज़ देने वाले हैं, कि वो पाकिस्तान की सोच और विचार रखने वाले लोग इसे जीवन पर्यंत याद रखेंगे.