ऐसे में जबकि मध्यप्रदेश में विकास कार्यों के लिए बड़े स्तर पर कर्ज लिए जा रहे हैं टोल टेंडर की शर्तों को मनमाने ढंग से करके अवैध वसूली के रास्ते खोले गए हैं। किस अनुमान के आधार पर इतने लंबे समय तक कंपनियों को वसूली की अनुमति दी गयी? क्या ये मुनाफा सिर्फ कम्पनियां कर रहीं हैं या कहीं इनमे भागीदारी भी है? निश्चित ही ये एक बड़े घोटाले का एक सिरा है।
मध्यप्रदेश में टोल के नाम पर की जा रही लूट लगातार सुर्खियों में है। मीडिया के बाद अब टोल गेट घोटाला विधानसभा तक पहुंच चुका है। विधानसभा में सामने आई जानकारी से साफ हो गया है कि टोल के नाम पर मध्य प्रदेश में आम जनता से लूट की जा रही है। सवाल यह है कि इन कंपनियों को आखिर कैसे बिना किसी विधिवत मूल्यांकन के इतनी लंबी अवधि तक टोल की अवैध वसूली की इजाजत दी जा सकती है? विधानसभा में यह मामला सामने आया तो इस कारनामे की नई कहानी सामने आई। जावरा-नया गांव फोरलेन 450 करोड़ रुपए में बना था अब तक इसमें 1662 करोड रुपए की वसूली हो चुकी है। इसके बावजूद भी 11 साल और सम्बंधित कंपनी टोल वसूलेगी।
टोलप्लाज़ा कंपनियों को ज़बरदस्त ढंग से उपकृत करने का जरिया बन गए हैं, ये साफ नज़र आता है। लेबड-जावरा फोरलेन 605 करोड रुपए में बना था अब तक 1484 करोड रुपए वसूले जा चुके हैं, लेकिन 11 साल और लोगों को टोल देना होगा। Bhopal-देवास मार्ग 463 करोड़ में बना था अब तक 1124 करोड़ वसूले जा चुके हैं। लेकिन यहां भी 11 साल और लोगों को टोल देना होगा। किसी भी निर्माण का कार्य कराने की शर्त यह होती है कि उस निर्माण का पूरा खर्चा संबंधित कंपनी को मिले और एक निश्चित मुनाफा भी उसे मिलना चाहिए। शर्तों के अनुसार कुछ जगहों पर लागत का 20 गुना टोल वसूला जाएगा। लेकिन मुनाफा कितना होगा और कब तक वह कंपनी मुनाफाखोरी करती रहेगी, यह तय करना सरकारी सिस्टम का काम होता है लेकिन नियम शर्तें मनमाने ढंग से नहीं बनायी जा सकती?
मध्यप्रदेश में एक टोल प्लाजा नहीं बल्कि कई टोल प्लाजा हैं जहां लागत से ज्यादा वसूली हो चुकी है फिर भी दशकों तक लोगों को टोल देना होगा। विधानसभा में विधायक कुणाल चौधरी के सवाल के जवाब में मंत्री गोपाल भार्गव ने जो जानकारी दी है वह जानकारी चौंकाने वाली है। ऐसा लगता है कि निर्माण के लिए बने DPR, टेंडर और प्रशासकीय मंजूरी में बड़े स्तर पर गड़बड़ियां हुई हैं। DPR तैयार करने में भी 17 करोड़ की राशि का भुगतान सवालों के घेरे में है। टोल की वसूली और मुनाफे का खेल तब हो रहा है जब Bhopal Dewas रूट के लिए 81 करोड़, दमोह जबलपुर के लिए 82 करोड़ और खंडवा बुरहानपुर रोड के निर्माण के लिए ₹66 करोड़ की ग्रांट दी गई है। इससे सड़कों की लागत कम हुई लेकिन फिर भी वसूली जमकर हो रही है। इन टोल प्लाजा से कंपनियों ने हजार करोड़ रुपए तक कमाए हैं।
कांग्रेस विधायको ने सवाल किया था कि 200 करोड़ से अधिक लागत वाली 9 बीओटी राजमार्ग के अंतर्गत निर्मित सड़कों के नाम बताएं. इसमें टोल शुरु और बंद होने की तारीख, लागत और 31 जनवरी 2022 तक वसूली गई राशि का ब्यौरा भी दें. इस पर मंत्री के जवाब में बताया कि 127 किमी वाले जावरा नयागांव मार्ग 2009 में 450 करोड़ में बना था. टोल वसूली 25 वर्ष तय हुई. इस टोल से अभी तक लागत से चार गुना 1662.75 करोड़ रुपए वसूले जा चुके हैं.
जावरा नयागांव मार्ग जैसी अनेक सड़के हैं. लेबड़-जावरा मार्ग पर 31 जनवरी 2022 तक 1484.15 करोड़ रुपए वसूले जा चुके हैं। इसकी डीपीआर में लागत 420.71 करोड़ रुपए बताई गई, जबकि टेंडर में 471 करोड़ और प्रशासकीय लागत 605.45 करोड़ रु. बताई गई है। इस मार्ग में टोल ड्यूरेशन 27 अप्रैल 2033 तक है मतलब अगले 11 साल तक टोल लिया जाएगा। टोल अवधि के लिहाज से इस सड़क पर टोल वसूली 2900 करोड़ रुपए हो जाएगी।
मध्यप्रदेश में 61 प्रमुख सड़कें मध्यप्रदेश रोड डेवलपमेंट कार्पोरेशन ( एमपीआरडीसी) की हैं जिनमें से 10 से अधिक ऐसी हैं जिन्हें बनाने के लिए ठेकेदारों ने बैंकों से जो लोन लिया था उससे ज्यादा वसूली कर चुके हैं। हालाकि इन सड़कों बनवाए जाने के समय जो नियम शर्तें तय की गई हैं, उसके हिसाब से अभी 7 से 23 साल तक और इन सड़कों पर वाहनों से टोल की वसूली होना है।
यह मामला कुछ माह पहले अधोसंरचना विकास को लेकर हुई बैठक में भी सामने आया था, जिस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इन सड़कों की रिपोर्ट मांगी थी।
ऐसे में जबकि मध्यप्रदेश में विकास कार्यों के लिए बड़े स्तर पर कर्ज लिए जा रहे हैं टोल टेंडर की शर्तों को मनमाने ढंग से करके अवैध वसूली के रास्ते खोले गए हैं। किस अनुमान के आधार पर इतने लंबे समय तक कंपनियों को वसूली की अनुमति दी गयी? क्या ये मुनाफा सिर्फ कम्पनियां कर रहीं हैं या कहीं इनमे भागीदारी भी है? निश्चित ही ये एक बड़े घोटाले का एक सिरा है।