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मोहन बने निवेशकों के मन-मोहन

सार

निवेशकों का एमपी-कुंभ ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट निवेश प्रस्तावों के हिसाब से अब तक की प्रदेश की सबसे सफल समिट कही जा सकती है. समिट में  लगभग 30 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव प्राप्त होना बताया जा रहा है..!! 

janmat

विस्तार

    एमपी में दो दिन से निवेश की घटाएं उमड़-घुमड़ रही थीं. निवेश प्रस्तावों के बादल छाए हुए थे. दो दिनों में निवेश के मेघ प्रस्तावों के रूप में ऐसे बरसे कि प्रदेश के औद्योगीकरण के लहलहाने कीआशा बढ़ गई है. निवेश प्रस्तावों की बारिश से तब तक कुछ नहीं होगा, जब तक धरातल पर उद्योगों की बूंदे नहीं गिरेंगी. जमीन पर उद्योगों की जब बारिश होगी तभी प्रदेश में औद्योगीकरण का सावन झूम कर आएगा. प्रस्तावों से औद्योगिक सावन की उम्मीद तो लगाई जा सकती है, लेकिन पुराने अनुभव तो प्रस्ताव के बादलों के बिना बरसात के छंट जाने के ही रहे हैं.

    मध्य प्रदेश में यह आठवीं ग्लोबल इन्वेस्टर समिट है.  डॉ. मोहन यादव की यह पहली ग्लोबल समिट है. पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में सात समिट हो चुकी हैं. सातों जीआईएस के निवेश प्रस्तावों को जोड़ दिया जाए तो अब तक मध्य प्रदेश की सभी संभावनाओं को पूर्णता मिल जानी चाहिए थी. मोहन यादव ने भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट करके नई शुरुआत की है. उनकी पहली समिट की निश्चित रूप से पुरानी समिटों से तुलना की जाएगी. इस तुलना में डॉ. मोहन यादव का मैनेजमेंट अधिक मौलिक, सृजनात्मक और इंटेंस कहा जा सकता है. 

    समिट की ऊर्जा रचनात्मक रही है. वैसे तो समिट के ईवेंट आयोजित करने का अफसरों को अभ्यास हो गया है. इस इवेंट के इंडस्ट्री पार्टनर हर बार सीआईआई रहती है. इस बार भी वही पार्टनर है. जब कोई ईवेंट हर साल हो रहा होता है तो हर नए आयोजन में कोई न कोई नवीनता और नूतनता का आना स्वाभाविक है. 

    पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जीआईएस में उपस्थिति निवेश आकर्षित करने के साथ ही मोहन यादव को राजनीतिक ताकत देने वाला भी साबित हुआ है. निवेशकों का उत्साह देखकर यह कहा जा सकता है, कि मध्य प्रदेश के सीएम मोहन निवेशकों के लिए मन-मोहन बन गए हैं.

    जीआईएस में आए प्रस्तावों को धरातल पर उतरने में समय लगेगा. ऐसी आयोजनों के उद्घाटन की बात तो ठीक है, लेकिन इनके समापन समारोह की ब्रांडिंग सही नहीं कहीं जा सकती. इन्वेस्टर समिट के प्रस्ताव चिंतन-मनन और विचार-विमर्श तब तक समाप्त नहीं कहे जाएंगे जब तक प्रस्तावों को धरातल पर उतारा ना जा सके. शब्दों का ही सारा खेल है. जिस समारोह के मर्म सतत मध्य प्रदेश में जारी रहना है, कम से कम उस ईवेंट की पूर्णता को समापन समारोह नहीं कहना चाहिए. इसके लिए किसी इनोवेटिव शब्द की खोज करना चाहिए. 

    मेरे विचार में समापन समारोह कहने के बदले इसे समिट यात्रा शुभारंभ समारोह कहा जा सकता है. ग्लोबल इन्वेस्टर समिट राजधानी के लिए भी सुखद रही है. राजधानी के सौंदर्यीकरण पर करीब 100 करोड़ से ज्यादा का निवेश सरकार द्वारा कर दिया गया है. मीडिया ने भी इस समिट को खूब महत्व दिया है. इसका मतलब स्पष्ट है, कि सरकार ने भी मीडिया को पर्याप्त सहयोग करके विज्ञापन के रूप में अच्छा निवेश किया है.

    मध्य प्रदेश के स्थापित उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने भी समिट को सफल बनाने में अच्छी भागीदारी की है. मीडिया में जिस तरह से उनके साक्षात्कार सामने आए हैं, उससे भी यही स्थापित हो रहा है कि राज्य में निवेश का अनुकूल समय यही है. मध्य प्रदेश के जो भी सफल उद्योगपति सक्रिय दिखाई पड़ते हैं, उनमें से शायद ही कोई भी ग्लोबल इन्वेस्टर समिट से  उपजा हो. शहर की आवश्यकता के अनुसार निवेशक विकसित होते गए. सरकार की भूमिका इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और फैसिलिटेटर के रूप में ही रही है. निवेश के मामले में यही सबसे बड़ी जरूरत है.

    सरकार का बुनियादी दायित्व यह है, कि निवेशकों को प्रदेश में सुशासन मिले. लालफीताशाही निवेश में बाधक नहीं बने. पानी, बिजली, ट्रांसपोर्टेशन और स्किल्ड लेवर सस्ता मिले. उद्योगों की लागत न्यूनतम हो. बेहतर रिटर्न की संभावनाएं सुनिश्चित हों. नीतियां स्पष्ट हों. करप्शन पर जीरो टोलरेंस हो, ब्यूरोक्रेसी इन्वेस्टमेंट फ्रेंडली हो, बिना बेहतर रिटर्न के कोई भी इन्वेस्टर इन्वेस्टमेंट करने की पहल नहीं करेगा. इन्वेस्टर्स के स्वागत-सत्कार और राजधानी की सजावट से इन्वेस्टमेंट को गति नहीं मिलेगी. इन्वेस्टमेंट ईमानदार प्रयासों से आएगा. सरकार की इन्वेस्टमेंट फैडली इमेज से निवेश आएगा. मध्य प्रदेश में ब्यूरोक्रेटिक इकोसिस्टम करप्शन फ्री बनाकर इंडस्ट्री फ्रेंडली और डायनामिक बनाने की आवश्यकता है.

    किसी भी राज्य में निवेश प्रस्ताव का 10 से 15% ही जमीन पर उतर पता है. मध्य प्रदेश में जितने प्रस्ताव इस समिट में मिले हैं, अगर उनमें से इतने प्रतिशत भी जमीन पर उतर गए तो प्रदेश के औद्योगिक विकास की नई इबारत लिखी जा सकती है. सुंदर पोस्टर, होर्डिंग, लच्छेदार पंच लाइन, आकर्षक विज्ञापन, भव्य समारोह प्रदेश की ब्रांडिंग तो कर सकते हैं, लेकिन अकेले इससे इन्वेस्टमेंट संभव नहीं हो सकेगा.

    मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में लंबे समय तक गवर्नेंस में निरंतरता थी. फिर भी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट को वांछित दिशा नहीं मिल पाई. वर्तमान सरकार का तो यह पहला काल है. मोहन यादव की यह पहली जीआईएस है. अगर जीआईएस के ईवेंट को ही सफलता का पैमाना माना जाए, तो फिर तो यह जीआईएस अब तक की सबसे सफल कही जा सकती है.

    प्रदेश की ब्रांडिंग तो बहुत हो चुकी है. अब बोर्डिंग की जरूरत है. अनंत संभावनाओं और फ्यूचर रेडी पंच लाइन तो काफी चल गई है. अब तो वर्तमान में विकसित प्रदेश बनाने का समय आ गया है. अगर दो दशक की मध्य प्रदेश की सरकारों और उनके द्वारा प्रदेश के विकास के लिए ब्रांड की गई पंच लाइन का ही अध्ययन किया जाए तो मध्य प्रदेश स्वर्णिम भी बन चुका है, आत्मनिर्भर भी हो चुका है. यहां शुद्ध के खिलाफ युद्ध भी चल चुका है, मध्य प्रदेश में जिला सरकारें भी रह चुकी हैं. यह सारा इतिहास वक्त के साथ चलता और बदलता गया. प्रदेश के माथे पर इन सब की केवल ब्रांडिंग की छाप देखी जा सकती है. उनका सत्य तो जमीन पर दिखाई नहीं पड़ता

    इतिहास का आंकलन और वर्तमान पर भरोसा जीवन का स्वभाव है. इस ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का आंकलन भी इसी नजरिए से किया जाएगा. आठवीं समिट भी इवेंट की पूर्णता के साथ इतिहास बन जाएगी. इसके प्रस्तावों की सत्यता और जमीन पर उनकी हकीकत भविष्य के गर्भ में है. वर्तमान सत्य के लिए कमिटेड होगा तो, भविष्य में सत्य ही रहेगा. दिखावटी सक्सेस सत्य नहीं बन सकती. एमपी का मन-मोहन सत्य की मौलिकता पर ही आगे बढ़ेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है.