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राजनीतिक दलों पर मनीट्रेल का शिकंजा

सार

विधानसभा चुनाव में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के डर का असर साफ-साफ दिखाई पड़ रहा है. राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में काले धन का उपयोग आम बात होती थी. दिल्ली शराब घोटाले में रिश्वत का उपयोग गोवा चुनाव में किए जाने का मामला ईडी की जांच में सामने आने के बाद यह डर और गहरा गया है.

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विस्तार

सर्वोच्च अदालत में ईडी ने तो यहां तक कहा है कि शराब घोटाले की रिश्वत का आम आदमी पार्टी द्वारा गोवा चुनाव में उपयोग किया गया, जिसके कारण आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाया जा रहा है. घोटाले में मनीष सिसोदिया और आप सरकार की लिप्तता और रिश्वत की मनीट्रेल के चलते ही उनकी जमानत याचिका रद्द की गई है. इसके बाद ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पूछताछ के लिए समन जारी किया है. 

चुनावी अभियानों पर भी ईडी का कानूनी शिकंजा मध्यप्रदेश सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और नेताओं को डरा रहा है. मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस के जिम्मेदार नेता यह दावा कर रहे हैं कि राज्य में ईडी छापा मारने वाली है. आम आदमी पार्टी का तो मध्यप्रदेश का पूरा चुनावी अभियान ही प्रवर्तन निदेशालय द्वारा की जा रही शराब दलाली की जांच में उलझ गया है.

एक तरफ चुनाव आयोग की सक्रियता के कारण भी चुनावी प्रचार का शोर धीमी गति से चल रहा है. झंडा बैनर और चुनावों का हो हल्ला शांति धारण किए हुए है. ऐसा लग रहा है कि चुनावों के प्रति एक निराशा का माहौल बना हुआ है. अभी तक प्रत्याशी चयन में सभी दल जुटे हुए थे. अब बगावतियों और असंतुष्टों को मनाने में पूरी ताकत लगी हुई है. पार्टियों द्वारा चुनावी प्रबंधन के लिए प्रत्याशियों को धन उपलब्ध कराने की प्रक्रिया ईडी की खुफिया नजर में है. कालेधन की ट्रेल की संभावनाओं के सभी रास्तों पर एजेंसियों की सख्ती राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च प्रबंधन को प्रभावित करती दिखाई पड़ रही है.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस से जुड़े सूत्र पर भरोसा किया जाए तो ऐसा पहली बार हो रहा है जब प्रत्याशियों को पार्टी की ओर से दिए जाने वाला सहयोग केंद्रीय स्तर से सीधे उम्मीदवारों के बैंक खातों में दिया जा रहा है. पार्टी सभी प्रत्याशियों से खातों की जानकारी लेकर दिल्ली भेजने में जुटी है. दिल्ली से सीधे पैसा प्रत्याशियों को दिया जाएगा. पिछले चुनाव के दौरान एक हवाला कारोबारी के यहां छापों के बाद चुनाव में वित्तीय प्रबंधन को लेकर काले धन के उपयोग के पेपर सामने आए थे.  शराब घोटाले और उससे अर्जित रिश्वत को आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा चुनावी अभियान में उपयोग पर कसे कानूनी शिकंजे से सभी राजनीतिक दल डरे हुए हैं. 

नोटबंदी के बाद जिस तरह से राजनीतिक दलों की वित्तीय प्रबंधन की स्थितियां गड़बड़ाई थी. ठीक उसी तरह इस बार फिर डिजिटल पेमेंट और पारदर्शी मनीट्रेल की वित्तीय व्यवस्था के कारण राजनीतिक पार्टियों को वित्तीय परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, उनमें से राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के घरों पर ईडी  द्वारा छापे डाले जा चुके हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया है. इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले की जांच में छापे डाले गए और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जुड़े कई करीबियों को गिरफ्तार भी किया गया है. तेलंगाना में भी दिल्ली के शराब घोटाले की गूंज पहुंची हुई है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी भी ईडी की रडार पर है. 

अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से ईडी की पूछताछ के बाद राजनीतिक दलों द्वारा काले धन और रिश्वत से अर्जित राशि के उपयोग का मामला देश की राजनीति में निर्णायक मोड़ की तरफ़ बढ़ रहा है. आप की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि बीजेपी उनकी पार्टी को खत्म करना चाहती है. यह तो माना जा सकता है कि  कार्रवाई के पीछे कोई राजनीतिक सोच काम कर रही हो लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि न्यायिक सक्रियता के जमाने में बिना घोटाले के किसी भी व्यक्ति को किसी भी मामले में जबर्दस्ती उलझाया जा सकता है. 

बीजेपी के खिलाफ इंडी गठबंधन ईडी में फँसे नेताओं और राजनीतिक दलों के गठबंधन के रूप में बीजेपी के मुकाबले के लिए खडा हुआ है. बीजेपी इसे भ्रष्टाचारियों का गठबंधन बताकर ईडी की सक्रियता को राजनीति से भ्रष्टाचार को हटाने वाला देशहित का बड़ा अभियान बता रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड पर सुनवाई शुरू की है. राजनीतिक फंडिंग एक ऐसी चुनौती है जिसे कोई भी लोकतंत्र हल नहीं कर सका है. राजनीतिक दल अपने संसाधनों की पूर्ति के लिए क्राउड फंडिंग प्लेटफार्म का उपयोग करते हैं. इसमें भी कालेधन को ही खपाया जाता है. जब तक ऐसा मॉडल विकसित नहीं होगा जिसमें इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल ट्रेल सुनिश्चित हो. तब तक राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता नहीं आएगी. 

राजनीतिक फंडिंग को विनिमियित करना बहुत चुनौतीपूर्ण है. इसमें अन्तर्निहित हितों का टकराव है जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है. राजनीतिक दलों को प्राप्त व्यक्तिगत दान और फंडिंग के स्रोत का खुलासा राजनीतिक पारदर्शिता बढ़ाएगा. अभी तो ऐसी परिस्थितियां हैं कि जनता को पार्टियों के चंदे के स्रोत को जानने का अधिकार ही नहीं है.

भारत में 2017 में एक कानून बनाकर कॉर्पोरेट दान पर लगी सीमा को हटा दिया गया था.फिर चुनावी बांड अधिसूचित किए गए थे. यह बैंक द्वारा जारी किया गया एक वाहक बॉन्ड है लेकिन विधि परिवर्तनों ने यह सुनिश्चित किया कि दान का स्रोत मतदाताओं से छुपाया जाए, जो चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक होते हैं. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इसी की संवैधानिकता पर सुनवाई शुरू की है. इस पर निर्णय पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग के लिए भारत के सबसे बड़े मॉडल का प्रतिनिधित्व करेगा.

ईडी का डर भले ही बीजेपी विरोधी दलों में ज्यादा हो लेकिन सभी दलों के नेता इस खतरे से भयाक्रांत हैं. मध्यप्रदेश में अभी तक  ईडी के छापे राजनीतिक सुर्ख़ियों में नहीं आए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जरूर यह कह रहे हैं कि छापे पड़ने वाले हैं. छापे का डर नेताओं के हाव-भाव और चुनावी अभियानों में धन प्रबंधन की खामोशी में देखा जा सकता है. मध्यप्रदेश में शोले फिल्म के किरदारों की चुनावी चर्चा है. शोले फिल्म में यह चर्चित डायलॉग है कि 'जब बच्चा रात को रोता है तो मां कहती है सो जा बेटे नहीं तो गब्बर आ जाएगा'. ऐसे ही राजनीतिक दल और नेता अब एक दूसरे को कह रहे होंगे कि 'संभल के काम करना नहीं तो ईडी आ जाएगी'.