भारत की मेजबानी में कूटनीति के वर्ल्ड कप G-20 के सफल आयोजन से विश्व बंधुत्व और विश्व मैत्री का भारतीय तिरंगा विश्व में लहरा गया. भारत विश्व के नेताओं का विश्वास जीतने में सफल हुआ. नई दिल्ली घोषणा पत्र पर आम सहमति भारत के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ के समर्पण का ही सुफल है.
विश्व के नेताओं का भारत पर ट्रस्ट और भारत का विश्व के देशों में ‘ट्रस्ट डिफिसिट’ को खत्म करने की सफल कूटनीति साझा घोषणापत्र असंभव को संभव करने सा रहा. भारतीय ज्ञान-विज्ञान, सांस्कृतिक वैभव, खानपान पहनावे और अतिथि सत्कार ने पूरी दुनिया को देश की नई पहचान से परिचित कराया है. ‘वन अर्थ-वन वर्ल्ड, वन फ्यूचर’ पर विश्व की सहमति भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की आत्मा को विश्व में पुनर्स्थापना के रूप में देखा जा रहा है.
भारतीय सभ्यता संस्कृति और जीवन मूल्यों ने विश्व संकट के समाधान की आशा के रूप में भारत को वर्ल्ड लीडर्स की अग्रणी पंक्ति में पहुंचा दिया है. भगवान राम और निषादराज की मित्रता की संस्कृति ने भारत को ग्लोबल साउथ की आवाज बनने की प्रेरणा दी है. अफ्रीकन यूनियन की G-20 में स्थाई सदस्यता दिलाने में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका ‘सबका साथ-सबका विश्वास’ के भारतीय विचार के कारण ही संभव हो सकी है.
G-20 शिखर सम्मेलन में नया कॉरिडोर बनाने के लिए हुई सहमति भी भारत की विश्व में बढ़ती भूमिका को रेखांकित कर रही है. शांति और अहिंसा की भारत की गांधीवादी विचारधारा नई दिल्ली घोषणापत्र में झलक रही है. इस शिखर सम्मेलन में यूक्रेन का कोई प्रतिनिधि भले नहीं था लेकिन यूक्रेन के समर्थक यूनाइटेड स्टेट्स और यूरोप यूनियन के सदस्य देशों की उपस्थिति और दूसरे पक्ष के रूप में रूस के विदेश मंत्री की उपस्थिति के बीच दोनों पक्षों में साझा घोषणा पत्र के लिए सहमति की उपलब्धि एक बार फिर गुजरात के बेटे नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में ही भारत ने हासिल की है.
इस शिखर सम्मेलन के आयोजन के पहले G-20 की बैठकें जब विभिन्न राज्य में आयोजित की जा रही थीं तब भी इसे एक इवेंट कहकर नकारने की कोशिश की जाती थी. जब शिखर सम्मेलन की तैयारियां आकार लेने लगी तब यह कहा जाने लगा कि भारत इतने बड़े आयोजन के लिए सक्षम नहीं है. जब तैयारियां भव्यता के साथ अंतिम चरण में पहुंच गई तब यह कहा जाने लगा कि चीन और रूस के राष्ट्रपति समिट में नहीं आ रहे हैं. इस कारण यह शिखर सम्मेलन अपना औचित्य सिद्ध नहीं कर पाएगा.
भारत में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी नीतियों की विरोधी विचारधारा यह प्रचारित करने लगी कि साझा घोषणापत्र आना असंभव है. शिखर सम्मेलन के पहले दिन ही आम सहमति प्राप्त हो जाना भारत के प्रधानमंत्री की लीडरशिप में देश की सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता के रूप में देखी जा रही है. इससे भारत की आन बान और शान दुनिया में नए दौर में पहुंच गई है.
कांग्रेस की ओर से भले ही G-20 सम्मेलन पर दी गई प्रतिक्रिया में भारत सरकार और नरेंद्र मोदी की प्रशंसा नहीं की गई हो लेकिन कांग्रेस के पढ़े-लिखे और यूएन में काम कर चुके सांसद शशि थरूर ने G-20 शिखर सम्मेलन के सफल आयोजन और नई दिल्ली डिक्लेरेशन आने पर प्रधानमंत्री की तारीफ की है. इस शिखर सम्मेलन से विश्व में जो ऐतिहासिक पहल हुई है वह भले ही आज के प्रधानमंत्री की लीडरशिप में हुई हो लेकिन यह वास्तव में भारत की पहल है. इसे प्रधानमंत्री के पद के साथ जोड़कर देखना भारत की शक्ति को नजर अंदाज करने जैसा है.
भारत में विश्व का इतना बड़ा सम्मेलन हो और आंतरिक राजनीति न हो इसकी कल्पना भारत का हर राष्ट्रभक्त नागरिक कर रहा था. यह ना होना था और ना ही हुआ. इसमें भी राजनीति की गई. कांग्रेस अपने प्रेसिडेंट मल्लिकार्जुन खरगे को राष्ट्रपति के डिनर में आमंत्रित नहीं करने के लिए सरकार की आलोचना कर रही है. यद्यपि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी राष्ट्रपति के डिनर में आमंत्रित नहीं थे.
देश के मुख्यमंत्रियों को डिनर में आमंत्रित किया गया था. कांग्रेस की ओर से हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री डिनर में शामिल हुए थे. पश्चिम बंगाल से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बिहार से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने राष्ट्रपति के रात्रिभोज में शामिल होकर भारत के शिष्टाचार को निभाया लेकिन विपक्षी गठबंधन में इन नेताओं की आलोचना का दौर शुरू हो गया है.
जिन राज्यों में चुनाव निकट है, उन राज्यों छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मुख्यमंत्री राष्ट्रपति के भोज में नहीं पहुंचे और बहाने में राजनीतिक आरोप मढ़ दिए कि दिल्ली हवाई अड्डे पर उनके स्टेट प्लेन को उतरने की अनुमति नहीं दी गई. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसका खंडन किया है. वैसे भी विपक्ष के जो मुख्यमंत्री डिनर में पहुंचे थे वे भी स्टेट प्लेन से ही दिल्ली पहुंचे थे. जब उनका प्लेन उतर सकता है तो फिर इन दो मुख्यमंत्री का प्लेन क्यों रोका जाएगा?
सियासी अदावत देश की अदावत के रूप में सामने आना भारतीय राजनीति की अपरिपक्वता ही प्रदर्शित करता है. राष्ट्रपति के रात्रिभोज के आमंत्रण में ‘प्रेसिडेंट आफ भारत’ लिखे जाने पर ‘इंडिया बनाम भारत’ के संग्राम की शुरुआत कांग्रेस ने की थी. यह खुशी की बात है कि जिन मुख्यमंत्रियों ने राष्ट्रपति के डिनर में भाग लिया उन्होंने ‘प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत’ के आमंत्रण को स्वीकार किया.
विश्व आज बड़े गांव के रूप में हमारे सामने है. इंटरनेट ने विश्व की दूरी को समाप्त कर दिया है. कनेक्टिविटी लगातार सुधर रही है. शिखर सम्मेलन में नए कोरिडोर के निर्माण की पहल से विश्व व्यापार की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है. चीन की विस्तारवादी नीतियों पर दुनिया में बढ़ रहे तनाव को भारत ने इस शिखर सम्मेलन के जरिए साधने और नए रास्ते खोजने के जो कूटनीतिक प्रयास किए हैं उसके दूरगामी परिणाम होने की संभावना है.
G-20 शिखर सम्मेलन भारत के मुकुट में जड़ गया है तो पाकिस्तान जल गया लगता है. पाकिस्तान से आ रही प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक हैं. शिखर सम्मेलन में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रही थीं. पाकिस्तान को तो आमंत्रित करने का सवाल ही नहीं है. पाकिस्तान की राजनीतिक और कूटनीतिक अस्थिरता उसके भविष्य को अंधकार में ले जा रही है.
पीएम मोदी ने विश्व के देशों में ‘ट्रस्ट डिफिसिट’ को दूर करने का आह्वान किया है. यूक्रेन युद्ध को लेकर दुनिया दो भागों में विभाजित हो गई है. विश्व का यह दौर सबको साथ लेकर सबके हितों की सुरक्षा के साथ सबके भविष्य को देखते हुए आगे बढ़ने का है. किसी भी देश को अलग-थलग करके अब दुनिया आगे बढ़ने का सोच नहीं सकती है. ‘टेक्नोलॉजी ड्रिवन डेवलपमेंट’ में देश की सीमाओं का महत्व केवल भूगोल की दृष्टि से बचा है. विचार की दृष्टि से पूरी दुनिया इंटरनेट के जाल में गुंथ गई है.
G-20 शिखर सम्मेलन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति परंपरा की ऐतिहासिक स्मृतियों को संजोने में भी सफल रहा है. कोणार्क के सूर्य मंदिर के विज्ञान को दुनिया के ताकतवर देशों के नेताओं को भारत के प्रधानमंत्री ने परिभाषित किया. विश्व की शिक्षा का केंद्र रहे नालंदा विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास को भी भारत ने दुनिया के नेताओं को बताया.
शिखर सम्मेलन की पूरी थीम भारत और भारतीयता पर रची गई थी. यहां तक कि दुनिया के नेताओं के साथ आईं उनकी सहधर्मिणी प्रथम महिला ने भारतीय पहनावे को भारत के प्रति सम्मान के रूप में प्रस्तुत किया. ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर ऋषि सुनक ने तो भारतीयता को गर्व से फूलने का अवसर दिया. भारत की धरती पर उतरते ही उन्होंने अपनी पहली प्रतिक्रिया में कहा कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है. अक्षरधाम मंदिर जाकर पूजा अर्चना कर उन्होंने भारतीयता की विश्वस्वीकार्यता का जो द्रश्य प्रस्तुत किया है वह दुनिया के नेताओं के साथ भारत के राजनीतिक जगत के उन नेताओं के लिए बहुत बड़ा सबक है जो भारतीयता और सनातन के प्रति बुरे विचार और दृष्टिकोण को अपनी राजनीतिक ताकत मानते हैं.
भारत में सरकारें भारत की आन बान और शान बढ़ाने के लिए हैं. जो भी सरकार और लीडर यह करने में सफल होता है वह भारत को गौरव से भर देता है. जो लीडर काम को ही अरदास के रूप में अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है उसी को इतिहास और देश याद रखता है. भारत को लेकर विश्व की आस बढ़ी है, विश्वास बढ़ा है, भारत का उजास विश्व में बढ़ा है तो इसके लिए लीडर को श्रेय देने में कंजूसी करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है. गांधी समाधि राजघाट पर विश्व के नेताओं की एक साथ उपस्थिति भारतीय आत्मा से जुड़ते विश्व का इतिहास रच गया.