एमपी में करप्शन पर चुनावी कॉमेडी शो चल रहा है. देश के सामने करप्शन से बड़ी ट्रेजेडी आज कोई नहीं है. कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो ट्रेजेडी को भी कॉमेडी बना देते हैं. एमपी में एक फर्जी पत्र पर कमीशन कमीशन का खेल खेला जा रहा है. शिकायतकर्ता का पता नहीं है, पुलिस कह रही है कि संगठन फर्जी है, पता फर्जी है, फिर भी कांग्रेस फेक पर ही अपना स्टेक लगा रही है.
बेईमानी की तलाश में भटकता व्यक्ति ही चिल्ला चिल्ला कर कहता है कि बड़ी बेईमानी है. भ्रष्टाचार पर आरोप-प्रत्यारोप राजनीतिक जरूरत और शिष्टाचार हो सकता है लेकिन जिन ताकतों पर भ्रष्टाचार को लेकर कानूनी शिकंजा कसा हुआ है वह शर्मिंदगी की बजाए भ्रष्टाचार का बैंड बजा कर शेर बनने का दुस्साहस कैसे कर सकते हैं?
कर्नाटक में 'पे सीएम' चुनावी अभियान चलाकर कांग्रेस ने झूठ को अपनी सफलता का पैमाना मान लिया है. कांग्रेस ने वही रणनीति मध्यप्रदेश में लागू करने के लिए फर्जी पत्र सोशल मीडिया पर वायरल कराया. सरकार ने जब प्रियंका गांधी, कमलनाथ, अरुण यादव पर कानूनी शिकंजा कस दिया तो फिर कह रहे हैं कि बीजेपी भय की राजनीति कर रही है. भय कभी भी बाहर से नहीं आता है, व्यक्ति के अंदर होता है. जो पैसा खाता है वह सब से डरता है. उसको डराने के लिए कोई बाहरी प्रयास की आवश्यकता नहीं होती.
बीजेपी शासित सरकारों द्वारा ही FIR या जांच की कार्रवाई क्यों की जाती है? कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में क्या बीजेपी के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई मामला FIR लायक प्राप्त नहीं कर सकी है? अगर कांग्रेस की सरकारें बीजेपी नेताओं को भ्रष्टाचार में लिप्त होना प्रमाणित नहीं कर सकती हैं तो फिर उनके खिलाफ होने वाली कार्यवाही को भय की राजनीति कैसे कहा जा सकता है?
राजस्थान में सचिन पायलट खुलेआम अपने मुख्यमंत्री पर बीजेपी की पूर्व मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार के मामलों की जांच नहीं करने और उन को संरक्षण देने का आरोप लगाते हैं. छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले में मुख्यमंत्री से जुड़े लोगों पर छापे डाले जाते हैं. इसके बाद भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बीजेपी के किसी नेता के खिलाफ कोई भी भ्रष्टाचार का मामला जांच में नहीं लाते हैं?
कर्नाटक में भी सरकार बने पर्याप्त समय हो गया है. अभी तक एक भी भ्रष्टाचार का मामला कांग्रेस की सरकार जांच में स्थापित नहीं कर पाई है. चुनाव में 'पे सीएम' का आरोप और सरकार बनने के बाद चुनावी नारे को स्वयं के लिए उपयोग में लाने की वृत्ति क्या समझ नहीं आती है? अब तो कर्नाटक में बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए एटीएम सरकार का अभियान चालू कर दिया है.
भ्रष्टाचार पर आरोप-प्रत्यारोप, आरोप पत्र, सामान्य राजनीतिक प्रक्रिया बन गई है. एमपी में फर्जी पत्र के आधार पर झूठ फैलाने के लिए कानूनी शिकंजा कसा गया है. कांग्रेस का करप्शन के खिलाफ अभियान कॉमेडी इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि देश में करप्शन की ट्रेजेडी का जनक कांग्रेस को ही माना जाता है. कांग्रेस के खिलाफ केवल राजनीतिक आरोपों में ही नहीं बल्कि कानूनी प्रक्रिया के अनेक मामलों में भ्रष्टाचार के तथ्य प्रमाणित हुए हैं.
राजनीति में शर्म की बात सोचना मूर्खता के अलावा कुछ नहीं कहा जाएगा. झूठ बोलने की आज सबसे सुरक्षित जगह राजनीति ही कही जाएगी. कांग्रेस का इतिहास भ्रष्टाचार के लिए आत्मघाती ही कहा जाएगा. उनका भ्रष्टाचार बोध दूसरों के दामन पर दाग उछाल कर खुद के बराबर साबित करने की रणनीति बन गई है.
एमपी में कमलनाथ के 15 महीने की सरकार में करप्शन के मामले कलंक की सीमाओं को पार कर चुके थे. मुख्यमंत्री से जुड़े लोगों पर आयकर के छापे उन्हीं की सरकार में पड़े. चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था ने मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को राजनीतिक सरकार के लिए धन इकट्ठा करने का मामला जांच के लिए भेजा. कांग्रेस की सरकार में ही अधिकारियों की मर्यादा को तार-तार होने के लिए मजबूर होना पड़ा. भ्रष्टाचार का प्रकरण वापस कर शासन का प्रशासनिक मुखिया नियुक्त करने का कुचक्र कांग्रेस की सरकार में ही रचा गया था.
छिंदवाड़ा सिंचाई काम्प्लेक्स के ठेकेदार को एडवांस देकर घोटाला करने का इतिहास कांग्रेस सरकार में ही रचा गया था. इसके बावजूद करप्शन पर नैतिक बात करने का साहस कांग्रेस कहां से प्राप्त करती है? यह बात सामान्य समझ से बाहर है. फंड मैनेजर को संगठन की कमान देना कांग्रेस की सामान्य राजनीतिक शैली है. भ्रष्टाचार से कमाई करने वाले व्यक्तित्व ही कांग्रेस संगठन की राज्य में जिम्मेदारी उठाते हुए देखे जा सकते है.
विचारधारा की शून्यता का संकट कांग्रेस की जड़ों को नष्ट कर रहा है. करप्शन पर कॉमेडी कांग्रेस को ही कमजोर कर रही है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से किसी पर कोई फर्क ही नहीं पड़ता. कांग्रेस के लिए एक प्रकार से यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है जैसे कबड्डी का मैच. कांग्रेस की सरकार में पिछले चुनाव में भी बीजेपी के भ्रष्टाचार पर जन आयोग बनाने का वायदा किया था. सरकार बनी भी और 15 महीने बाद चली गई और एक भी भ्रष्टाचार का मामला कांग्रेस उजागर नहीं कर सकी.
राजनीति की विडंबना देखिए भ्रष्टाचार पर सबसे ज्यादा प्रभाव स्थानीय स्तर पर होता है लेकिन स्थानीय नेता भ्रष्टाचार पर अपना मुंह बंद रखते हैं. भ्रष्टाचार पर आरोप लगाने का काम कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और गांधी परिवार की प्रियंका गांधी करती हैं. तथ्यों के साथ भ्रष्टाचार का मामला प्रमाणित करने की क्षमता नहीं होने पर केवल फर्जी बातों से फर्जी वातावरण बनाने का प्रयास किया जाता है.
सबसे बड़ी मूर्खता इस विश्वास से लबालब भरे रहना है कि लोग हमें वही मान रहे हैं जो हम उन्हें मनवाना चाहते हैं. लोग रोटी खाते हैं, रोटी खाने वाले कम से कम इतना तो समझ ही जाते हैं कि कौन रोटी खा रहा है और कौन पैसा खा रहा है? बिना किसी उद्योग के कमाई के रिकॉर्ड बनाने वाले नेताओं को कम से कम भ्रष्टाचार विरोधी चेहरे के रूप में स्वयं को स्थापित करने का प्रयास तो बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए.
हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना और मौका मिलने पर घटिया से घटिया उपयोगितावाद की तरह व्यवहार करना है. बीजेपी और कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर एमपी में मची 'तू-तू मैं-मैं' की सच्चाई 18 साल और डेढ़ साल में छुपी है. मिथ्या प्रचार सत्य पर हावी नहीं हो सकता. जेब भराई का संस्कार जीने वाले इज्जत और साख नहीं कमा सकते. नेता तो आएंगे जाएंगे लेकिन राजनीति की साख बची रहनी चाहिए. सत्ता के लिए झूठ की सियासत आत्मघाती ही साबित होगी.