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संगठन मृत, चमचों को मिलता अमृत  

सार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनिवास रावत ने भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली है.  रामनिवास रावत ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर नहीं गए. लेकिन आज कांग्रेस संगठन की आत्मघाती नीतियों के कारण पार्टी छोड़ दी..!!

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विस्तार

     लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी देश का एक्सरे करने की बात कर रहे हैं. जातिगत जनगणना और संपत्ति का सर्वे कर जिसकी जितनी आबादी उतना हक देने की बातें कर रहे हैं. देश तो राहुल गांधी के नियंत्रण में नहीं है, लेकिन कांग्रेस का नियंत्रण तो उनके ही हाथों में है. सबसे पहले राहुल गांधी को कांग्रेस का एक्सरे करने की जरूरत है. कांग्रेस की अंदरुनी बीमारी का पता लगाने की जरूरत है. कांग्रेस के नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं, इसके सर्वे की जरूरत है. देश की संपत्ति के समान वितरण से ज्यादा कांग्रेस संगठन में पद और प्रतिष्ठा को योग्यता और पारदर्शिता के आधार पर समान वितरण की जरूरत है. चमचों को अमृत देने की प्रवृत्ति संगठन को मृत कर देती है. 

    रामनिवास रावत सबसे वरिष्ठ विधायक हैं. सिंधिया समर्थक होने के बावजूद बगावत के समय में कांग्रेस पार्टी के साथ मजबूती के साथ खड़े रहे. तमाम अटकलों के बावजूद कांग्रेस का साथ दिया. विधानसभा चुनाव में जीतने के बाद ऐसा माना जा रहा था, कि रामनिवास रावत को कांग्रेस विधायक दल या संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. इसके विपरीत मध्य प्रदेश कांग्रेस में संगठन और विधायक दल में जिस तरीके से पदों की बंदरबांट हुई उसमें ना तो वरिष्ठता का ध्यान रखा गया, ना योग्यता का ध्यान रखा गया, ना ही छवि का ध्यान रखा गया और ना ही सलाह-मशवरे के बाद निर्णय लिया गया. एक तरफा निर्णय सुनाया गया. उसके बाद कांग्रेस में खलबली शुरू हुई. पहले कमलनाथ की नाराजगी सामने आई फिर सुरेश पचौरी ने पार्टी छोड़ी उसके बाद तो यह सिलसिला ऐसा चलता जा रहा है, कि यह कहना मुश्किल है, कि यह कहां जाकर रुकेगा.

    इंदौर के लोकसभा प्रत्याशी ने अपना नामांकन वापस लेकर कांग्रेस पर जो बम फोड़ा है, उसके निशान लंबे समय तक कांग्रेस को दागदार करते रहेंगे. कांग्रेस का यह कैसा संगठन है, कि जिसे लोकसभा का प्रत्याशी बनाया उसकी ना पृष्ठभूमि पता किया, ना उसके व्यक्तित्व का कोई आंकलन किया, केवल नेताओं की गिरोहबंदी में किसी नेता की सिफ़ारिश पर उसे प्रत्याशी बना दिया गया. अब जब उसने पार्टी के साथ धोखा किया, तो कांग्रेस उस नेता पर सवाल नहीं खड़े कर रही, जिसने उसको लोकसभा का टिकट दिलाया. अगर कांग्रेस ईमानदारी से एक्सरे करे तो बम के पीछे सोच और तैयारी के हाथ स्पष्टता के साथ समझ आ जाएंगे. 

    मुरैना की महापौर भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं. लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण तक कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला चरणबद्ध चलता ही रहेगा. ऐसा कहना अब स्वाभाविक लगने लगा है. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष ने भी ऐसे ही कांग्रेस नेताओं की तानाशाही और ऊपर से प्रत्याशी थोपने का आरोप लगाकर पद से त्यागपत्र दे दिया है.

     कोई राज्य नहीं है, जहां कांग्रेस में आंतरिक कलह चरम पर ना चल रही हो. दूसरी तरफ कांग्रेस चुनाव अभियान में लोकतंत्र संविधान और आरक्षण को खत्म करने का भय दिखाकर अपनी भावभंगिमा  दूसरे पर लादने की कोशिश कर रही है. इसका भी एक्सरे होना चाहिए, कि लोकतंत्र के सीने पर किसने पत्थर मारे हैं. कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र कैसे समाप्त हो गया है. जब कांग्रेस में समानता का व्यवहार नहीं है, तो फिर संविधान पर समानता की बात तो बेमानी ही होगी.

    आरक्षण के मामले में हर चुनाव में ऐसा माहौल बनाया जाता है, कि इसको खत्म कर दिया जाएगा. आरक्षण खत्म करने का डर दिखाने वाले कहीं अपने ख़त्म होने के डर से तो नहीं डरे हुए हैं. जिस तरह से पार्टी नेता कांग्रेस छोड़ रहे हैं, उससे तो कांग्रेस का संगठन ही खत्म होता दिखाई पड़ रहा है.

     कभी बागी के रूप में चंबल के बीहड़ों में कूदने को तैयार रामनिवास रावत ने कांग्रेस संगठन के भीतर चल रहे अन्याय को इतने समय तक बर्दाश्त कर लिया, यही काफी है. गांधी परिवार की मंगल आरती उतारने में अपना पूरा समय लगाना कांग्रेस संगठन में पद पाने की गारंटी बन गई है. कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर ऐसे नेता को बिठाया गया है, जो अपना चुनाव स्वयं हार चुके हैं. उनके गृह जिले में कांग्रेस नेता विहीन हो गई है. कांग्रेस के लोकसभा के प्रत्याशी को मैदान में भी कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बचा पाए. 

     कांग्रेस के दो विधायक रामनिवास रावत और कमलेश शाह पार्टी छोड़ चुके हैं. विधायक दल के नेता के पास अपनी पीठ ठोंकने के अलावा विधायक दल के भविष्य पर कोई सकारात्मक सोच दिखाई नहीं पड़ती है. नेताओं के पार्टी छोड़ने पर बची-खुची कांग्रेस की जो प्रतिक्रिया सामने आती है, वह भी नेताओं को कमतर साबित करने के साथ ही उन पर व्यक्तिगत हमले ही करती दिखाई पड़ती है. कांग्रेस जनों से चर्चा की जाए, तो ऐसा कहा जाता है, कि जो लोग भी पार्टी छोड़ रहे हैं, वह बीजेपी में जाकर कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे. 

     कांग्रेस में जो अंग्रिम पंक्ति में दिखाई पड़ते थे, बीजेपी में सबसे पीछे दिखाई पड़ते हैं. बीजेपी में पिछली पंक्ति में पहुंचने के लिए भी पार्टी छोड़ने का सिलसिला चल रहा है, तो इसका मतलब है कि कोई बहुत गंभीर वैचारिक और संगठनात्मक संकट कांग्रेस में व्याप्त है. कुछ पाने के लिए जाना तो समझ आता है, लेकिन पीछे खड़े होने के लिए अपनी पार्टी की अग्रिम पंक्ति छोड़कर भी चले जाने के असहय दर्द को समझा जा सकता है. 

     कांग्रेस नेताओं के कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने को बीजेपी की बड़ी उपलब्धि के रूप में भी नहीं देखा जा सकता है. इस तरह के दल-बदल के सही और गलत पक्ष का एक्सरे बहुत जरूरी है. जिन नेताओं के साथ जमीन पर बीजेपी और कांग्रेस के लोग आमने-सामने संघर्ष करते रहे हैं, पार्टियां बदलने के कारण उन्हीं नेताओं को कंधे पर बिठाना पड़ता है. यह मूल संगठन के लिए कष्टकारी ही होता है.

     संगठन आधारित बीजेपी में अभी तक तो उसको संतुलित करने में सफलता पाई गई है, लेकिन यह सिलसिला बीजेपी के लिए भी हमेशा-हमेशा मंगलकारी नहीं हो सकता. किसी भी संगठन को खड़ा करना बड़ी तपस्या और समर्पण की मांग करता है. लंबे समय में खड़ा हुआ संगठन इस तरह के दल-बदल से डगमगाने लगता है. कांग्रेस भी कभी इस देश में एकछत्र राज किया करती थी. वक्त के वर्तमान दौर की कांग्रेस ने कल्पना नहीं की होगी. कांग्रेस ऐसी केस स्टडी है, इसे राजनीति के सफल और असफल सभी विद्यार्थियों को समझने की जरूरत है. 

     राजनीतिक दल और देश का दिल मिलता रहे. इसके लिए हमेशा सतर्क और सचेत रहने की जरूरत है. जरा सी गलती गहरे गड्ढे में धकेलने के लिए पर्याप्त होती है. कांग्रेस संगठन और विधायक दल में शुरु हुआ बिखराव लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ और गति पकड़ेगा. अभी तो दो लोकसभा क्षेत्रों इंदौर और खजुराहो में कांग्रेस या उसके गठबंधन का कोई प्रत्याशी ही चुनावी मैदान में नहीं बचा है. 

    सुसाइड करने की मानसिकता पर बहुत शोध हुए हैं. लेकिन कोई भी एक कारण इसके लिए जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता. राजनीतिक दलों की सुसाइडल टेंडेंसी धीरे-धीरे इतना विकराल रूप ले लेती है, कि स्थितियों का नियंत्रण असंभव सा हो जाता है. कांग्रेस संगठन आज इसी दौर में खड़ा हुआ है. 

    भारत की राजनीति में कांग्रेस और राम की टीम आमने-सामने है. राम की टीम में शामिल होने के लिए कांग्रेस में भगदड़ का माहौल है. रामनिवास भी अपने राजनीतिक आश्रय में पहुंच गए हैं. गांधी परिवार जब तक संगठन में योग्यता को महत्व नहीं देगा, जब तक केवल अपने चमचों और भरोसेमंद नेताओं को ही वरीयता देता रहेगा, तब तक नेता कांग्रेस का निवास बदलते रहेंगे. कांग्रेस की टीम बिखरती रहेगी. अयोग्यता मुस्कुराती रहेगी. योग्यता दूसरों में अपना भविष्य तलाशती रहेगी. राहुल गांधी न्याय यात्रा निकालते रहेंगे और कांग्रेस अन्याय का ठिकाना बनी रहेगी.