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ईडी से लड़ रही आजादी के लिए लड़ने वाली पार्टी 

सार

आजादी के 75 साल के अमृतकाल में अंग्रेजों से लड़ने वाली कांग्रेस आज प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से लड़ रही है..!

janmat

विस्तार

पूरी दुनिया महंगाई से परेशान और विभिन्न राष्ट्रों के बीच युद्ध के माहौल से चिंतित है। रूस यूक्रेन से लड़ रहा है तो चीन ने ताइवान को घेर लिया है।  दुनिया के इस माहौल के बुरे असर से भारत भी अछूता कैसे रह पाएगा? भारत की सरकार जहां देश की सुरक्षा और संप्रभुता की मजबूती के लिए उधेड़ बुन में लगी हुई है, वहीं देश में राजनीतिक लड़ाई एक नए दौर में पहुंच गई है। आजादी के 75 साल के अमृतकाल में अंग्रेजों से लड़ने वाली कांग्रेस आज प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से लड़ रही है।

सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ के बाद नेशनल हेराल्ड दफ्तर में यंग इंडिया के कार्यालय को सील करने से आक्रोशित कांग्रेस वर्सेस ईडी अब अमृत महोत्सव वर्ष का सबसे बड़ा राजनीतिक आंदोलन बनता दिखाई पड़ रहा है। ईडी द्वारा विपक्ष के नेताओं पर कार्यवाही को लेकर लोकसभा और राज्यसभा ठप की जा रही है। ईडी की कार्रवाई के खिलाफ कांग्रेस बड़े आंदोलन का ऐलान कर चुकी है। सत्याग्रह से शुरू आंदोलन अब रण में बदल गया है। 

किसी भी राष्ट्र के लिए 75 साल का अमृत काल संतुष्टि-सम्मान और बेहतर भविष्य की छलांग का काल होता है। अमृत महोत्सव वर्ष में देश में राजनीतिक नेताओं पर ईडी के छापों में उछाल,अमृत काल का सच्चा हाल बता रहा है। संसदीय शासन प्रणाली में शासन राजनेताओं के हाथ में होता है। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण  योगदान दिया। उस दौर में कांग्रेस और देश को अलग-अलग देखना मुश्किल होता था। 

देश की भावनाएं कांग्रेस के माध्यम से प्रतिबिंबित हुआ करती थीं। अमृत काल के 75 साल में लगभग 50 सालों तक देश में कांग्रेस की सरकार रही है। वही कांग्रेस जिसने देश के नव निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उसी कांग्रेस ने प्रवर्तन निदेशालय भी बनाया है और ईडी भी तब से काम कर रहा है लेकिन अब वह कांग्रेस के निशाने पर आ गया है। 

कांग्रेस वर्सेस ईडी की लड़ाई नेशनल हेराल्ड मामले से हुई है। बीजेपी के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा शिकायत और न्यायालय के आदेश पर ईडी की जांच प्रारंभ हुई। इस अपराधिक मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को न्यायालय से जमानत लेनी पड़ी। ईडी की जांच में जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया गया तो कांग्रेस ने देश सिर पर उठा लिया। संसद ठप कर दी गई। पूरे देश में गांधी परिवार के समर्थन में आंदोलन शुरू कर दिए। 

हो सकता है कांग्रेस के लोगों का यह कहना सही हो कि सरकार द्वारा गांधी परिवार को जबरन ही नेशनल हेराल्ड मामले में फंसाया जा रहा है। यह कोई नई बात नहीं है। सरकार और विपक्ष के बीच में फंसने फंसाने के आरोप-प्रत्यारोप सदैव लगते रहे हैं। भारत में अदालतें विश्वसनीयता के शिखर पर हैं। विलंब भले हो लेकिन निरपराध को अपराधी बनाना अदालतों में नामुमकिन सा है। आपराधिक मामलों में जन आंदोलन हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है। 

पॉलिटिक्स में परसेप्शन बहुत महत्वपूर्ण होता है। कांग्रेस के आंदोलन को लेकर यह परसेप्शन बन चुका है कि यह सारी लड़ाई ईडी की जांच के विरोध के कारण है। अब लोकसभा और राज्यसभा में तो कांग्रेस ने ही स्पष्ट कर दिया कि उनके आंदोलन के पीछे क्या कारण है। महंगाई और बेरोजगारी को नाम के लिए भले ही जोड़ दिया गया लेकिन कांग्रेस लंबे समय से विपक्ष में है। महंगाई और बेरोजगारी कोई एक दिन का विषय नहीं है। कांग्रेस इससे पहले कभी भी आंदोलन नहीं कर सकी लेकिन अब ईडी की जाँच शुरू होने पर आंदोलन किया जा रहा है। 

मोदी सरकार के विरोध में विपक्षी दलों की एकजुटता का नेतृत्व भी कांग्रेस नहीं कर पाई है। संसदीय राजनीति में राजनीतिक दलों का संचालन धनराशि की व्यवस्था बिना संभव नहीं हो सकता। राजनीतिक दलों द्वारा सिस्टम में भ्रष्टाचार के जरिए पार्टी प्रबंधन की व्यवस्था धीरे धीरे अब संस्थागत स्वरूप ले चुकी है।  शासन के कई विभाग हैं जिनमें कमीशन खोरी सर्वविदित है। ऐसे ही विभागों में परिवहन विभाग माना जाता है। जिसमें एकत्रित राशि उच्च स्तर तक पहुंचाई जाती है क्योंकि आजादी के बाद से बहुत समय तक केंद्र और राज्यों में कांग्रेस ही सरकारों का नेतृत्व करती रही है। इसलिए सरकारी सिस्टम में आई संस्थागत बुराइयों का ठीकरा कांग्रेस के सिर पर फूटना  स्वाभाविक है। 

नेशनल हेराल्ड आजादी के समय का अखबार है। उसकी भूमिका पर कोई सवाल नहीं हो सकता लेकिन कंपनी नियमों के अंतर्गत संपत्तियों का हस्तांतरण और उसमें नियमों की अनदेखी जब भी पकड़ में आएगी तब कार्यवाही तो होगी ही। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई भी परिवार कानून से ऊपर हो। कानून अपना काम करेगा और कानून का अंतिम निर्णय देश की सर्वोच्च अदालत में किया जाता है। अदालतों के सामने अपनी बेगुनाही साबित करने का जब विकल्प है फिर जनता की अदालत को क्यों चुना जा रहा है?

भारत में आज सबसे चर्चित एजेंसी ईडी ही है। पहले सीबीआई भी चर्चा में हुआ करती थी लेकिन मोदी सरकार बनने के बाद विपक्षी दलों की राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्यों में सीबीआई जांच को एक तरह से प्रतिबंधित ही कर रखा है। ईडी के मामले में अभी राज्यों के पास ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। जिसके अंतर्गत ईडी की जांच को रोका जा सके। सर्वोच्च न्यायालय ने भी ईडी के अधिकारों को मंजूर कर दिया है। ऐसी स्थिति में आज राजनेताओं और काली कमाई वालों में ईडी के नाम से कंपकपी छूट रही है। यह संयोग हो सकता है कि ईडी की गिरफ्त में अभी जो नेता आए हैं उसमें ज्यादातर विपक्ष के ही नेता हैं। 

कांग्रेस आजादी के समय की पार्टी है जिसने देश के इंस्टिट्यूशंस को बनाया है। वही कांग्रेस आज एक इंस्टिट्यूशन के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। यह अमृत महोत्सव काल में देश के संसदीय शासन प्रणाली की सच्चाई का हाल बता रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जब आजादी का शताब्दी वर्ष देश मनाने की स्थिति में होगा तब ईडी पीड़ित राजनेताओं की लिस्ट इतनी बड़ी होगी कि उसमें  ना कोई दलीय सीमा होगी और ना ही गुटीय सीमा। 

वैसे होना तो यह चाहिए उस समय ऐसी परिस्थितियां रहें कि ईडी को छापे मारने की जरूरत ही ना पड़े। सिस्टम में पारदर्शिता हो, राजनेताओं में सिस्टम के प्रति ईमानदारी हो, चुनाव सुधार के जरिए ऐसी व्यवस्थाएं लागू हों, जिसमें राजनीतिक दलों और राजनेताओं को चुनावी चंदो के लिए अनैतिक और गलत रास्तों पर चलना ही न पड़े।