गुजरात ने एक बार फिर चौंकाया है. कैबिनेट में मौसम परिवर्तन जैसा फेर-बदल किया गया है. पुरानी कैबिनेट के त्यागपत्र देने के बाद उनमें से केवल छह ही फिर से मंत्री बन पाए हैं. दस मंत्रियों को ड्रॉप कर दिया गया है..!!
पहली बार भाजपा द्वारा किसी राज्य में परफॉर्मेंस के आधार पर डिप्टी सीएम बनाया गया है. यह भी पहली बार हुआ है. जब संविधान की सीमा के अंतर्गत सदस्य संख्या के हिसाब से निर्धारित मंत्रियों की पूरी संख्या एक साथ भरी गई है.
पहली बार के विधायकों को भी मौका दिया गया है. जातीय और क्षेत्रीय समीकरण के साथ महिलाओं को भी समुचित प्रतिनिधित्व दिया गया है. नई कैबिनेट के शपथ समारोह में पीएम मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का शामिल ना होना भी चौंकाता है.
कैबिनेट भले सीएम भूपेंद्र पटेल की हो, लेकिन फैसला उनका होगा ऐसा कोई भी नहीं मान सकता. सारे निर्णय मोदी-शाह के फॉर्मूले में हीं राज्य में लिए जाते हैं. अगले विधानसभा चुनाव के नजरिए से यह कैबिनेट फेर-बदल सत्ता विरोधी रुझान को कम करने के साथ ही पार्टी में नए नेतृत्व को आगे बढ़ाने की दृष्टि से भी दिखाई पड़ता है. फेर-बदल यह भी साबित कर रहा है, कि राज्य में बीजेपी के अगले मुख्यमंत्री की भी पहचान कर ली गई है. डिप्टी सीएम के रूप में हर्ष संघवी को शपथ दिलाई गई है. उनकी हैसियत बिना डिप्टी सीएम के ही सरकार में दूसरे नंबर की मानी जाती है. अब तो राजनीतिक हल्कों में यह तय माना जा रहा है कि मोदी और शाह के विश्वसनीय चेहरे के रूप में अगली सरकार का नेतृत्व उनको मिल सकता है.
किसी भी सरकार से एक भी मंत्री को हटाना चुनौतीपूर्ण होता है. जबकि बीजेपी गुजरात में तो पूरी कैबिनेट एक साथ बदलने का अनुशासन भी दिखा चुकी है. शासन के चेहरे के रूप में मंत्रियों के आचरण उनकी छवि, परफॉर्मेंस, चुनावी भविष्य तय करते हैं. गुजरात तो बीजेपी का सक्सेसफुल मॉडल बन गया है. मोदी और शाह को भी इस मॉडल से ताकत मिली है. राहुल गांधी ने अगले चुनाव में बीजेपी को गुजरात में हारने की चुनौती दी है. नया मंत्रीमंडल इस चुनौती का मुक़ाबला करेगा.
अगर यह कहा जाए कि बीजेपी की आज देश में जो बढ़त है, उसकी बुनियाद गुजरात मॉडल में छिपी हुई है. हिंदुत्व की राजनीति की गुजरात प्रयोगशाला रही है. डेवलपमेंट का गुजरात मॉडल भी देश को प्रभावित कर रहा है. नेतृत्व के लिहाज से तो मोदी और शाह गुजरात की विश्वसनीयता को पूरे देश में स्थापित किया है. जब भूपेंद्र पटेल को पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब तात्कालीन मुख्यमंत्री और पूरी कैबिनेट को बदल दिया गया था. उस समय भी ऐसा माना जा रहा था कि सरकार के खिलाफ एंटीइनकम्बेंसी बढ़ी है. पूरी सरकार का चेहरा बदलने के सरप्राइज फैसले के बाद पार्टी को फिर से जनादेश मिला था. इस प्रयोग को फिर से दोहराया जा रहा है.
डिप्टी सीएम के रूप में एक ऐसा चेहरा उभारा गया है, जिसको राज्य में भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी शासित राज्यों में उपमुख्यमंत्री का प्रयोग पहले से ही होता रहा है. सभी राज्यों में जातीय संतुलन साधने के लिए उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. ऐसा पहली बार दिखाई पड़ रहा है, जब किसी नेता को परफॉर्मेंस के आधार पर डिप्टी सीएम का पद दिया गया है. साथ ही इसका यह मैसेज भी गया है कि वास्तविक रूप से डिप्टी सीएम राज्य सरकार में सेकेण्ड इन कमान्ड रहेंगे. अभी तक तो यही अनुभव रहा है, कि डिप्टी सीएम का पद केवल कागज़ी साबित होता है .
सवाल यह उठता है कि जिस तरह से क्रांतिकारी फैसला गुजरात में पार्टी लेती है, वैसा दूसरे राज्यों में क्यों संभव नहीं होता. इसका यह कारण माना जा सकता है कि मोदी और शाह का गुजरात में पूरा कंट्रोल है. यद्यपि इन दोनों नेताओं का देश के सभी राज्यों में पार्टी पर कंट्रोल में कोई कमी नहीं है. ऐसे सरप्राइज और सरकार का चेहरा बदलने वाले फैसलों की जरूरत बीजेपी शासित दूसरे राज्यों में भी है. जातीय आधार पर नेतृत्व विकसित करना पर्टियों की मजबूरी हो सकता है, लेकिन इससे परफॉर्मेंस को नहीं आंका जा सकता. परफॉर्मेंस की योग्यता किसी-किसी नेता में होती है. राजनीतिक आवश्यकता अलग बात है, लेकिन सरकारों का परफॉर्म्स भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
गुजरात में जब भी ऐसे क्रांतिकारी बदलाव दिखाई पड़ते हैं तब भाजपा शासित दूसरे राज्यों में इस बात की चर्चा शुरु हो जाती है कि वहां भी सरकार के चेहरे में बदलाव जरूर होगा. जिन चेहरों के कारण सत्ता विरोधी लहर बढ़ रही है, उनको कैसे बनाए रखा जा सकता है. पीएम नरेंद्र मोदी की तो यह विशिष्ट शैली है कि मुख्य सचिव जैसे आईएएस सीनियर अफसर के माध्यम से पूरी सरकार से अपडेट रहते हैं.
बहुत कम ऐसे नेता होते हैं, जिनके पुराने चेहरे पर भी जनता का विश्वास होता है. खासकर सरकार में मंत्रियों के आचरण और व्यवहार के कारण दलों को बहुत नुकसान होता है. दलालों के दलदल मेंनेताओं का फंसना आम बात है.
बीजेपी इसीलिए थोड़ा अलग दिखती है, क्योंकि वह कभी-कभी सरप्राइज फैसला कर देती है. कई राज्य ऐसे फैसले मांग रहे हैं. जन भावनाओं को समझ कर जब तक सरकारों के घिसे पिटे चेहरे बदलने की सरप्राइज शैली चलती रहेगी. तब तक जनविश्वास बना रहेगा.