मध्य प्रदेश के लिए खुशी की खबर है कि, बिजनेस मैट्रिक क्षेत्र में टॉप अचीवर स्टेट बना है. ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव, जन विश्वास अधिनियम, ई सेवा और इन्वेस्ट एमपी पोर्टल को अचीवमेंट माना गया है..!!
इन सेक्टर्स में राज्य को क्या उपलब्धि मिली है, यह नहीं बताया गया है. केवल इन आयोजनों और पोर्टल के कारण ही एमपी टॉप अचीवर स्टेट बन गया है. यह सारे अचीवमेंट राज्य की क्षमता या सामर्थ्य हो सकते हैं लेकिन यह अपने आप में अचीवमेंट कैसे हो सकते हैं?
इन टॉप अचीवमेंट को अगर नवाचार के रूप में देखा जाएगा तो इससे राज्य की औकात बन सकती है. ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की संभावना बढ़ सकती है. औकात एक ऐसा शब्द है, जिसका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप में उपयोग होता है. अगर कोई नवाचार राज्य की क्षमता, सामर्थ्य और हैसियत को बढ़ाने का काम करता हैं तो यह औकात का सकारात्मक रूप है. इसके विपरीत राज्य के मुख्यमंत्री ने सरपंच सम्मेलन में भी औकात शब्द का उपयोग किया है जो कि, नकारात्मक मैसेज दे रहा है.
अगर व्यक्ति के लिए औकात शब्द की समीक्षा की जाएगी तो वह सामान्य रूप से धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा और पद से जोड़ा जाता है. अगर इसे राज्य के लिए उपयोग किया जाएगा तो यह उसकी क्षमता और सामर्थ्य स्थापित करेगा. अस्तित्व की दृष्टि से औकात शब्द अहंकार जनित है. संसार में हर इंसान को वैयक्तिक स्वतंत्रता है.
किसी भी दो व्यक्ति का ना कोई मेल है और ना ही कोई तुलना हो सकती है. पद, प्रतिष्ठा भौतिक है. इसको वैयक्तिक स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता. लोकतंत्र की दृष्टि से प्रत्येक नागरिक की औकात समान है. लोकतंत्र में यह औकात मताधिकार है. इसमें गरीब हो या अमीर सभी को बराबरी का अधिकार है.
कोई किसी भी पद पर हो. कितना भी धनी हो या गरीब हो, उसके एक मत का अधिकार बराबरी का है. यही बराबरी भारत के हर नागरिक की औकात है. जहां तक पद और प्रतिष्ठा की बात है, वह कभी भी व्यक्तिगत नहीं हो सकती. सार्वजनिक जीवन में पद के आधार पर किसी को भी बेहतर या कमतर साबित करना लोकतांत्रिक चिंतन नहीं हो सकता.
राज्य के मुख्यमंत्री सरपंचों के सम्मेलन में पंचायत सचिव और सहायक सचिव की शिकायत पर कुछ ऐसा बोल गए जो ना लोकतांत्रिक है और ना ही समानता के सिद्धांतों के अनुरूप. पीएम से लगाकर पंच तक सबकी वैयक्तिक स्वतंत्रता हैं. उनके अस्तित्व की सत्ता ना कम है और ना ज्यादा.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में जब भी कोई मंत्री या मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण करता है तो इसी बात की शपथ लेता है कि, वह निष्ठा पूर्वक संविधान के मुताबिक सभी लोगों के साथ न्याय करेगा. सभी को न्याय का अधिकार है. कोई पद पर रहते हुए किसी को भी छोटा साबित करने के लिए उसकी औकात बताने का अगर प्रयास करता है तो वह उसी के खिलाफ चला जाता है.
सोशल मीडिया के दौर में खासकर राजनेताओं को बोलचाल में बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता है. पहले कुछ कहा जाता था तो जिनके बीच कहा गया, उतने लोग ही उसे सुन या देख पाते थे. लेकिन अब तो मुंह से निकला हर शब्द रिकॉर्ड हो जाता है. इसे पूरी दुनिया में फैलाया जा सकता है. इसका कभी भी उपयोग और दुरुपयोग किया जा सकता है.
सार्वजनिक जीवन में बोली और भाषा का बड़ा महत्व होता है. उसका जितना फायदा होता है उतना नुकसान भी. कभी-कभी कोई डायलॉग इतना असर करता है कि उसकी छाप मिटाए नहीं मिटती. राज्य की राजनीति में अगर देखा जाए तो कुछ डायलाग ऐसे हैं, जिनके कारण सत्ता परिवर्तन तक हो गया.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आरक्षण को लेकर जब ‘माई के लाल वाला डायलाग दिया था तो इसकी अप्रत्याशित प्रतिक्रिया हुई. हो सकता है उनका वह आशय नहीं रहा हो जो समझ लिया गया था. लेकिन फिर भी उन्हें चुनावी नुकसान हुआ. इसी प्रकार दिग्विजय सिंह शासन की कार्यप्रणाली पर बंटाधार ऐसा चिपका कि, वह आज तक कांग्रेस को कष्ट पहुंचा रहा है.
भाजपा नेता पीएम नरेंद्र मोदी इस बात के सबसे बड़े उदाहरण हैं कि तमाम सारे विरोध के बावजूद केवल न्यूनतम और जरूरी बात करके उन्होंने न केवल अपनी छवि को मजबूत किया बल्कि देश का भरोसा भी जीता. उनके विरुद्ध जिस तरह की बोली और भाषा का उपयोग किया जाता है, उसके बावजूद भी उन्होंने अपने स्तर को हमेशा बनाए रखा. सार्वजनिक जीवन में हर समय हर बात बोलना भी जरूरी नहीं है.
एमपी के सीएम डॉ. मोहन यादव सहज और सरल व्यक्तित्व हो सकते हैं, लेकिन बोली और भाषा के कारण कई बार उस पर विवाद खड़े हुए. वह जमीनी हैं. पढ़ाई, लिखाई और डिग्री के मामले में उनकी उपलब्धियां बेमिसाल हैं. लेकिन साफगोई का प्रजेंटेशन कई बार उलटा पड़ जाता है. सचिव और सहायक सचिव भी किसी पद पर हैं. हर पद की अपनी गरिमा और अधिकार हैं.
जब मानसिकता पदों के आधार पर औकात आँकने की होती है, तो पद जाने के बाद तकलीफ अधिक होती है. सरकारी पद का वैभव रिटायरमेंट के साथ खत्म हो जाता है. राजनीतिक सत्ता तो हर पांच साल में जन कसौटी पर कसी जाती है. मुख्यमंत्री और मंत्री तो कई बार पार्टी की सत्ता रहने पर भी बदलाव का शिकार हो जाते हैं.
राजनीतिक जीवन में पद का स्थायित्व केवल कल्पना में होता है. अभी तो ऐसे बहुत उदाहरण हैं, जब या तो चुनावी पराजय के कारण या पार्टी द्वारा मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण, हैसियत में आए बदलाव को सहजता से परखा जा सकता है.
औकात का अपडेट वैयक्तिक होता है. इसको पद से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. औकात का अहंकार जीवन का सबसे बड़ा कष्ट बन जाता है. राज्य का अचीवमेंट तो सतत प्रक्रिया है, लेकिन व्यक्तिगत अचीवमेंट व्यक्ति के साथ समाप्त हो जाता है.
जो समाप्त होना है, उसको सिर पर लेकर चलने से फायदे से ज्यादा नुकसान ही होता है. नीतियों और इवेंट से टॉप अचीवर बनना आसान है. जमीन पर अचीव करना थोड़ा मुश्किल है.