हर साल की तरह इस साल फिर रामनवमी पर देश के कई क्षेत्रों में जुलूस और शोभा यात्रा पर दो समुदायों के बीच टकराव ने मन को चिंतित और परेशान कर दिया है. कभी एक धर्म के त्योहारों पर तो कभी दूसरे धर्म के त्योहारों पर ऐसी ना भूलने वाली घटनाएं हर साल बढ़ती जा रही हैं. जो सत्ता इन घटनाओं को रोकने के लिए जिम्मेदार है वही भड़काने के आरोप और प्रत्यारोप कर राजनीतिक रोटियां सेंकने लगती है. सत्ता की भूख आदि,अनंत और सनातन है. सत्ता की ममता, मां की ममता को भी पीछे छोड़ने लगी है. हिंदू-मुस्लिम विवाद और चिंगारी सत्ता के लिए बुनियादी जरूरत सी बनती दिखाई पड़ रही है.
रामनवमी भारतीय संस्कृति के मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म दिवस है. जिस महापुरुष ने मर्यादित जीवन के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया, उसके जन्मोत्सव पर मानव जीवन की खंड-खंड होती मर्यादा की घटनाओं को देखना भारतीय संस्कृति की हत्या जैसी मालूम पड़ती है. केवल किसी एक राज्य में नहीं बल्कि कई राज्यों में ऐसी घटनाएं हुई हैं. गुजरात के बड़ोदरा, महाराष्ट्र के संभाजीनगर, पश्चिम बंगाल के हावड़ा समेत कई राज्यों में शोभायात्रा और जुलूस पर पथराव से सांप्रदायिक तनाव के हालात बने हैं.
कई बार तो ऐसा लगता है कि त्यौहार आने के पहले ही सुनियोजित राजनीतिक साजिश और वक्तव्य परिस्थितियों को संभालने से ज्यादा भड़काने की दृष्टि से ही दिए जाते हैं. जब घटनाएं हो जाती हैं तो एक दूसरे पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू कर दिए जाते हैं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रामनवमी पर हुई घटनाओं के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रही हैं तो बीजेपी की ओर से केंद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर ममता बनर्जी को इस्लामिक स्टेट बनाने के लिए हिंदू समाज के साथ अन्याय करने का आरोप मढ़ रहे हैं.
यह दोनों आरोप घटनाओं को शांत करने की दृष्टि से तो बिल्कुल नहीं माने जा सकते. दोनों का नजरिया अपने-अपने स्टेकहोल्डर की भावनाओं को भड़का कर भविष्य की सत्ता की राजनीति में अपने शेयरों का मूल्य बढ़ाने का सोचा समझा प्रयास ही माना जाएगा. लॉ एंड आर्डर से जुड़ी घटनाओं में राजनीतिक लोगों के आरोप-प्रत्यारोप की क्या जरूरत है? इसके लिए कानून से जुड़े अथारिटी ही यदि अपनी जिम्मेदारी के साथ सच्चाई जनता के सामने रखेगी तो उसे ज्यादा विश्वसनीय माना जाएगा.
यह अजीब परिस्थितियां हैं कि जहां पर भी सत्ता की राजनीति का संघर्ष चरम पर होता है, वहां ऐसी घटनाएं अचानक बढ़ने लगती हैं. अगर हम इतिहास पर नजर डालेंगे तो जिन राज्यों में चुनाव चालू थे या निकट भविष्य में होने वाले हैं या ऐसे राज्य जहां राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था जहां इस बात की संभावना थी कि ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण की राजनीति का डिविडेंड अगले चुनाव में लाभकारी हो सकता है उन्हीं राज्यों में यह घटनाएं होती हैं. सांप्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील राज्य उत्तरप्रदेश में इस बार इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है क्योंकि अभी वहां कोई राजनीति लाभ हानि का गणित दिखाई नहीं पड़ रहा है.
धार्मिक ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण के हालात तब तक नहीं रोके जा सकते जब तक इनका राजनीति में सकारात्मक या नकारात्मक उपयोग होता रहेगा. रामनवमी पर दुर्घटनाएं जहां भी हुई हैं वहां पत्थर भले ही किसी हाथ से चले हों लेकिन उन हाथ के पीछे भी कोई हाथ होता है और इसके आगे भी निश्चित ही किसी हाथ की भूमिका होती है. हेट स्पीच के लिए राजनीतिज्ञ एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन बारीकी से देखा जाए तो हेट स्पीच के पीछे सत्ता की ममता और राजनीति अवश्यंभावी होती है.
हिंदू मुस्लिम की टकराहट की राजनीति से भारत की आजादी और विभाजन का इतिहास भरा पड़ा है. देश की गुलामी और आजादी के पीछे सांप्रदायिक कारणों से जिस तरह की परिस्थितियां बनी हैं उसके कारण निश्चित ही भारत कमजोर हुआ है. सत्ता की राजनीति के लिए आज उसी तरह की परिस्थितियां बनाई जा रही हैं. हेट स्पीच के मामलों में सत्ता की राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ लाभ-हानि के गणित पर काम करते हैं और अंततः ऐसे प्रयास समाज को ही नुकसान पहुंचाते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा महाराष्ट्र सरकार से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणी ऐसे मामलों के चलते देश की विस्फोटक स्थिति और सरकारों की भूमिका को उजागर कर रही है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा है कि हेट स्पीच की घटनाओं के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है. राज्य सरकार समय रहते कोई कार्रवाई नहीं करती इसलिए इस तरह की घटनाएं होती हैं. जिस समय घटनाएं होती हैं, उस समय नेता धर्म का इस्तेमाल करने लगते हैं. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जिस वक्त राजनीति और धर्म अलग हो जाएंगे नेता राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करना बंद कर देंगे तो हेट स्पीच जैसे मामले सामने ही नहीं आएंगे.
धर्म और धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक उपयोग मानवता का सबसे बड़ा शोषण है. इससे मिलने वाला सत्ता का सुख भविष्य में सबसे बड़े दुख की नियति बनता जा रहा है. रामनवमी के पावन पर्व को राक्षसनवमी बनाने के प्रयासों को अंततः रावण जैसी हार ही मिलेगी.