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 गंगा से ज़्यादा ज़रूरी है, पॉलिटिकल सफाई अभियान

सार

लोकसभा चुनाव में मनी लॉन्ड्रिंग की खूब चर्चा है. आम इंसान को मनी लांड्रिंग का मतलब समझना थोड़ा कठिन है. सामान्य भाषा में कहा जाए तो अवैध ढंग से कमाए गए काले धन को सफेद वैध बनाने की प्रक्रिया को मनी लॉन्ड्रिंग कहा जाता है. अवैध धन कमाने का जरिया अभी तक आतंकवाद और माफिया गिरोह माने जाते थे. देश में ऐसा पहली बार हो रहा है,कि  पॉलिटिक्स की ब्रांडिंग मनी लांड्रिंग से हो रही है.  

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विस्तार

    भ्रष्टाचार के जरिए काला धन अर्जित करना और फिर उसे राजनीतिक गतिविधियों, बिजनेस या संपत्तियों में निवेश करना पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा काम बन गया है. मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के लिए भारत में पीएमएलए (प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट) बना हुआ है. जिन राजनीतिक दलों ने यह एक्ट बनाया था.जब उन पर ही एक्ट लागू होने लगा, तो फिर ED उनका सबसे बड़ा दुश्मन बन गया. लोकसभा चुनाव में करप्शन पर दो विचारधाराएं टकरा रही हैं. पीएम नरेंद्र मोदी जहां भ्रष्टाचार मिटाने की गारंटी दे रहे हैं. वहीं INDI गठबंधन “ईडी-सीबीआई, भाजपा के भाई-भाई’’ का नारा देकर कानून को धता बताने की कोशिश कर रहे हैं. 

    सभी राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में मनी लांड्रिंग के आरोपों से घिरे हुए हैं. आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े नेता अरविंद केजरीवाल इस मामले में जेल में हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मनी लांड्रिंग के आरोपों में ही जेल के अंदर हैं. जो नेता अभी जेल में नहीं है वह मनी लांड्रिंग के जाल में हैं. प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट परिवारवादी मनी लांड्रिंग एलायंस  को एक्सपोज कर रहा है.

    पीएमएलए का सबसे ज्यादा शिकार MLA हो रहे हैं. इलेक्टोरल बांड डोनेशन भी सवालों के घेरे में है. कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज़ करने की प्रक्रिया भले ही अभी रुकी हुई है लेकिन पीएमएलए का शिकंजा कांग्रेस पर लगातार कसता जा रहा है. पीएमएलए कोर्ट ने मनी लांड्रिंग मामले में ED द्वारा कांग्रेस के संरक्षण वाले नेशनल हेराल्ड अखबार और उससे जुड़ी कंपनियों की लगभग 752 करोड रुपए की संपत्तियों को जप्त करने को सही माना है. 

    पीएमएलए प्राधिकरण का मानना है कि ED द्वारा कुर्क की गई संपत्ति और इक्विटी शेयर अपराध की कमाई है. और मनी लांड्रिंग के अपराध से जुडी हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले साल नवंबर में एसोसिएटेड जनरल्स लिमिटेड और यंग इंडियन के खिलाफ मनी लांड्रिंग के तहत एक आदेश जारी कर इन संपत्तियों को कुर्क किया था. 

    कांग्रेस के सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी यंग इंडियन के बड़े शेयर धारक हैं. मनी लांड्रिंग के इस गंभीर मामले को लेकर इन दोनों नेताओं से ED द्वारा पहले पूछताछ की जा चुकी है. चुनाव के दौरान ही पीएमएलए कानून का शिकंजा कांग्रेस से जुड़ी संपत्तियों पर कसना निश्चित ही कांग्रेस के लिए कष्टकारी होगा. इस मामले में जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से ED द्वारा पूछताछ की गई थी. उस समय कांग्रेस ने सड़कों पर प्रदर्शन किया था. बार-बार यह स्थापित करने की कोशिश की थी,कि जांच एजेंसी उनको फंसाने  के लिए बीजेपी की केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही है.

    कानून की कार्रवाई कानून के अंतर्गत होती है और कानून के अंतर्गत ही अदालतों में सजा या दोष मुक्त किया जाता है. कांग्रेस पार्टी को अवैध धन से जुड़े मामलों में ही खाता फ्रीज करने के नोटिस दिए गए थे. इन नोटिसों पर ऐसा राजनीतिक घमासान मचाया गया था कि जैसे, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को रोकने के लिए जानबूझकर खाते सीज किये जा रहे हैं.

    खाता खुला रहे या फ्रीज रहे? मतदाता का खाता तो बैंक खाते से नहीं चलेगा. जनादेश का खाता जन विश्वास पर चलता है. और कानून की एजेंसी को कटघरे  में खड़ा करने से किसी के भी पक्ष में जन विश्वास नहीं बनता.

    गंगा और यमुना की सफाई भारत के लिए बड़ा भावनात्मक मुद्दा रहा है. हर राजनीतिक दल गंगा और यमुना की सफाई के वायदे करते रहे हैं. कुछ काम भी शुरू हुए हैं. लेकिन गंगा और यमुना की सफाई तब तक नहीं हो सकेगी? जब तक इसकी सफाई के लिए आगे बढ़ने वाले सियासी हाथ साफ नहीं होंगे. अब तो ऐसा लगने लगा है कि देश की बहुत सारी समस्याओं की जड़ सियासत में भ्रष्टाचार ही है.   

    गंगा से भी ज्यादा जरूरी है,पॉलिटिकल सफाई अभियान. पॉलीटिकल करप्शन को अनदेखा करना अब भारत के भविष्य को खतरे में डालने जैसा है. सरकार और जनता के धन की लूट की जाती है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कहते थे कि दिल्ली से चले एक रुपए में से हकदार के पास केवल 15 पैसे पहुंचता है. पचासी पैसे रास्ते में ही लूट लिए जाते हैं. लूट की यह गंभीरता पता सबको थी लेकिन उस पर कार्यवाई कोई नहीं करता था. कार्रवाई अब शुरू हुई है. यह तभी हो सकती है,  जब कार्रवाई करने वाले के हाथ पाक साफ हो.

    करप्शन से लड़ने की गारंटी वही दे सकता है, जिसकी खुद की ईमानदारी की वारंटी हो. अदालत से लेकर सरकारों तक सब इस बात से अवगत हैं, कि कैसे सरकारी प्रक्रिया का लाभ उठाकर अवैध धन कमाया जाता है.

    शराब और परिवहन तो ऐसे विभाग हैं जो राजनीतिक अर्थव्यवस्था के आधार माने जाते हैं. इससे  कमाए गए पैसे, राजनीतिक उपयोग के लिए उच्च से उच्च स्तर तक पहुंचते हैं. इसका बाकायदा एक सिस्टम बना होता है.लेकिन कोई भी इस सिस्टम को तोड़ने पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करता है.

    यह तो पहली बार हुआ है, कि दिल्ली सरकार के शराब घोटाले को उजागर किया गया है. मुख्यमंत्री को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया है. जब बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोग गिरफ्तार होने लगे तो फिर पीएमएलए कानून को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. मनी लांड्रिंग के आरोपी और उनके राजनीतिक दल गला फाड़ फाड़ कर यह कहते रहते हैं, कि अभी आरोप साबित नहीं हुआ है. कानून बनाने की शक्ति से संपन्न यह राजनेता भूल जाते हैं, कि कानून की प्रक्रिया के अंतर्गत ही बड़ी संख्या में आरोपी सालों की सजा जेल में भुगतते हैं. 

    केस के ट्रायल पर आने और निर्णय होने तक आम लोग उस अपराध में दी जाने वाली सजा के बराबर जेल काट ही चुके होते हैं. जो राजनीतिक आरोपी और अपराधी की बात करके जेल से बचना चाहते हैं. उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा? कि कानून में ऐसी व्यवस्था की जाए,कि आम आरोपी भी ट्रायल के पहले अपराधी जैसा सजा भुगतने के लिए मजबूर ना हो. 

   चुनाव में ED और INDI गठबंधन का द्वन्द चल रहा है. एक तरफ चुनाव चल रहे हैं, दूसरी तरफ ED से बचने के उपाय खोजे जा रहे हैं. भ्रष्टाचार से बचने के लिए गठबंधन बनाए जा रहे हैं. राजनीति में बेशर्मी की हद ही इसे कहा जाएगा,कि करोड़ों रुपए की नगदी जप्त होने के बाद भी एजेंसी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. 

   अदालत से सज़ायाफ्ता लालू यादव का परिवार भ्रष्टाचार के आरोप पर बिलबिला जाते हैं. परिवारवादी राजनीति भ्रष्टाचार की मदरलैंड कहीं जा सकती है. बिहार में राजद परिवारवाद का चेहरा है. लालू यादव की दो बेटियां लोकसभा चुनाव मैदान में है.

मीसा भारती, परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोपों से इतनी बौखला गई है,कि वह कह रही हैं की इंडिया गठबंधन की अगर केंद्र में सरकार बनी तो पीएम भी जेल जाएंगे. 

   जो परिवार जेल जाने का स्वाद चख चुका है, जो अभी भी भ्रष्टाचार के मामलों में जांच एजेंसियों  का सामना कर रहा है. उसके इस तरह के राजनीतिक वक्तव्य यही साबित करते हैं,कि जांच एजेंसियां सही दिशा में काम कर रही हैं. 

    प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री के कुर्सी पर पहुंचने के बाद तो नेता ऐसा समझने लगता है,कि वह कानून के ऊपर है. भारत पहली बार देख रहा है, कि बड़े पदों पर बैठे हुए नेता भी डरे हुए हैं. भ्रष्टाचारी और दागी डरे रहें,  यही देश के लिए अच्छा है.

    पॉलिटिक्स में करप्शन अगर मिट जाएगा तब तो कहना ही क्या है. लेकिन अगर करप्शन नियंत्रित भी हो गया तो सरकारी सिस्टम में करप्शन की गंगोत्री सूख जाएगी. भारत गंगा और यमुना की सफाई में देरी तो बर्दाश्त कर लेगा लेकिन अब पॉलिटिक्स में मनी लांड्रिंग के हालात सहन करना भविष्य को बर्बाद करने जैसा है.

    जो राजनीतिक दल मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों  को अपने ब्रांडिंग का माध्यम बना रहे हैं. उन पर कानून का शिकंजा बिल्कुल ढीला नहीं होना चाहिए. छांट-छांट कर नहीं मनी लांड्रिंग के हर आरोपी को जेल के भीतर करना आजादी की दूसरी लड़ाई होगी. अदालतों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है और अदालतों ने हमेशा कानून का मान बढ़ाया है.