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राज्यसभा चुनाव- बीजेपी का सामाजिक समीकरण पर बड़ा दांव 

सार

देश में राज्यसभा निर्वाचन की नामांकन प्रक्रिया पूर्ण होने के साथ ही प्रत्याशियों के पत्ते खुल गए हैं| पहले राज्यसभा में टिकट पार्टियों को आर्थिक मदद करने वालों को दिए जाने के आरोप लगते रहे हैं| इस बार राज्यसभा प्रत्याशियों के मामले में भाजपा ने सामाजिक समीकरण साधने की नई राजनीति अपनाई है..!

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विस्तार

बीजेपी ने जो भी प्रत्याशी उतारे हैं उनमें स्थापित नेता बहुत कम संख्या में हैं| अधिकांश प्रत्याशी एससी, एसटी, ओबीसी और गरीब वर्गों से चुने गए हैं| कई प्रत्याशियों के मामले में ऐसा हो रहा है कि लोग एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि ये कौन हैं? अभी तक तो इनको कोई नहीं जानता था| अचानक इन्हें राज्यसभा का टिकट कैसे मिल गया?

मध्य प्रदेश में बीजेपी ने राज्यसभा के लिए दोनों महिला प्रत्याशी उतारे हैं| नामांकन के समय विधानसभा परिसर में दोनों महिला प्रत्याशियों को पहचान का संकट बना हुआ था| बता दें कि अनुसूचित जाति वर्ग की सुमित्रा वाल्मीकि का ताल्लुक जबलपुर से है . वहीं कविता पाटीदार अन्य पिछड़ा वर्ग से आती हैं| नया नेतृत्व उभारने की भाजपा की इसी शैली का परिणाम है कि आज भारतीय राजनीति में बीजेपी सबसे आगे है|

मध्यप्रदेश में ही कांग्रेस को एक सीट पर अपने प्रत्याशी विवेक तन्खा को दोबारा उतारना पड़ा है| यहाँ अरुण यादव फिर ताकते रह गए|  विवेक तन्खा नेता कम देश के वरिष्ठ वकील ज्यादा हैं| पार्टी को कानूनी रूप से सहयोग करने में तो वह सक्षम हैं लेकिन जनता के बीच पार्टी के जनाधार बढाने के लिए उनकी भूमिका उतनी प्रभावी नहीं मानी जाती|

ऐसा माना जा रहा था कि उदयपुर में चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस पार्टी में कोई सुधार आएगा, लेकिन राज्यसभा निर्वाचन के लिए प्रत्याशियों  के नामों को देखते हुए फिर कांग्रेसियों को निराश होना पड़ा है| निकट भविष्य में पार्टी  से बाहर जाने वाले बढ़ते दिखाई दें तो आश्चर्य नहीं होगा| 

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ राजस्थान से जिन प्रत्याशियों को उतारा है वह सब  घिसे पिटे चेहरे दिखाई पड़ते हैं| टिकट वितरण का आधार क्या है यह समझ से परे है| पार्टी में असंतुष्ट खेमे के नेता गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस ने प्रत्याशी नहीं बनाया| प्रमोद तिवारी, राजीव शुक्ला राज्यसभा टिकट पाने में सफल रहे तो इसके पीछे गांधी परिवार में जमावट ही आधार मानी जाएगी|

जिन नेताओं ने दशकों से संसदीय व्यवस्था में सक्रिय रहकर सब तरह की ऊंचाइयां हासिल की है, उन्हें राज्यसभा में उपकृत करने की कांग्रेस की नीति अतीत में भी रही है| नए लोगों को तो कांग्रेस आगे बढ़ाने से परहेज करती है, इसका जो भी कारण हो, लेकिन एक कारण यह भी माना जाता है कि गांधी परिवार के वारिस राजनीति में जब तक सफलता का परचम नहीं लहराएंगे, तब तक उनकी आयु समूह के लोगों को आगे बढ़ने से रोका जाता रहेगा|

दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी समाज के प्रतिष्ठित लोगों को राज्यसभा के लिए मौका देती है| ऐसे लोग जो जनता की सीधी राजनीति से परहेज करते हैं, लेकिन समाज में उनका प्रभुत्व है, ऐसे लोगों को राज्यसभा के माध्यम से राजनीति में लाने कि भाजपा की नई राजनीति उसे लाभ पहुंचा रही है|

मध्य प्रदेश में पिछले चुनाव में भी पार्टी ने  बड़वानी से प्रोफेसर सुमेर सिंह सोलंकी को राज्यसभा में उतारा था| इस बार भी दोनों प्रत्याशी नए हैं, महिला हैं और सामाजिक दृष्टि से अनुसूचित जाति, पिछड़े वर्गों से आती हैं| उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी ने प्रत्याशियों के मामले में इसी तरह काम किया है|

एक भी नाम ऐसा नहीं लग रहा है जो पेशेवर स्थापित नेता हों, जिनको भी टिकट दिया है वह समाज के प्रभावशाली हैं, लेकिन राजनीति में उनका कोई आधार नहीं था| राज्यसभा सदस्य बनने के साथ ही यह सारे लोग अपने अपने समाज में बीजेपी के आइकॉन के रूप में काम करेंगे| इसका लाभ निश्चित ही अगले चुनाव में बीजेपी को मिलेगा|

बीजेपी में नया नेतृत्व उभारने की एक विशिष्ट शैली काम करती है| इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका मानी जाती है| समाज के विभिन्न वर्गों में नेतृत्व क्षमता रखने वाले लोगों की खोजबीन संघ के स्तर से ही की जाती है| सामाजिक समीकरणों का भी ध्यान रखा जाता है|

कांग्रेस पार्टी कभी दलित और आदिवासियों को अपना वोट बैंक मानती थी| बीजेपी वोट बैंक की दृष्टि से नहीं बल्कि सामाजिक समरसता की दृष्टि से इन वर्गों को अपने साथ जोड़ने में सफल होती दिखाई पड़ रही है| राज्यसभा के टिकट भी इसी दृष्टि से देखे जा सकते हैं|

पार्टी के अनेक स्थापित नेता जो विधायक सांसद नहीं है वह अपना पूरा गुणा-भाग  राज्यसभा में जाने के लिए लगा रहे थे| लेकिन पार्टी ने किसी को भी मौका नहीं दिया  बल्कि अधिकांश नए चेहरों को मैदान में उतारा है| नई संस्कृति, नई कार्यशैली, नई सोच और नेतृत्व के तरीके हमेशा जनता द्वारा पसंद किए जाते हैं|

बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी राज्यसभा का टिकट नहीं दिया| माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में खाली हुई रामपुर लोकसभा सीट से उन्हें चुनाव लड़ाया जाएगा| सीट से वे पहले भी सांसद रह चुके हैं| सबका साथ सबका विकास की कार्यशैली राज्यसभा प्रत्याशियों के मामले में स्पष्ट दिखाई पड़ रही है|

स्थापित लोगों को दरकिनार करते हुए समाज के नए चेहरों को आगे लाकर बीजेपी अपनी नई राजनीति और कार्यशैली को आगे बढ़ा रही है| इस दृष्टिकोण से देखें तो आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी इसी तरह की कार्यशैली से टिकट वितरण हो सकते हैं|