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झुकना सिखाता धर्म फिर झुकाने के लिए टेरर सिस्टम क्यों?

सार

धर्म और राजनीति के नाम पर नीति और अनीति का घालमेल जब टूटने लगता है तो आवाजें बहुत आती हैं। मुस्लिमों के नाम पर कार्यरत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के देशभर के सैकड़ों ठिकानों पर राष्ट्रीय सुरक्षा जांच एजेंसी (एनआईए) ने छापे डालकर थोकबंद गिरफ्तारियां की हैं। जांच एजेंसी की यह कार्यवाही टेरर फंडिंग आतंकी नेटवर्क से जुड़ी हुई बताई जा रही हैं। छापों के विरोध में आवाज भी उठाई जा रही हैं। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सभी पदाधिकारी एक ही धर्म से जुड़े हुए हैं, जो इस बात का सबसे बड़ा संकेत है कि यह संगठन भारत की विविधता और बहुलता का कितना आदर और सम्मान करता है।

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विस्तार

टेरर फंडिंग पर लगाम लगाने की इस खबर के साथ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा मस्जिद और मदरसा में जाकर यूनिटी हंटिंग की भी देशव्यापी चर्चा हो रही है। मदरसे में छात्रों के साथ संवाद के साथ ही मोहन भागवत ने मस्जिद में जाकर मुस्लिम धर्मगुरु डॉक्टर उमेर अहमद इलियासी से मुलाकात की। संघ प्रमुख की मुलाकात से अभिभूत मुस्लिम धर्मगुरु ने भागवत को ‘राष्ट्रपिता व राष्ट्र ऋषि’ निरूपित कर प्रशंसा की अति जैसी कर दी है। भारतीय धारणा तो यह कहती है की आत्मप्रशंसा और दूसरों के मुख से प्रशंसा सुनने की इच्छा रखना दोनों ही अपने अस्तित्व को ईश्वर की महिमा से अलग करना है। संघ प्रमुख भारतीय धारणा के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए उन पर अति प्रशंसा का प्रभाव शायद ही पड़े। 

भारतीय लोकतंत्र जैसे-जैसे मजबूत होता जा रहा है, वैसे-वैसे उसमें अतिवाद की बुराई भी बढ़ती जा रही है। हर तरफ अतिवाद दिखाई दे रहा है। राजनीतिक विरोध में तो अतिवाद है प्रशंसा में भी अतिवाद है। जिस देश की बुनियाद समानता है, उस देश में समानता के अलावा सब कुछ दिखाई पड़ रहा है। समान अधिकार और समान नागरिक की परिकल्पना का भी यहाँ विरोध किया जाता है। कोई धर्म के नाम पर अपनी राजनीतिक दुकान चला रहा है तो कोई जाति और समुदाय के तुष्टीकरण पर अपनी इमारत बनाए हुए है। कोई भारत तोड़ने में अपना भविष्य देख रहा है तो कोई भारत जोड़ने को अपनी राजनीतिक सफलता का मंत्र मान रहा है। राजनीतिज्ञ भारतीयता को या तो समझते नहीं हैं या समझते हुए राजनीति करते हैं। 

चाहे प्रकृति हो, चाहे धर्म हो, हमें समानता ही सिखाते हैं। पीएफआई मुस्लिमों के नाम पर टेरर और आतंक के साथ भारत को झुकाने का सपना देख रहा है। जबकि अगर कोई सच्चा मुसलमान होगा तो झुकाने में नहीं झुकने में अपनी ऊंचाई का अनुभव करेगा। प्रत्येक मुसलमान नमाज में झुक कर ही सजदा करता है जो धर्म जीवन में झुकना सिखाता है, उस धर्म के नाम पर टेरर फंडिंग और आतंकी नेटवर्क की कोशिशें कैसे माफ की जा सकती हैं?

मुस्लिम आतंकवाद और हिंदू आतंकवाद भी राजनीतिक उपज ही मानी जाएगा। आतंक का कोई धर्म कैसे होता है? आतंक एक अपराध है, जो भी अपराधी हैं चाहे वह पीएफआई से हों चाहे किसी भी दूसरे हिंदू संगठन से हों उसको कुचलना सरकार का दायित्व है। खुशी की बात है कि राष्ट्रवाद को समर्पित वर्तमान सरकार आतंकी गतिविधियों को कुचलने के लिए सख्ती से काम कर रही है। 

ऐसी राजनीतिक धारणा बनाई गई है कि भारत में मुसलमान, राष्ट्रीय स्वयं संघ और भारतीय जनता पार्टी से घृणा करते हैं। करते हैं या नहीं करते हैं, करने वाले से कोई पूछने नहीं जाता बल्कि मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक ठेकेदार धारणा को लगातार बढ़ाकर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधते रहते हैं। हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई के आधार पर भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रही है। जोड़ने की बात में ही तोड़ने का भाव समाहित होता है। टूटने के बाद ही जोड़ने की बात पैदा होती है।  

संघ प्रमुख मोहन भागवत की मुस्लिम धर्मगुरु और मदरसे में छात्रों से संवाद भारत जोड़ो यात्रियों और उनके समर्थकों को अजूबा लग रहा है। भारत के लिए हिंदू मुस्लिम एकता की एक ऐतिहासिक पहल का श्रेय भी भारत जोड़ो यात्री लेने की कोशिश कर रहे हैं। वह ऐसा कह रहे हैं कि यात्रा का प्रभाव देखिए संघ प्रमुख को भी मस्जिद और मदरसा जाकर संवाद करना पड़ रहा है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक संगठन के साथ ही एक विचार है। यह विचार ‘एक भारत- श्रेष्ठ भारत’ और समान अधिकार और समान नागरिक के भारत का है। इस विचार में न कोई हिंदू है न  मुस्लिम है। सब भारतीय हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत बार-बार यह कह चुके हैं कि हर भारतीय का डीएनए एक ही है। संघ मुस्लिमों के साथ संवाद पहली बार नहीं कर रहा है। संघ में तो मुस्लिम मंच गठित है। उसके लिए पदाधिकारी नियत हैं। ये पदाधिकारी मुस्लिम समाज के बीच जाकर भारतीयता और इंसानियत को बढ़ाने के साथ ही भारत की एकता और राष्ट्र की मजबूती के लिए काम करते हैं। यह अलग बात है कि कई बार संघ का काम दिखता नहीं है।  

अंग्रेजों ने भी हिंदू मुस्लिम के नाम पर समाज को बांट कर राज किया था। वही अंग्रेजी मानसिकता आजाद भारत में भी लंबे समय तक राजनीति का आधार बनी रही। जैसे-जैसे इसमें बदलाव आ रहा है वैसे-वैसे दोनों समाजों में इस बारे में नई सोच और नई दृष्टि विकसित हो रही है। घृणा और प्रेम दो छोर हैं। घृणा को प्रेम और प्रेम को घृणा में बदलने में कुछ देर नहीं लगती। बीजेपी और संघ पर मुस्लिमों के साथ घृणा की तोहमत लगाने वाले ही इन दोनों के बीच प्रेम के बीज को वृक्ष बनाने के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे।  

अगर किसी में राजनीतिक दृष्टि होगी तो उसे दिखाई पड़ता होगा आने वाला भारत हिंदू और मुसलमान की एक आवाज का प्रतीक बनेगा। मदरसों और वक़्फ़ संंपत्तियों का सर्वे, एनआरसी और जिन भी कदमों को मुस्लिम विरोधी माना जा रहा है वक्त के साथ इनकी हकीकत सामने आएगी और यही सारे कदम मुस्लिमों में संघ और बीजेपी की मजबूती का आधार बन सकते हैं। 

आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण सरकार की जिम्मेदारी है। मुस्लिमों को उनके नाम पर संगठन बनाकर आतंकी नेटवर्क चलाने वाले लोगों से सावधान रहना होगा। पॉपुलर फ्रंट को अनपॉपुलर बनाना होगा।  पीएफआई नाम ऐसा है जिसे पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया भी कह सकते हैं और इसे पाकिस्तान फ्रंट ऑफ इंडिया भी कह सकते हैं। भारत में तालिबानी सोच नहीं चल सकती है। इस्लाम धर्म में नमाज की मुद्राएं हमें झुककर अल्लाह की ऊंचाई पाने की सदाकत देते हैं। यही सदाकत हकीकत है और यही भारत का और हमारा भविष्य है।