एमपी में पटवारी परीक्षा परिणाम के बाद नियुक्तियों पर रोक लगा दी गई. जो विद्यार्थी सफल हुए थे वह निराश हुए तो जो सफलता में संदेह उठा रहे थे उनकी पीड़ा भी खत्म नहीं हुई. विद्यार्थियों की स्थिति तो जैसे थी वैसे ही हो गई लेकिन पटवारी परीक्षा को राजनीति की सवारी बनाने वाले मंसूबे हर हालत में अपने सपने साकार होते हुए ही देख रहे हैं.
आदिवासी हो, महिला हो या युवा. इनसे जुड़ा कोई भी मुद्दा चुनाव के समय सियासी बवंडर खड़ा कर ही देता है. ‘लाडली बहना’ और ‘नारी सम्मान’ की प्रतिद्वंदिता के पीछे स्त्री कल्याण के प्रति ईमानदारी से ज्यादा चुनावी वैतरणी पार करने की इच्छा ही देखी जा रही है. सीधी कांड पर सियासत के इरादे और अंजाम भी भुलाए नहीं जा सकते. विधानसभा भी इसी मुद्दे पर खत्म हो गई. इतनी तेजी से बदलते सियासी मुद्दे में अचानक पटवारी परीक्षा के परिणाम फंस गए. यह मुद्दा कोई आईएएस, आईपीएस और पीसीएस की परीक्षा पर संदेह और विवाद का नहीं है बल्कि पटवारी की परीक्षा पर विवादों का सियासी पारा चढ़ा हुआ है.
परीक्षा परिणाम आने के बाद परिणामों का छिद्रान्वेषण करते हुए आक्षेप लगाए गए. इसके बाद कांग्रेस के सियासी वार का चुनावी प्रक्षेपण शुरू हो गया. मध्यप्रदेश के नेता तक अपना ट्वीट यान प्रक्षेपित करते यह तो समझ में आता था लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस ट्वीटवार में कूद पड़े. जब माहौल ऐसा लगा कि इससे बीजेपी को सियासी नुकसान ना हो जाए तो तुरंत नियुक्तियों पर रोक की घोषणा कर दी गई.
मुख्यमंत्री की घोषणा निश्चित रूप से सच को जांचने और परखने का अवसर है. जब भी कोई जनहित के मुद्दे सियासी दांवपेच में उलझ जाते हैं तब संसद में जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी से जांच कराने को सबसे विश्वसनीय जांच के रूप में देखा जाता है. चूँकि पटवारी परीक्षा भी युवाओं के भविष्य से जुड़ी हुई है, जो लोग चुने गए हैं उन्हें नियुक्तियाँ रोके जाने से भविष्य अंधकार में दिख रहा है. जिन लोगों को संदेह है उनका भी हक है कि सिस्टम की कार्यप्रणाली की सच्चाई सामने आए ताकि उनका संदेह दूर हो सके.
सरकार जांच कराएगी तो उस पर संदेह व्यक्त करना तो सियासत का धर्म ही होगा. इसलिए जरूरी है इसकी जांच जॉइंट पॉलिटिकल कमेटी (जेपीसी) से कराई जाए. पीसीसी प्रेसिडेंट पूर्व मुख्यमंत्री हैं. मध्यप्रदेश सरकार की व्यवस्था के अंतर्गत पूर्व मुख्यमंत्री को कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है. उनकी अध्यक्षता में ही जेपीसी बनाई जाना चाहिए जो पटवारी परीक्षा की जांच कर परीक्षा की प्रक्रिया की शंकाओं के बारे में सच्चाई सामने लाए. सच तो सब जानना चाहते हैं लेकिन चुनाव के नजरिए से इस मुद्दे को सियासी हथियार बनाने से बचना चाहिए. इससे सियासत को भले ही लाभ हो सकता है लेकिन मध्यप्रदेश को अनावश्यक रूप से जो बदनामी मिलेगी उससे राजनेता भी नहीं बच पाएंगे.
कांग्रेस के नेताओं ने पटवारी परीक्षा मामले को व्यापम-2 बताते हुए अपना सियासी लक्ष्य स्पष्ट कर दिया है. व्यापम के नाम पर मध्यप्रदेश को बदनाम किया गया है. इस मामले को भी सियासी हाइप दी गई थी. जैसे ही इसका सियासी उपयोग समाप्त हो गया फिर इस पर सियासी आवाजें भी बंद हो गई. अब चुनाव की दृष्टि से युवाओं को भ्रमित करने के लिए पटवारी परीक्षा को व्यापम का नाम दिया जा रहा है.
राहुल गांधी ने पटवारी परीक्षा को लेकर अपने ट्वीट में कहा है कि मध्यप्रदेश में भाजपा ने युवाओं के साथ चोरी की है. पहले भाजपा ने जनता की चुनी सरकार चोरी की अब प्रदेश के लाखों युवाओं से रोजगार की चोरी की जा रही है. कांग्रेस की सरकार के पतन को चोरी कहना कांग्रेस के नेताओं की नियत पर ही सवाल खड़े करना है. कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी तोड़ी थी. इसके लिए बाहरी नहीं अंदर की कमजोरियां जिम्मेदार हैं. उन कमजोरियों को संभालने की जिम्मेदारी राहुल गांधी के कंधों पर भी थी, जिस तरह से अपने घर की टूट को चोरी बता कर सियासत की जा रही है वही पटवारी परीक्षा में भी हो रहा है.
लंबी प्रतीक्षा के बाद तो परीक्षा हो पाई है. अब परिणाम आ पाए हैं. अब जब नियुक्ति का समय आया तो फिर सारे प्रयास सियासत की भेंट चढ़ जाएं यह किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं कहा जाएगा. राजनीतिक भविष्य के लिए युवाओं के वर्तमान को दांव पर लगाना दूर दृष्टि में अपने भविष्य को अंधकार में डालने जैसा ही है.