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रिजर्व बैंक उपभोक्ताओं की भी परेशानी समझे 

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Sat , 27 Jul

सार

मौद्रिक नीति समिति ने 2024 की पहली बैठक में नीतिगत रीपो दर और अपने रुख दोनों को रखा अपरिवर्तित

janmat

विस्तार

भारतीय रिजर्व बैंक की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति ने 2024 की अपनी पहली बैठक में नीतिगत रीपो दर और अपने रुख दोनों को अपरिवर्तित रखा। उसने नीतिगत रीपो दर को 6.5 प्रतिशत के स्तर पर ही बने रहने दिया। इस यथास्थिति की वजह एकदम साफ है। 

मौद्रिक नीति समिति का इरादा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर को टिकाऊ ढंग से चार प्रतिशत के सांविधिक रूप से अनिवार्य लक्ष्य के करीब रखने का है। यह दर काफी समय से तय लक्ष्य से ऊपर बनी रही है। उदाहरण के लिए अक्टूबर 2023 में 4.9 प्रतिशत के स्तर तक नीचे आने के बाद दिसंबर में यह दोबारा 5.7 प्रतिशत हो गई। कोर या प्रमुख मुद्रास्फीति की दर दिसंबर में 3.8 प्रतिशत के साथ चार साल के निचले स्तर पर आ गई थी। खाद्य कीमतों में अस्थिरता ने हेडलाइन यानी समग्र महंगाई दर को लक्ष्य से ऊपर रखा है।

मौद्रिक नीति समिति का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में हेडलाइन मुद्रास्फीति औसतन 5.4 प्रतिशत रहेगी। हालांकि उसका यह भी अनुमान है कि 2024-25 में इस दर में कमी आएगी और यह औसतन 4.5 प्रतिशत रह सकती है जो लक्ष्य के करीब होगी। इस अनुमान को दो स्रोतों से खतरा हो सकता है। पहला है खाद्य कीमत। हालांकि रबी सत्र की बोआई में सुधार हुआ है लेकिन प्रतिकूल मौसम और जलाशयों का कम जल स्तर निकट भविष्य में उत्पादन पर असर डाल सकते हैं। 

दूसरी बात, लाल सागर क्षेत्र में इस समय उथल पुथल के हालात हैं और पश्चिम एशिया में भूराजनीतिक तनाव की स्थिति है। यह आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर सकता है और कीमतों पर दबाव बना सकता है। इन जोखिमों के अलावा केंद्रीय बैंक काफी सहज स्थिति में नजर आ रहा है। चालू चक्र में दरों में 250आधार अंकों की समेकित वृद्धि हुई और उसका असर व्यवस्था में अभी भी दिख रहा है जिससे मुद्रास्फीति में कमी लाने में मदद मिलनी चाहिए। रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति के लक्ष्यों को पाने के लिए नकदी के हालात का भी प्रबंधन कर रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूत वृद्धि केंद्रीय बैंक को इस बात की नीतिगत गुंजाइश प्रदान करती है कि वह मुद्रास्फीति प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर सके। चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि अनुमानित है और एमपीसी का अनुमान है कि 2024-25 में भारतीय अर्थव्यवस्था सात प्रतिशत की दर से विकसित होगी। फिलहाल बाहरी खाते पर भी जोखिम नहीं दिख रहा है। 

विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में मुद्रास्फीति में उल्लेखनीय कमी आई है। वित्तीय बाजार इन अटकलों में व्यस्त हैं कि आखिर अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कब कटौती करेगा। फिलहाल दरों में इजाफे की कोई संभावना नहीं नजर आ रही है। अनुमानित पूंजी प्रवाह को देखते हुए बाह्य खाते का प्रबंधन भी निकट भविष्य में मुश्किल नहीं नजर आता।

पीपीबीएल को 29 फरवरी के बाद जमा लेने या अन्य तरह के लेनदेन करने से भी रोक दिया है। हालांकि पेटीएम पेमेंट्स बैंक लिमिटेड के अनुपालन से जुड़े मसलों के बारे में बहुत अधिक जानकारी सामने नहीं आ सकी है। रिजर्व बैंक के नेतृत्व ने स्पष्ट किया कि निरंतर अनुपालन न होने की स्थिति में पर्यवेक्षण की कार्रवाई की गई और ऐसे कदम विनियमित की गई कंपनियों के साथ व्यापक द्विपक्षीय बातचीत के बाद ही लिए जाते हैं। ऐेसे में प्रतीत होता है कि पीपीबीएल लंबी अवधि तक नियामकीय अनिवार्यताओं को पूरा करने में नाकाम रहा जिसके चलते नियामक को कदम उठाना पड़ा। रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उपभोक्ताओं को इस दौरान न्यूनतम परेशानी हो।