सनातन भारत की चेतना और जीवन ऊर्जा है. जैसे सांस के बिना किसी भी जीव का क्षण भर भी जीवित रहना संभव नहीं है वैसे ही सनातन के बिना भारत जीवित नहीं रह सकता. सनातन भारत की सांस है. यही सांस तमिलनाडु में भी है और यही सांस जम्मू कश्मीर में भी है..!
वोटों के परिग्रह में अपनी सांस सनातन पर ही हमला तमिलनाडु में डीएमके को लाभकारी दिख रहा होगा लेकिन भारत की राजनीति के लिए सेकुलर ज्ञान के मुकाबले सनातन जहान को ना चाहते हुए भी राजनीतिक रुझान स्पष्ट करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. आजादी के बाद सनातनी देश भारत में सरकारी स्तर पर दूसरी प्राथमिकताएं निर्धारित करने के बाद भी सनातनी विचार ने कभी राजनीतिक असहिष्णुता का प्रयास नहीं किया. सनातन आस्था वाले लोग बंधुता, एकता और सहिष्णुता की जीवन ऊर्जा को आत्मसात कर राजनीतिक कुचक्र से बेपरवाह बने हुए थे. सनातन ने कभी भी राजनीतिक विचार के रूप में अपना महत्व स्थापित करने का प्रयास नहीं किया और ना ही कभी राजनीति की कृपा का मोहताज रहा है.
भारत की राजनीतिक विचारधारा 60 साल बाद दक्षिणी ध्रुव पर पहुंची. इस बदलाव में भी सनातन और हिंदुत्व ने कट्टरता का परिचय नहीं दिया. सनातन को जातियों में बांट कर राजनीति का चरम अभी भी चल रहा है. उसके बाद भी सनातनी आस्था देश की मुख्य धारा बनी हुई है. यह शायद इसीलिए संभव हो सका है क्योंकि इसका आधार राजनीतिक नहीं है बल्कि धर्म आस्था और जीवन पद्धति है.
सनातन को डेंगू मलेरिया और कोरोना जैसी बीमारी बताते हुए इस को समूल नष्ट करने की बात करने वाले संवैधानिक पद पर बैठी डीएमके परिवार की युवा पीढ़ी नफरत के सहारे राज्य में अपने राजनीतिक जनाधार को मजबूत करना चाहती है. राजनीति में अंधे जैसे हो गए उदय निधि को सबसे पहले तो अपना नाम बदलना चाहिए क्योंकि यह दोनों शब्द सनातनी ही हैं.
हेट स्पीच पर तो सर्वोच्च न्यायालय ने भी गाइडलाइन बना दी है लेकिन अब तो संविधान के तहत राज्य के मंत्री पद पर बैठे किसी व्यक्ति द्वारा सनातन धर्म के विरुद्ध ही सारी सीमाएं तोड़ दी गई हैं. बुद्धिजीवियों के एक बड़े समूह ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सनातन के विरुद्ध इस राजनीतिक आतंकवाद के खिलाफ संज्ञान लेने का अनुरोध किया है. हेट स्पीच का इससे बड़ा कोई उदाहरण नहीं हो सकता.
बीजेपी के राजनीतिक उदय के कारण दूसरे राजनीतिक दल सनातन और हिंदुत्व को बीजेपी के प्रतीक के रूप में देखने की बड़ी राजनीतिक भूल कर रहे हैं. विपक्षी गठबंधन सांप्रदायिकता और नफरत को अपने बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में आगे बढ़ा रहा है. सनातन के विरुद्ध गठबंधन के सहयोगी द्वारा नफरत ने तो अंग्रेजों और मुस्लिम शासकों के दौर की याद दिला दी है.
सनातन के खिलाफ नफरत के फटे ज्वालामुखी की आंच से गठबंधन का रोम-रोम झुलसने की संभावनाएं साफ-साफ देखी जा रही हैं. लोकसभा चुनाव के पहले हो रहे राज्यों के चुनाव में बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस बढ़त की उम्मीद लगा रही थी लेकिन कांग्रेस के सहयोगियों की ऐसी सनातन विरोधी हरकतें वहां भी कांग्रेस की जड़ें हिला सकती हैं.
कांग्रेस के पास यह अवसर था कि सनातन धर्म के प्रति अपनी आस्था को डीएमके के बयान के साथ नहीं जोड़ते और उसकी स्पष्ट रूप से निंदा करते लेकिन कांग्रेस सर्वधर्म समभाव की बात करके और हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सेकुलर ज्ञान देते हुए डीएमके के जाल में फंस गई है. विपक्षी गठबंधन के कई दल सनातन के विरुद्ध की गई टिप्पणी का विरोध भी कर रहे हैं.
चुनाव के समय खासकर उत्तर भारत में जनेऊ और मंदिर-मंदिर जाकर सनातनी हिंदुत्व का राजनीतिक स्वांग रचने वाले राजनेताओं को अब शायद भविष्य में ऐसे कृत्यों के राजनीतिक लाभ का प्रयास सफल न हो पाए. सनातन धर्म के विरुद्ध उठाई गई राजनीतिक आवाज के मुकाबले में निश्चित रूप से बीजेपी राजनीतिक मोहरे चलेगी लेकिन अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सनातन सक्षम है.
सनातन ऐसा धर्म है जो राम-कृष्ण और भगवान शिव सहित करोड़ देवी देवताओं को मान्यता देता है. सनातन तो आस्तिक-नास्तिक और चारवाक तक को मान्यता देता है. सनातन राम का धर्म है तो रावण को भी मान्यता देता है. सनातन धर्म के देवी देवताओं ने जीवन आचरण के जो संदेश दिए हैं वह आज भी भारतीय नागरिकों के जीवन आचरण का आधार बने हुए हैं. सनातन तो यहाँ तक मानता है कि विधर्मी भी सनातन की जड़ों से ही जुड़े हुए हैं.
सनातन और हिंदुत्व की विश्व में स्वीकार्यता लगातार बढ़ रही है. ब्रिटेन में भारतवंशी प्रधानमंत्री भी सनातनी होने पर सार्वजनिक रूप से गर्व प्रकट करते हैं. अभी हाल ही में सिंगापुर में भी सनातन समर्थक भारतवंशी राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हुए हैं. यूएसए में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए एक भारतवंशी खुद को गौरव के साथ सनातनी बताते हुए जनसमर्थन हासिल कर रहे हैं.
सनातन हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए विश्व का नजरिया बदल रहा है. भारत में रहने वालों को ही नहीं पूरे विश्व को परिवार मानने वाली सनातनी सोच को भारत में ही राजनीतिक लक्ष्य के लिए निशाने पर लिया जा रहा है. भारत सनातन की गंगोत्री है. गंगोत्री में ही इसको प्रदूषित करने की राजनीतिक साजिश अक्षम्य है.
राजनीति के लिए धार्मिक भावनाओं को कलंकित करने की कोशिशों को संविधान के अंतर्गत हर कीमत पर रोका जाना चाहिए. धार्मिक और नफरत की राजनीति के लिए देश को दांव पर लगाने की राष्ट्र विरोधी गतिविधि को रोकना हर भारतवासी का नैतिक और नागरिक दायित्व है.