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सरकार,चाहती है “जाति” उजागर हो ?

राकेश दुबे राकेश दुबे
Updated Fri , 05 Oct

सार

भारत में देश की या प्रदेश की कोई भी सरकार हो, संविधान की मूल भावना से इतर जातिऔर पन्थ उजागर करने का हर संभव प्रयास करती है |

janmat

विस्तार

भारत में देश की या प्रदेश की कोई भी सरकार हो, संविधान की मूल भावना से इतर जातिऔर पन्थ उजागर करने का हर संभव प्रयास करती है | कोई भी सरकारी सुविधा “जाति प्रमाण पत्र” के बगैर सुलभ नहीं है |संविधान की मंशा के विपरीत यह कार्य होता है और सरकार इस कृत्य को रोकने के लिए कोई कानून ही नहीं बनाना चाहती बल्कि यदि कोई अपनी जाति,पन्थ को उजागर किये बगैर “भारतीय” होने का प्रमाण पत्र चाहे तो उसे कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है |

देश स्कूली पोशाक में हिजाब हो या न हो कि बहस को अदालत तक ले गया है | आज ७५ साल बाद भी देश की शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रम, पोशाक और शिक्षण पद्धति में एकरूपता नहीं है | शिक्षा जो की भविष्य निर्धारित करती है शासन ने उसे समाज के विभिन्न वर्गों के हाथ में सौंप रखा है | धार्मिक विश्वाससे लेकर बाज़ार तक शिक्षा के मूल उद्देश्यों को ध्वस्त करने में लगे हैं | राजनीतिक दल इसमें सहयोगी की भूमिका निबाहते हैं, हर दल जाति आधारित वोट बैंक के आधार पर टिकट वितरण और मतदान के मंसूबे बनता है और चुनाव के बाद जाति प्रमाण्पत्र जारी करना निर्वाचित जनप्रतिनिधि का पहला काम होता है,उसी के अनुसार सरकारी प्रमाण पत्र जारी होते हैं, ये बात किसी से छिपी नहीं है |

आज़ादी के बाद से देश में दो विपरीत धाराओं में देश को बांटने की कोशिश होती रहीं अब ये प्रयासऔर गतिशील हैं |सबसे पहले सरकारी कानून बदलना चाहिए जो जाति और पन्थ विभेद के कारक हैं | क्या यह असंभव है ? शायद नहीं, पर कोई नहीं चाहता, सामाजिक समरसता की बात करने वाले संगठनों के शीर्ष पर भी “कोंकणस्थ” और “देशस्थ” का बंटवारे पर चर्चा होती है |

आज भारत में भारत का नागरिक होने और जातिनिरपेक्ष होने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना टेढ़ी खीर है |तमिलनाडू की एक महिला वकील ने इस मामले में जो संघर्ष किया उदहारण बन गया है | अब तमिलनाडु की स्नेहा देश की पहली महिला बन गई हैं जो जाति और धर्म के बंधन से आधिकारिक रूप से मुक्त हैं।३५ साल की स्नेहा पेशे से वकील हैं।

सूत्रों के मुताबिक तिरुपत्तूर के तहसीलदार टीएस सत्यमूर्ति ने स्नेहा को ‘नो कास्ट, नो रिलिजन का प्रमाण-पत्र दिया।

वह पिछले कई साल से इसके लिए प्रयास कर रही थीं।यह प्रमाण-पत्र मिलने के बाद से स्नेहा और उनके प्रोफेसर पति प्रतिभा राजा के पास से लगातार फोन आ रहे हैं। तमिलनाडु के वेल्लूर जिले के तिरुपत्तूर की रहने वाली स्नेहा को लोग उन्हें बधाईयां दे रहे है। वास्तव में उन्होंने एक बड़ा काम किया है |

हालांकि स्नेहा जातिगत आरक्षण का समर्थन करती हैं। वह कहती हैं, “मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूं कि मैं आरक्षण के विरोध में नहीं हूं।मैं आरक्षण की नीति का समर्थन करती हूं और मानती हूं कि दबे कुचले व पिछड़े तबकों को आगे लाने के लिए उनको आरक्षण दिया जाना चाहिए।”स्नेहा की दोनों बहनों का नाम मुमताज और जेनिफर है। वह कहती हैं कि वह मुमताज और जेनिफर के लिए भी ‘नो कास्ट नो रिलिजन’ सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करेगी।

स्नेहा ने इस प्रमाण पत्र को प्राप्त करने के लिए कठिन संघर्ष किया क्योंकि देश और उसके हर राज्य में जाति प्रमाण पत्र जारी करने की व्यवस्था है | “नो कास्ट, नो रिलिजन” जैसा प्रमाण पत्र जारी करने का प्रावधान नहीं है |